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39 स्टार प्रचारकों के साथ खुद नरेंद्र मोदी ने संभाली कमान
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हफ्तेभर के अंदर प्रधानमंत्री आज दूसरी बार ओडिशा पहुंच रहे हैं, तीसरा और चौथा दौरा भी होगा
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भाजपा के मिशन 400 के लिए 21 सीटों वाला ओडिशा बहुत अहम
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पार्टी को दिख रही है बढ़त की गुंजाइश
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर।
2024 में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में ओडिशा फतह करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी ताकत झोंक दी है। ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटों तथा विधानसभा की 147 सीटों के लिए चुनाव होगा। 39 स्टार प्रचारकों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार अभियान की कमान खुद संभाल ली है। उनकी पहले दौरे में ब्रह्मपुर और नवरंगपुर में आयोजित दो जनसभाओं में उमड़ी भीड़ ने बीजद की नींद उड़ा दी है। इन जनसभाओं में उमड़ी भीड़ ने भाजपा को एक टानिक दे दिया है, जिससे देश के लगभग 17 राज्यों में खुद की और सहयोगियों की सरकार गठन के बाद भारतीय जनता पार्टी की निगाहें पूर्वी तथा तटीय राज्यों और विशेषकर ओडिशा पर टिक गयी है।
इस बार के चुनाव में भाजपा की निगाहें खासकर ओडिशा पर इसलिए टिकी है, क्यों कि यहां लगभग 25 सालों से बीजू जनता दल की सरकार चली आ रही है और इसके साथ-साथ कुछ अन्य परिस्थियां ऐसी बनी हैं, जो भाजपा को ताकत झोंकने के लिए अनुकूल माहौल दिया है।
पांडियन के बढ़ते प्रभाव ने रखी पटकथा की बुनियाद
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राज्य में एक नई राजनैतिक पटकथा की बुनियाद उस समय से ही पड़नी शुरू गयी थी, जबसे मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के निजी सचिव तथा आईएएस अधिकारी वीके पांडियन का कद और प्रभाव हर निर्णय में दिखने लगा था। यहीं से राज्य में मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने अपनी जमीन की तलाश शुरू की और भाजपा के शुरुआती दौर के राजनैतिक क्रियाकलापों ने असर दिखाया, जिससे पांडियन को स्वैच्छिक सेवानिवृति लेनी पड़ी। इस घटना क्रम के 24 घंटे के अंदर उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर 5-टी और नवीन ओडिशा का चेयरमैन बना दिया गया। इतना ही नहीं, पांडियन ने राज्य में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल की सदस्यता भी ग्रहण कर ली और नौकरशाह से नेता बन गये। भाजपा के प्रबल विरोध के बाद पांडियन के स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के निर्णय ने विपक्षी दल भाजपा को एक संजीवनी दे दी और यहीं से भाजपा ओडिशा फतह की ओर चल पड़ी।
भाजपा के लिए ओडिशा का मायने
ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी मायने रखता है। दरअसर ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें और राज्यसभा की 10 सीटें हैं। 2014 से लेकर इस चुनाव से पहले संसद में भाजपा के लिये गये कई महत्वपूर्ण निर्णयों में बीजद ने महत्वपूर्ण समर्थन किया। बीजद का समर्थन न सिर्फ आंकड़ों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, अपितु मनोबल और उम्मीदों को भी बल देता था। अब चूंकि देश में तीन से चार राज्यों में बदले राजनीतिक परिदृष्य और 400 पार की मुहिम ने भाजपा की ओडिशा पर टिकाये रखने के लिए प्रेरित किया। 2019 के लोकसभा के चुनाव में कुल 21 सीटों में बीजद ने 12 सीटों पर वोट प्रतिशत 42.8% (-1.3%) के साथ जीत हासिल की थी। इसी तरह से भाजपा ने आठ सीटों पर वोट प्रतिशत – 38.4% (+16.9%) के साथ अपना कब्जा जमाया था। कांग्रेस को एक सीट मिली थी और उसका वोट प्रतिशत – 13.4% (-12.2%) पर आ गया था।
