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भाजपा नेत्री सुनीति मुंड

राजनीति में जनता का विकास ही लक्ष्य हो – सुनीति मुंड

  • कहा- देश के आधे नागरिक पलते हैं गरीबी रेखा से नीचे

  • उद्योग एवं कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन न होने के कारण नागरिकों की आर्थिक स्थिति अभी भी कमजोर

भुवनेश्वर। भाजपा नेत्री सुनिति मुंड ने आज आह्वान किया कि जनता का विकास ही लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे देश की आंतरिक अनुशासन व्यवस्था निम्न स्तर की देखी गयी है। पिछले कुछ वर्षों से इसे विभिन्न रूपों में देखा जा रहा है और इनके दुष्प्रभाव के कारण कुछ क्षेत्रों में आपदा भी आई है। औपनिवेशिक शासन के दौरान ऐसी अराजकता कानूनी व्यवस्था का हिस्सा बन गई, जिसके कारण दुनिया के कई देशों ने अपनी संप्रभुता खो दी। अराजकता, उपेक्षा के खिलाफ आम लोगों में पूंजीवादी असंतोष भड़क उठा या औपनिवेशिक शासन ने खुद के लिए आसन्न खतरे का सामना करते हुए लोगों की मांगों का सम्मान करके उन्हें उनके अधिकार और स्वतंत्रता वापस दे दी। परिणामस्वरूप, 19वीं शताब्दी तक, कई राष्ट्रों ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली और सरकार पर नियंत्रण कर लिया। इसी घटना क्रम में विश्व के अन्य देशों की तरह हमारा देश भारत भी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के 2000 वर्षों के लम्बे शासन से मुक्त हो गया। इस बीच 74 साल गुजर गये। इन 7 दशकों के दौरान युद्धग्रस्त जापान, जर्मनी और अरब देश अथक परिश्रम करके अपने देशों को पूर्ण विकसित राष्ट्र में बदलने में सफल रहे, लेकिन भारत में विकास नहीं हो सका। देश के आधे नागरिक गरीबी रेखा से नीचे पलते हैं। उद्योग एवं कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन न होने के कारण नागरिकों की आर्थिक स्थिति अभी भी कमज़ोर है। परिणामस्वरूप, वे स्वतंत्र राष्ट्र में संविधान द्वारा प्रदत्त मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इसके साथ ही राजनीति शब्द का वास्तविक अर्थ एवं उद्देश्य देश की शासन व्यवस्था में परिलक्षित नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि देश की शासन व्यवस्था में कुछ स्वार्थी राजनेताओं का प्रवेश ही सारी अव्यवस्था का कारण है और उनकी गतिविधियाँ अतीत के राजाओं के शासनकाल जैसी होती जा रही हैं। अंततः इससे भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलता है। ऐसी व्यवस्था में राजनेताओं या उनके परिवारों और अंधभक्तों का व्यक्तिगत विकास हो सकता है, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि यह जनविरोधी, समाज विरोधी और सबसे बढ़कर राष्ट्र विरोधी है।

उन्होंने कहा कि राजनीति में पक्षपात, व्यवहार और वाणी में अराजकता, न्याय व्यवस्था में शिथिलता और सबसे बढ़कर शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार को देश में अस्थिरता का मुख्य कारण माना जाता है।

देश की आजादी के 75 साल बाद भी हम समृद्ध संस्कृति, परंपरा और विरासत वाले राष्ट्र के रूप में शिखर पर नहीं पहुंच पाए हैं। ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद विकास की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ रही थी, पिछले कुछ वर्षों में इसमें तेजी आई है और इसका लाभ सार्वजनिक जीवन के क्षेत्र में देखा जा सकता है। विकास का लक्ष्य ‘जनता’ के बजाय ‘जनता’ है, जो देश की संपूर्ण प्रगति के पहिये को आगे बढ़ाता है। यह आशा करना मूर्खता है कि हर कोई शुद्ध सोना बन जाएगा। लेकिन देश के संविधान का अपमान करने वाले और देश की सांस्कृतिक और भावनात्मक डोर को कमजोर करने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसका परिणाम तो उन्हें भुगतना पड़ रहा है, लेकिन इसके साथ ही उनके लिए व्यवस्थित शासन, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे सिद्धांतों की पहचान करने और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि उन्हें भ्रष्ट आचरण से रोका जा सके। यदि नहीं तो उनकी संख्या असुरों के कुल की भाँति बढ़ती रहेगी, जो सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए विपत्ति एवं विनाश का कारण बनेगी।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक नागरिक का राष्ट्र के प्रति दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए, यह बताने, पढ़ाने और सिखाने में हमारी कक्षा शिक्षा व्यवस्था फिसड्डी है। देश के भावी नागरिकों को नैतिक एवं राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने की नितांत आवश्यकता है। इस क्षेत्र में पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था का भी प्रमुख उत्तरदायित्व है।

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