(प्रशंगवश)
हेमन्त कुमार तिवारी, इण्डो एशियन टाइम्स, भुवनेश्वर।
ओडिशा में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम ने पुरानी स्मृतियां ताजा कर दी हैं। यहां का शासन तंत्र नायक फिल्म से प्रेरित दिखता महसूस हो रहा है, लेकिन कार्यशैली अपनाने से पहले परिस्थितियों में थोड़ा मोडिफिकेशन किया गया है। यदि ऐसा नहीं होता, तो न तो इतनी पब्लिसिटी मिलती और ना ही लोगों का अटेंशन। नए शासन की पटकथा पड़ोसी राज्य में प्रचलित वर्क कल्चर पर आधारित दिख रही है।
दरअसर, यहां की शासन चलाने की परिस्थितियां आउटसोर्स वर्क कल्चर पर आधारित है। पश्चिम बंगाल में रहने के दौरान मैंने ऐसा आउटसोर्स वर्क कल्चर जूट मिलों में देखा था। एक समय था, जब अपरेंटिस का बोलबाला था। उस समय माना जाता था कि पढ़ाई से ज्यादा अपरेटिंस मायने रखता है। इसके तहत फैक्ट्रियों में युवाओं को काम सिखने का अवसर मिलता था। हर साल कंपनियां कुछ युवाओं को अपने यहां अपरेंटिस पर नियुक्तियां करती थीं। इस नियुक्ति के दो फायदे होते थे। पहला यह कि युवाओं को काम करने की शैली सीखने को मिलती थी और दूसरा यह कि विकट परिस्थितियों में स्थायी तौर पर नियुक्त कर्मचारियों को लिए उनके काम का जानकार एक मददगार मिल जाता था। स्थायी तौर पर नियुक्त कर्मचारी ऐसे अपरेंटिस पर नियुक्त युवाओं का भरपूर फायदा उठाते थे। जब उनका मन काम नहीं करने का होता था, तो वे घर चले जाते थे या वहीं मिल में आराम करते थे तथा अपरेंटिस में नियुक्त युवक उनकी जगह पर काम करता था। जब युवक काम दक्ष हो जाता था और पूरा काम संभालने लगता था, तो अक्सर बुजुर्ग और रिटारमेंट के कगार पहुंचे स्थायी कर्मचारी ऐसे युवाओं को अपना काम सौंप देते थे। कार्यावधि के दौरान वे सिर्फ हाजिरी लगाने मिल में पहुंचते थे और उसके बाद वह आराम फरमाते थे। उनका पूरा काम युवा संभालता था। महीने के अंत में जो कुछ स्थायी कर्मचारी का वेतन बनता था, उसका सहमति एक भाग अपरेंटिस पर नियुक्त युवक को मजदूरी के रूप में मिलता था। उस समय जूट मिलों में “भागे पर काम” करके बेरोजगार भी बहुत खुश होते थे कि उन्हें कुछ जिम्मेदारियां मिली हैं और वह उसे पूरा कर रहे हैं। उनके परिवार को लोग भी उसे जिम्मेदार मानते थे और उनकी बातों को तबज्जो दिया जाता था। पश्चिम बंगाल के जूट मिलों में काम करने वाले ओडिशा या अन्य प्रदेशों के लोग इस “भागे के वर्क कल्चर” से अच्छी तरह से वाकिफ हैं।
कुछ ऐसी ही परिस्थियां ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल की सरकार में देखने को मिल रही हैं। ओडिशा में कुछ दिनों पहले भारतीय जनता पार्टी की ओडिशा प्रदेश इकाई के प्रवक्ता प्रवक्ता अनिल बिश्वाल ने पार्टी कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए दावा किया कि ओडिशा मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक आरटीआई में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के निजी सचिव वीके पांडियन को दौरे पर भेजने की अनुमति नहीं दी गई। इतना ही नहीं, हेलीकॉप्टर के प्रयोग की जानकारी भी मुख्यमंत्री कार्यालय को नहीं है। भाजपा प्रवक्ता के इस खुलासे के बाद राजनीति गरमा गई और नौकरशाह से राजनीति में आईँ भाजपा की केंद्रीय प्रवक्ता और भुवनेश्वर की सांसद अपराजिता षाड़ंगी तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा राज्य के पूर्व मुख्य सचिव विजय पटनायक ने अखिल भारतीय सर्विस कंडक्ट रुल का बार-बार उल्लंघन का हवाला देते हुए 5-टी सचिव वीके पांडियन के खिलाफ केंद्र से कार्रवाई की मांग कर दी।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने भी यह मांग की। सांसद अपराजिता षाड़ंगी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सालम की मांगों और उनके द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर केन्द्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के सचिव ने राज्य के मुख्य सचिव प्रदीप जेना को पत्र लिखकर नौकरशाह वीके पांडियन के खिलाफ जांच करने का निर्देश दे दिया है। चूंकी राज्य सरकार इस कैडर का कंट्रोलिंग अधिकारी होती है, ऐसी स्थिति में अखिल भारतीय सर्विस कंडक्ट रुल का उल्लंघन के प्रमाण मिलने के आधार पर आवश्यक कार्रवाई करने के लिए मुख्य सचिव से कहा गया है।
अब सवाल उठना है लाजिमी है कि क्या मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के निजी सचिव वीके पांडियन के खिलाफ कार्रवाई होगी, क्योंकि सर्वविदित है कि ओडिशा में सरकार पश्चिम बंगाल के जूट मिल के वर्क कल्चर “भागे” की तर्ज पर संचालित हो रही है और सत्तारूढ़ दल बीजद के चयनित जनप्रतिनिधि और मंत्री आवभगत की ड्यूटी संभाले हुए हैं।
सवाल उठना है यह लाजिमी है कि राज्य के मुख्य सचिव के भी कंट्रोलिंग अधिकारी राज्य सरकार है, तो क्या वह निष्पक्षता पूर्वक अपनी दायित्यों का निर्वहन कर पाएंगे? यह सवाल सिर्फ मेरे नहीं हैं, आमजन का भी है, क्योंकि अब मुख्यमंत्री का एक ऑडियो भी सामने आ गया है, जिसमें सुना जा सकता है कि मैंने अपने सचिव पांडियन बाबू को आपकी भलाई के बारे में पूछने और आपकी समस्याओं का समाधान करने के लिए भेजा है। मैं आपकी शिकायतों का समाधान करूंगा। मुख्यमंत्री के इस ऑडियो ने पश्चिम बंगाल से जुड़ी “भागे के वर्क कल्चर” की स्मृतियां ताजा करा दी।