अन्य राज्यों में बदले रानीतिक परिदृश्य ने रूख मोड़ा
राजनीतिक गलियारे में माना जा रहा है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार और झारखंड में जिस तरह से राजनीतिक परिदृष्य बदले हैं, उसे लेकर भाजपा अन्य पूर्वी राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गयी है, क्योंकि ये राज्य मिशन 400 में काफी मायने रखते हैं। ओडिशा में एक मुश्त 21 सीटें हैं, जहां वोट प्रतिशत के हिसाब से भाजपा की निगाहें हैं। हालांकि एक बार ऐसा माहौल बना कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व दोस्ताना माहौल के तहत चुनाव में उतरना चाहता है, लेकिन जमीनी सर्वे जानने के बाद उसने बीजद को उखाड़ फेंके की दिशा में चल पड़ी। अब हालात और माहौल ऐसे हो गये हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब बीजद की एक्सपायरी डेट, भाजपा के मुख्यमंत्री के चयन और भाजपा के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण की तिथियां घोषित कर दी है, जिससे चुनावी माहौल में उबाल आ गया है और पिछले मत प्रतिशत को देखते हुए भाजपा ने जादुई आंकड़ों को हासिल करते हुए मुख्यमंत्री पद पर निगाहें टिका रखी है।
भाजपा की दूरगामी सोच
भारतीय जनता पार्टी की निगाहें भाजपा शासित राज्यों के आंकड़ों को बढ़ाने, दीर्घावधि शासन और सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा कायम रखने पर टिकी है। भाजपा अपने शासित राज्यों के विकास का हवाला दे रही है। डबल इंजन की सरकार की बात कह रही है। दरअसर अब तक कई राज्य विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते रहे हैं, जबकि भाजपा कहा कहना है कि यहां संशाधन होने के वाबजूद शीर्ष नेतृत्व की दूरदर्शिता के आभाव में राज्यों का विकास नहीं हुआ। अभी हाल के ब्रह्मपुर और नवरंगपुर के दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिर्फ और सिर्फ केंद्र की विकास मूलक योजनाओं और राज्य में क्रियान्वयन की विफलताओं पर ही अपना संबोधन केंद्रित रखा। उन्होंने लोगों यहां तक रटाया कि कांग्रेस के 10 साल के शासन में किस योजना के लिए कितनी राशि मिली थी और मोदी की सरकार में 10 साल में कितनी योजनाओं में कितनी राशि और पिछली सरकारों की तुलना में कितनी अधिक उपलब्ध करायी गयी है। मोदी ने योजनाओं के क्रियान्वयन नहीं होने पर नवीन पटनायक सरकार की विफलताओं को भी गिनाया। इस दौरान मोदा साफ तौर पर कहा कि भाजपा सिर्फ पांच सालों में ओडिशा को देश का नंबर 1 का राज्य बना देगी।
कमल खिला तो कई पड़ोसी राज्यों में पड़ेगा प्रभाव
इतना ही नहीं, यदि ओडिशा में कमल खिलता है, तो इसका प्रभाव पश्चिम बंगाल और दक्षिण के राज्यों के दरवाजे भी खोलने में मदद करेंगे, क्योंकि हालके हरियाणा, असम, त्रिपुरा में मिली जीत के बाद ओडिशा एक ऐसे राज्य होगा, जहां मोदी के नाम पर सरकार बनेगी। यदि ओडिशा में भाजपा की सरकार बनती है, तो भाजपा पर लगे बड़ी जातियों की पार्टी का टैग हट जायेगा, क्यों छत्तीसगढ़ के बाद ओडिशा एक ऐसा राज्य होगा, जो गरीब और आदिवासी बहुल राज्य है। यदि ऐसा होता है, तो भाजपा को अन्य राज्यों जमीन मजबूत करने में और मदद मिलेगी।
