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नारायणगढ़-भद्रक रेलवे लाइन

नारायणगढ़-भद्रक रेलवे लाइन का तीहरीकरण योजना अधर में लटकी

  • एनजीटी के प्रतिबंध के कारण बालेश्वर में नहीं मिल रही है गिट्टी और बालू

  • राज्य सरकार की रॉयल्यी 35 से बढ़कर 400 रुपये तक पहुंची

  • रेलवे का बढ़ी हुई रॉयल्टी देने से इनकार

इण्डो एशियन टाइम्स, बालेश्वर। नारायणगढ़-भद्रक रेलवे लाइन का तीहरीकरण योजना अधर में लटक गई है। केंद्र सरकार की इस परियोजना में केंद्र की ही एक वैधानिक निकाय और राज्य सरकार का एक फैसला रोड़ा बन गया है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के प्रतिबंध के कारण ओडिशा में यह रेल परियोजना अधर में लटक गई है।

नारायणगढ़-भद्रक तक दक्षिण पूर्व रेलवे (दपूरे) की लाइन की तीहरीकरण का काम साल 2020 में शुरू हुआ था। दावा किया जा रहा है कि इस बीच एनजीटी ने बालेश्वर जिले में बालू खनन और गिट्टी को लेकर प्रतिबंध लगा दिया। इससे बालेश्वर जिले के आस-पास नियुक्त ठेकेदारों को बालू-गिट्टी उपलब्ध नहीं हो रही है। बताया जाता है कि बालेश्वर जिले में एनजीटी ने सभी बालू एवं विशेष कर पहाड़ को तोड़ने गिट्टी बनाने के कार्यों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है। रेलवे भी केंद्र सरकार के अधीन आता है और एनजीटी भी केंद्र सरकार की ही एक वैधानिक निकाय है। हालांकि दोनों के अपने-अपने अलग एक अधिकार क्षेत्र हैं।

रॉयल्टी बढ़ने से गिट्टी-बालू के दाम बढ़े

इस प्रतिबंध के बीच राज्य सरकार ने साल 2020 से लेकर अब तक कई बार बालेश्वर जिले में अतिरिक्त रॉयल्टी लगा दी है। इससे बालू और गिट्टी के दाम आसमान छूने लगे हैं।  नारायणगढ़-भद्रक रेलवे लाइन के तीहरीकरण योजना पर काम करने वाले ठेकेदारों के सूत्रों ने बताया कि जब टेंडर जारी किया गया था, उस समय बालू पर रॉयल्टी 35 रुपये प्रति क्यूबिक मीटर थी, जो बढ़कर अब 400 के ऊपर चली गयी है।

रॉयल्टी अब टेंडर के मूल्य से भी ज्यादा

ठेकेदारों का कहना है कि बढ़ी हुई रॉयल्टी अब टेंडर के मूल्य से भी ज्यादा हो गयी है। इस कारण इस प्रोजेक्ट पर अब उन्हें काम करने में दिक्कत हो रही है। उनका कहना है कि टेंडर में तय शर्तों के अनुसार रॉयल्टी को रेलवे को ठेकेदारों को वापस करना होता है, लेकिन उसके हिसाब से रेलवे अब कह रहा है कि वह रॉयल्टी के रूप में सिर्फ 35 रुपये ही वापस करेगा, जबकि मौजूदा रॉयल्टी 400 रुपये के पार पहुंच गई है। रेलवे इस रॉयल्टी को वापस करने से पीछे हट रहा है। ठेकेदारों का कहना है कि जब उतनी कमाई ही नहीं है, तो वे इसकी भरपाई नहीं कहां से करेंगे।

