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हिन्दी हमें ऊर्जावान, संस्कारी बनाती है, पर इसको आज है हमारे सहारे की जरूरत : महालेखाकरार, ओडिशा
भुवनेश्वर। हिन्दी हमें ऊर्जावान बनाती है, संस्कारी बनाती है, मगर उसकी हालत आज इतनी दयनीय हो गई है कि इसको आज हमारे सहारे की जरूरत है। उक्त बातें ओडिशा महालेखाकार विश्वनाथ सिंह जादौन ने कवि किशन खंडेलवाल द्वारा लिखित काव्य पुस्तक जब हम गरीब थे के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर भाग लेते हुए कहीं। महालेखाकर विश्वनाथ सिंह जादौन ने कहा कि इस पुस्तक में नव रसों को समाहित करने के साथ ही हमारे बदले परिवार, समाज व संस्कृति की चिंता इस 80 पेज के कवित संकलन में दर्शाया गया है। उन्होंने कहा कि कवि की रचनावली कुछ पंक्तियां जहां आपको गुदगुदाएंगी, तो वहीं कुछ पंक्तियां आपको रुलाने का भी काम करेंगी। यह काव्य संकलन केवल एक पुस्तक नहीं बल्कि यह एक महाकाव्य है, जो पूरी तरह से सच्ची घटनाओं का वर्णन करने के साथ ही संस्कार एवं शीलवान बनाने की प्रेरणा देती है। समारोह में अन्यतम अतिथि के रूप में उपस्थित वाचनालय के संरक्षक सुभाष भुरा ने कहा कि समाज में साहित्य नहीं रहेगा, तो कल्चर नहीं होगा और कल्चर नहीं बचेगा तो फिर समाज नहीं होगा। उन्होंने कहा कि कल्चर को वंधनों से मुक्त होना चाहिए। सुभाष भुरा ने उत्कल अनुज वाचनालय को हिन्दी संस्कृति एवं ओडिआ संस्कृति का मेल बताया।
समारोह में मंच संचालन रामकिशरो शर्मा ने किया, जबकि विशिष्ट साहित्यकार व लेखकर एके पांडेय, वरिष्ठ साहित्यकार डा शंकरलाल पुरोहित, मारवाड़ी सोसाइटी के अध्यक्ष संजय लाठ, लाल चन्द मोहता, प्रकाश बेताला के साथ पूरा वाचनालय परिवार ने किशन खंडेलवाल को उनके काव्य संकलन के लिए उन्हें बधाई दी। महालेखाकार ने अपने पिता जी की लिखित एक पुस्तक वाचनालय को भेंट की। अंत में शिवकुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।