बीजद में उत्तराधिकारी की कमी ने भाजपा को प्रोत्साहित किया
दरअसर, राज्य में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) में लंबे समय से एक उत्तराधिकारी की कमी राजनीतिक गरियाले में चर्चा का केंद्र रही है। सवाल अक्सर यह उठते रहता है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बाद बीजद का क्या होगा? बीजद का उत्तराधिकारी कौन बनेगा? बीजद को आगे कौन बढ़ायेगा? इस सवाल का जवाब अभी तक जनता को नहीं मिला है। हालांकि कुछ दिन पहले वीके पांडियन ने गोल-मटोल बयान में कहा कि वह नवीन बाबू के नैतिक मूल्यों के उत्तराधिकारी हैं और अपनी कार्यों के जरिए इसका संदेश देने का प्रयास भी कर रहे हैं, लेकिन नवीन पटनायक ने अभी तक कुछ नहीं कहा है और ना ही अस्वीकार किया है और ना रोका है। पांडियन के इस रूख को लोगों को हजम नहीं कर पा रहे हैं, क्यों राज्य में वीके पांडियन के खिलाफ एक बाहरी वाले के शासन को लेकर विरोधी माहौल बना हुआ है। इस बात पर भी लोगों को भरोसा नहीं है, क्योंकि संगठन अकेले नहीं चलता है, क्योंकि बीजद में नेताओं के आने-जाने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। कब किसे बदल दिया जायेगा, किसी को पता नहीं होता है। एक इतिहास यह भी रहा है कि नवीन बाबू के नजदीक रहने वाले लोगों ने ही उनको धोखा देने का प्रयास किया। प्यारी मोहन महापात्र के समय इस तरह की एक घटना देखने को मिली थी कि कथित तौर पर उन्होंने सत्ता पलटने का प्रयास किया था। इसी आधार पर अब ऐसी स्थिति में बीजद में उत्तराधिकारी की रिक्तता हमेशा से कायम दिखती है और भाजपा ने अपनी निगाहें यहां टिका रखी है।
विपक्ष को बढ़त के साथ जमीन की तलाश
2024 में ओडिशा में हो रहे लोकसभा और विधानसभा चुनाव में विपक्षी दल भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी अपनी बढ़त बनाये रखने के साथ-साथ जमीन की तलाश कर रही है। लोकसभा की यदि बात करें, तो कुल 21 सीटों में 12 सीट बीजद के पास है, जबकि 8 पर भाजपा तथा एक पर कांग्रेस का कब्जा है। चूंकि भाजपा 2014 में सिर्फ एक सीट पर थी और 2019 में वह आठ सीटों पर वोट प्रतिशत को बढ़ाते हुए पहुंच गयी, ऐसी स्थिति में वह लोकसभा की अधितम सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के प्रयास में है। इधर, कांग्रेस अपनी सीट को बरकार रखते हुए आगे बढ़ने की दिशा में प्रयासरत है।
इसी तरह से 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजद ने 112 पर, भाजपा ने 23 पर और कांग्रेस ने नौ सीट पर जीत हासिल की थी। हालांकि बालेश्वर की सीट अपने विधायक के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा को गंवानी पड़ी। 2014 की 10 सीट की तुलना में 2019 में भाजपा को 13 सीटें अधिक मिली और बीजद को पांच तथा कांग्रेस को सात सीटें गंवानी है। यहीं भाजपा राज्य में कांग्रेस को पछाड़ते हुए प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया।
ओडिशा में गठबंधन का इतिहास
