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गजपति महाराज ने रथयात्रा के दौरान रथों पर किया छेरापहंरा
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महाराजा ने रथों पर झाड़ू लगाकर दिया मानवीय समानता का संदेश
हेमन्त कुमार तिवारी, पुरी।
कहा जाता है कि महाप्रभु श्री जगन्नाथ के समक्ष ना तो कोई राजा है और ना ही कोई रंक। प्रभु के समक्ष सभी भक्त एक समान होते हैं। आज इसका उदाहरण एक बार फिर देखने को मिला है। हर साल की तरह इस साल भी गजपति महाराजा दिव्यसिंह देव ने पुरी में रथयात्रा के दौरान महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों पर निर्धारित नीतियों के अनुसार छेरा पहंरा किया। छेरापहंरा की नीति का मतलब एक राजा द्वारा रथों की सफाई करना होता है। रथयात्रा में इस नीति का एक अपना अलग महत्व होता है और इसे राजा ही पूरा करते हैं। हर साल की तरह निर्धारित समय पर गजपति महाराज सफेद पोशाक पहने हुए महल से एक सुसज्जित पालकी में आए। इसके बाद वह पूजा करने के बाद रथों झाड़ू से सफाई की। राजा जिस झाड़ू से सफाई करते हैं, उसका हैंडल सोने का होता है। छेरा पहंरा नीति के दौरान एक दिलचस्प दृश्य भी देखने को मिलता है। जैसे ही जैसे ही राजा वहां पहुंचते हैं, वहां पुष्प फेंके जाते हैं और राजा को उसे साफ करना पड़ता है। इस नीति के पूरान होने के बाद रथों को पवित्र करने के लिए उनके ऊपर सुगन्धित चन्दन का जल छिड़का जाता है।
रथयात्रा में छेरा पहंरा की नीति दर्शाती है कि प्रभु के दरबार में राजा और रंक के बीच कोई भेद नहीं है, क्योंकि राजा भी सेवक होता है। सदियों पहले शुरू हुई रस्म यह संदेश देती रही है कि सर्वशक्तिमान भगवान के सामने जाति, पंथ और किसी भी अन्य बाधा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। गजपति महाराजा द्वारा रथों की सफाई करने और उनके महल में जाने के बाद भूरे, काले और सफेद रंग में रंगे हुए लकड़ी के घोड़े को तीनों रथों में लगाया जाता है और रथ खींचना शुरू होता है।