टेंडर में इन पर ध्यान क्यों नहीं

अब सवाल उठता है कि एनजीटी के प्रतिबंध और राज्य सरकार की तरफ से रॉयल्टी बढ़ाए जाने के अधिकारों को लेकर पड़ने वाले प्रभावों को टेंडर की शर्तों में क्यों नहीं शामिल किया गया। यह तो सर्वविदित है कि अधिकांश पहाड़ी क्षेत्रों में जहां खनन होते हैं, वहां कभी भी एनजीटी के प्रतिबंध लागू हो सकते हैं और राज्य सरकार रॉयल्टी दर को बढ़ा सकती है। राज्य सरकारें रॉयल्टी दर बढ़ाने या घटाने का अधिकार जिला प्रशासन को देकर रखती हैं। दावा किया जा रहा है कि संबंधित क्षेत्रों में ऐसी परियोजनाओं को देखने के बाद जिला प्रशासन रॉयल्टी बढ़ देता है, जिससे बालू-गिट्टी के भाव आसमान छूने लगते हैं।

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कई बार हो चुकी है बैठक विफल

बताया जाता है कि इस विवाद को सुलझाने के लिए रेलवे और ठेकेदारों के बीच कई बार बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन सभी बैठकें विफल रही है। ठेकेदारों का कहना है कि रेलवे साफ तौर पर बढ़ी हुई रॉयल्टी वापस करने से मना कर रहा है।

काफी व्यस्त है यह रूट

बताया जाता है कि यह रूट काफी व्यस्त रहती है, क्योंकि इस रूट पर मालगाड़ियों का आवागमन भी होता है। दो लाइन होने के कारण एक-दूसरे को पास देने के लिए ट्रेनों को रोकना भी पड़ता है।

बाहनगां बाजार स्टेशन भी इसी रूट पर

बीते दो जून को बालेश्वर जिले के बाहनगां में हुई भीषण रेल त्रासदी वाला स्थल भी इसी रूट पर है। चूंकी यहां दो पर दो ही रेलवे लाइन है, इसलिए एक गाड़ी के रुके होने की स्थिति में पीछे की गाड़ियों को रूकना पड़ता है। यदि तीसरी लाइन होती तो अप और डाउन की दिशा में रूट खाली मिलता। यह हादसा भले ही दो जून को हुआ था और इसके हुए महीनों बीत गए, लेकिन आज तक इसकी यादें लोगों को कुरेती रहती हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही लावारिश मृतकों के शव का निपटान भुवनेश्वर में किया गया था। इतना ही नहीं इस हादसे में मृत और घायल हुए लोगों के सामान बालेश्वर में आज भी पड़े हुए हैं, जिसमें बैग, मोबाइल और नकदी भी शामिल हैं।

2023-24 तक पूरा करना था काम

नारायणगढ़-भद्रक रेलवे लाइन की तीहरीकरण योजना की मंजूरी की सूचना दक्षिण पूर्व रेलवे ने सात मार्च 2019 को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए दी थी। उसमें बताया गया था कि केंद्र सरकार ने नारायणगढ़ और भद्रक के बीच 24 स्टेशनों को कवर करने वाली तीसरी रेलवे लाइन को मंजूरी दे दी है। इससे लगभग 37.2 लाख मानव दिवसों के लिए प्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न करने में मदद मिलेगी। इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 1,866.31 करोड़ रुपये होगा और 2023-24 तक पूरा हो जाएगा, लेकिन सरकार की ओर से हालही में जारी एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यह परियोजना फरवरी 2025 तक पूरा हो सकती है। इसका मतलब है कि इस परियोजना को पूरा करने के लिए लक्षित समय से 21 महीने का अधिक समय लगेगा। अभी तक परियोजना का सिर्फ 45 फीसदी काम ही पूरा हो सका है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल क्या है  

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, जिसे हिन्दी में राष्ट्रीय हरित अधिकरण कहते हैं, भारत में एक वैधानिक निकाय है। इसे जो पर्यावरण संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के शीघ्र निपटान से संबंधित है। इसकी स्थापना 2010 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम के तहत की गई थी।

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