ओडिशा में एक समय था, जब भाजपा और बीजद के गठबंधन की सरकार थी। राज्य में साल 2000 में भाजपा और बीजद ने पहली बार एक साथ चुनाव लड़ा था। इस दौरान विधानसभा के चुनाव में बीजद ने 84 सीटों पर और भाजपा ने 63 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसी तरह से लोकसभा में 12 सीटों पर बीजद तथा 9 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा। 2004 के लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में भी यही अनुपात रहा, लेकिन 2009 अचनाक गठबंधन टूट गया और चुनाव से ठीक पहले भाजपा को एक झटके में बीजद ने अलग कर दिया। कहा जाता है कि 2004 से 2009 में नौकरशाह से नेता बने प्यारी मोहन महापात्र मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बाद दूसरे सबसे अधिक प्रभावशाली नेता था और वही सबकुछ देखते थे। यहीं से भाजपा को एक झटके में गठबंधन से निकाल फेंकने की तैयारी शुरू हुई। बताया जाता है कि 2004 से 2009 तक नवीन पटनायक ने संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ अपने सहयोगी पार्टी भाजपा को निर्मूल करने पर फोकस रखा और 2009 के चुनाव से ठीक पहले गठबंधन तोड़ दिया। इस दौरान भाजपा को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि उसे अकेले चुनावी मैदान में जाना पड़ेगा। भाजपा की तैयारी नहीं होने के कारण 2009 के चुनाव में भाजपा की हालत काफी खराब हो गयी। 2009 के चुनाव में भाजपा को विधानसभा में सिर्फ छह सीटें मिलीं। इस दौरान एक और अजीब घटना देखने उस समय मिली जब टिकट खोने के बाद इसके प्रत्याशी प्रताप षाड़ंगी को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा था। हालांकि वह भी जीत गये थे। गठबंधन टूटने के बाद 2009 के लोकसभा के चुनाव में भाजपा खाता भी नहीं खोल पायी। इसके बाद से भाजपा ओडिशा में अकेले चल पड़ी और यही कारण है कि 2024 के चुनाव में राज्य के सभी नेता बीजद के साथ गठबंधन के लिए तैयार नहीं हुए।
पूरी ताकत से लगी भाजपा
इस बार के चुनाव में ओडिशा में कमल खिलाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। भाजपा ने 40 स्टार प्रचारों को चुनावी प्रचार के लिए मैदान में उतारा है। इस सूची में सबसे शीर्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हैं और खबर है कि वह ओडिशा में होने वाले वाले चार चरणों में प्रचार करेंगे। अभी हालही में उन्होंने नवीन पटनायक के गढ़ ब्रह्मपुर और नवरंगपुर में चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया था। इसके बाद वह 10 मई को भुवनेश्वर में एक विशाल रोड-शो करेंगे। इसके बाद वह तीसरे और चौथे चरण के लिए भी मतदान करेंगे।
स्टार प्रचारकों की सूची
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
- राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा
- केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
- केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह
- केन्द्रीय गृह मंत्री नितिन गडकरी
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव
- स्मृति ईरानी
- भूपिंदर यादव
- अश्विनी वैष्णव
- अर्जुन मुंडा
- हिमंता विस्व सरमा
- मनमोहन सामल
- बैजयंत जय पंडा
- सुनील बंसल
- धर्मेंद्र प्रधान
- विजय पाल सिंह तोमर
- लता उषेंडी
- विशेश्वर टुडू
- शांतनु ठाकुर
- तेजस्वी सूर्या
- जय नारायण मिश्र
- जुएल ओराम
- प्रताप चंद्र षाड़ंगी
- हेमा मालिनी
- बसंत कुमार पंडा
- सुरेश पुजारी
- कनक वर्धन सिंहदेव
- बिम्बाधर कुअंर
- समीर मोहंती
- मानस कुमार मोहंती
- गोलक प्रसाद महापात्र
- बिरंची नारायण त्रिपाठी
- शारदा प्रसाद सतपथि
- सीमांचल खटेई
- डा जतीन मोहंती
- अनुभव मोहंती
- हरिहर महापात्र
- पिंकी प्रधान
- श्रीतम दास
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