भुवनेश्वर। स्थानीय राम मंदिर यूनिट-3 में चल रही देवी भागवत में कथाव्यास श्रीकांत शर्मा ने बताया कि सत्य के तेज से ही सूरज चमकता है, धरती चलती है, सत्यम अपने आप में सदैव सत्य रहता है। सत्य जब तक किताबों में कैद रहता है, तब तक बुझा हुआ दीपक रहता है। यूं कहें बिना सुगंध का फल रहता है, लेकिन वही सत्य जीवन में उतर जाता है, तो मां की वीणा की झंकार हो जाता है, क्योंकि वैसा तभी संभव हो पाता है, जब मां की उंगलियां अपने स्नेहिल भाव से जीव को सहलाने में क्रियाशील हो जाती है। यह विचार मां की व्याख्या करते हुए उन्होंने व्यक्त की। उन्होंने कहा कि संसार में किसी कार्य की सिद्धि के लिए मुख्यतः तीन तत्व होते हैं। प्रथम इच्छाशक्ति, द्वितीय ज्ञान शक्ति और तृतीय क्रियाशक्ति। मन में किसी के संदर्भ में ज्ञान होने के बाद उसे पाने की इच्छा होती है। इसलिए मां भगवती दुर्गा को क्रियाशक्ति माना जाता है। सात्विक आहार के साथ नवरात्र रखने नित्य मां का भजन करने मात्र से जीवन की बड़ी से बड़ी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। जीवन में निर्भयता और विश्वास को बल मिलता है। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण को जो भी जीवन में सफलता मिली, वह सब मां सीता और मां रुकमणी द्वारा मां भगवती की उपासना आराधना के फलस्वरूप ही मिली। उन्होंने कहा कि रावण को भगवान श्रीराम ने बध किया, लेकिन उसके वंश का विनाश नहीं हुआ। दस मुख वाला रावण मरा तो जरूर, किंतु सत्य वाले रावण का अंत नहीं हुआ।
जग में आस्था से बड़ी कोई शक्ति नहीं और निष्ठा से बड़ा कोई बल नहीं। मां भगवती के प्रति निष्ठा का होना जरूरी है। देवी भागवत कथा के प्रत्येक श्लोक में जीवन को सार्थक और आनंदमय बनाने का गुण निहित है, तो जग कल्याण के सूत्र भी है। मां गले लगा ले तो डर रह नहीं जाता। इसलिए कहता हूं कि सुबह मां का आशीर्वाद लेकर ही निकलें। कल्याण ही कल्याण होगा। मेरा मानना है कि निर्बल होना अपराध है, जबकि निर्मल होना मां भगवती की प्राप्ति है। दुनिया में पुण्य पाप कर्म के अलावा व्यर्थ कर्म भी होता है। राजा हरिश्चंद्र ने कभी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। इसलिए मां भुवनेश्वरी ने भी उनके हिस्से यस और कृति को बरकरार रखा। कहने का अभिप्राय यह है कि हर हाल में जो मां के प्रति नतमस्तक होता है। उसका कल्याण होना तय है। संसार के सारे लोग मिलकर इतना पाप नहीं कर सकते, जितना मां का नाम पापनाश कर सकता है। उन्होंने देवी भागवत की कथा श्रवण को जीवनोपयोगी बताया। उन्होंने यह भी बताया कि राजा सिर्फ युद्ध कर सकता है, लेकिन ब्राह्मण क्षमा कर सकता है। साथ ही साथ ओम् मंत्रोच्चारण की भी उन्होंने श्रोताओं से अपील की। इस अवसर पर प्रस्तुत राजा जनक की झांकी प्रेरणादायक रही।