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सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य से मुख्यमंत्री तक माझी ने की यात्रा

  • ओडिशा में भाजपा से एक मजबूत आदिवासी आवाज हैं मोहन चरण

भुवनेश्वर। ओडिशा में भाजपा सरकार के पहले मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने 1972 में केन्दुझर जिले के राइकला गांव में एक संथाल परिवार में जन्म लिया। उन्होंने कला में स्नातक किया। इस दौरान वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे। इसके बाद उन्होंने विद्या भारती द्वारा संचालित शिशु मंदिर में आचार्य के रुप में कार्य किया। इसके बाद एक जनजातीय शिक्षित युवा के तौर पर उन्होंने पंचायत का चुनाव लड़ा व सरपंच चुने गये। 2000 में बीजद व भाजपा के बीच गठबंधन के दौरान भाजपा ने उन्हें केन्दुझर (सदर) विधानसभा सीट से टिकट दिया। 2000 में वह पहली बार विधायक चुने गये। 2004 में भी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया तथा वह दोबारा चुन कर विधानसभा पहुंचे। 2009 में भाजपा व बीजद का गठबंधन टूट गया। 2009 में वह चुनाव हार गये। 2014 में भी वह चुनाव हार गये। 2019 में फिर से तीसरी बार वह विधायक बने। इस बार पार्टी ने उन्हें विपक्ष का मुख्य सचेतक बनाया तथा पीएसी की अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी। इस बार के चुनाव में वह जीत कर चौथी बार विधानसभा में पहुंचे।

केंदुझर सीट को अनुसूचित जनजाति बहुल सीट माना जाता है। 53 साल के मोहन माझी एक अनुभवी राजनेता हैं और ओडिशा में भाजपा से एक मजबूत आदिवासी आवाज हैं। उनकी आदिवासी पहचान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी की पसंद बनाया है। गौरतलब है कि इस चुनाव में भाजपा को आदिवासी मतों का एक बड़ा हिस्सा ओडिशा में मिला है। ओडिशा में भाजपा ने पहली बार अपने दम पर विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है। ओडिशा की 147 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा को 78 सीटों पर जीत मिली है।

सरपंच के तौर पर राजनीति में हुई थी एंट्री

सरपंच (साल 1997 से 2000 तक) के तौर पर मोहन माझी की राजनीति में एंट्री हुई थी। इसके बाद वह पहली बार साल 2000 में विधायक बने थे। मोहन चरण माझी भाजपा के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं। उन्हें एक कुशल संगठन कर्ता के तौर पर जाना जाता है।

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