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10 दिनों की लंबी यात्रा के बाद पहुंचे संबलपुर
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सामाजिक संगठन स्वैच्छा के सदस्यों ने भोजन परोसा
राजेश बिभार, संबलपुर
भारत मेें कोरोना संक्रमण की भयंकर स्थिति उत्पन्न होने के बाद यूं तो देश को प्रत्येक नागरिक रोजाना इस बीमारी पर नियंत्रण हेतु संघर्ष कर रहा है। किन्तु पेट की भूख मिटाने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों में जाकर रोजी-रोटी कमा रहे मजदूरों के लिए यह परिस्थिति किसी दुस्वप्न के समान उभरकर सामने आया है।
ओडिशा समेत देश के विभिन्न प्रदेशों के ऐसे मजदूर अपने जन्म माटी से हजारों किलोमीटर दूर फंस गए हैं। उन्हें सकुशल उनकी घर वापसी का हरसंभव प्रयास किया जा रहा हॅै। इसके बावजूद सरकार एवं अन्य सरकारी तंत्र अपने इस प्रयास में शत प्रतिशत सफल नहीं हो पा रहें हैं। मसलन कोरोना के बाद लगे लॉक डाउन में फंसे अनेकों प्रदेश के मजदूर पैदल ही अपने मातृभूमि की ओर सफर करने लगे हैं। ऐसा ही एक वाक्या मंगलवार को संबलपुर में देखा गया।
सरकारी उदासीनता से तंग आकर हैदराबाद में काम कर रहे पश्चिम बंगाल के 47 मजदूर पैदल ही अपने गृह नगर मालदा की ओर निकल पड़े हैं। उन्होंने अपनी यह यात्रा पिछले 25 अपै्रल को आरंभ किया था। दस दिनों की कठोर यात्रा के बाद 5 मई की सुबह सभी 47 लोग संबलपुर शहर के धनकौड़ा पहुंचे।
शहर के समाजसेवी संगठन स्वैच्छा एवं साइ राम स्वयं सहायक समूह के सदस्यों को जब इस बात की भनक लगी तो उन्होंने तत्काल उन मजदूरों की सूध लिया। उन्होंने उन्हें भोजन कराया और फिर उनके बीच मास्क एवं आवश्यक दवाओं का वितरण किया। इस कार्य में भारतीय जनता पार्टी साखीगोपीनाथ मंडल के सदस्योंं ने भी भरपूर सहयोग किया। मामले की सूचना मिलते ही धनुपाली एवं सदर थाना के आला अधिकारी उन मजदूरों के पास पहुंचे और उनसे विस्तारित तथ्य लेना आरंभ किया है। खबर लिखे जानेतक उन मजदूरों से पूछताछ जारी थी।