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सदियों पुरानी परंपरा को धता बताते हुए पिता की चिता को मुखाग्नि दी
नवरंगपुर। सदियों पुरानी परंपरा को धता बताते हुए ओडिशा के नवरंगपुर जिले में एक युवा लड़की ने अपने पिता की चिता को अग्नि दी और उनके अंतिम संस्कार के दौरान सभी अनुष्ठान किए। हालांकि मान्यताओं के अनुसार, जहां महिलाएं अंतिम संस्कार करने से दूर रहती हैं और उन्हें दाह संस्कार स्थल पर नहीं जाती हैं, वहीं आदिवासी बहुल नवरंगपुर जिले की युवा लड़की ने भावनात्मक रास्ता अपनाया और अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी।
एक स्थानीय ने कहा कि नवरंगपुर में पठानीसाही के मृतक कटेश्वर राव एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। वह कई गैरसरकारी संगठनों से जुड़े थे और उन्होंने समाज तथा गरीबों की भलाई के लिए बहुत कुछ किया। यह उस महान व्यक्ति को एक छोटी सी श्रद्धांजलि थी।
राव की बेटी आईवी रेशमा ने बताया कि मेरे पिता मुझसे बहुत प्यार करते थे। उन्होंने कभी लड़के या लड़की के बीच अंतर नहीं किया। इस कारण उसने उन्हें अलविदा कहते समय सबसे आगे रहना पसंद किया।
भावुक रेशमा ने आगे कहा कि सभी परिवारों में बेटे नहीं होते। उस मृत व्यक्ति का क्या होगा, जिसका कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं है? आज के समय में हमें बेटे और बेटी में फर्क नहीं करना चाहिए। मेरे पिता ने कभी भी मुझे किसी लड़के से अलग नहीं किया। उन्होंने मुझे समान अवसर और समान प्यार देकर बड़ा किया है। यह उनकी आखिरी इच्छा थी और मैंने इसे पूरा किया है।
रेशमा के इस कदम की लोग काफी सराहना भी कर रहे हैं। लोगों का मानना है कि उसने अपने नेक काम से एक मिसाल कायम की है कि अपने प्रियजनों को अंतिम सम्मान देना एक लड़की का अधिकार है। एक लड़की भी अलग नहीं है और वह भी उन सभी जिम्मेदारियों को निभा सकती है जो एक पुरुष निभा सकता है। इस तरह के कृत्य से समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच भेदभाव को समाप्त करने में काफी मदद मिलेगी।