भुवनेश्वर. विश्व गुर्दा दिवस के अवसर पर केयर हॉस्पिटल भुवनेश्वर ने शहर में गुर्दा मरीज़ों के इलाज के लिए समग्र बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है। आईडीसी एक समन्वित, मरीज-उन्मुख दृष्टिकोण है, जो कुछ आम लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित करता है। क्रोनिक गुर्दा रोगों के लिए इस बहु-आयामी दृष्टिकोण में नेफ्रोलोजिस्ट्स एवं विभिन्न क्षेत्रों से स्वास्थ्यसेवा प्रदाता (जैसे फिज़िशियन एस्टेंडर, फार्मासिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता एवं डायटीशियन) शामिल हैं, जो एक साथ मिलकर क्रोनिक गुर्दा रोगों की देखभाल के लिए प्रमाण उन्मुख प्रोटोकॉल पर काम करेंगे।
समन्वित मरीज़ उन्मुख दृष्टिकोण के तहत अस्पताल ने विशेष किडनी ट्रांसप्लान्ट क्लिनिक का लॉन्च भी किया. साथ ही देश में बढ़ते गुर्दा रोगों को देखते हुए किडनी ट्रांसप्लान्टेशन के लिए विशेष एक महीने के पैकेज भी पेश किया है। देशभर से नेफ्रोलोजिस्ट्स की टीम इस क्लिनिक में शामिल होगी। इनमें – प्रोफेसर एसके पलित, एमबीबीएस, एमडी, डीएम नेफ्रोलोजिस्ट एवं हेड डिपार्टमेन्ट ऑफ नेफ्रोलोजी, एससीबी मेडिकल कॉलेज, कटक एवं किडनी ट्रांसप्लान्ट में अनुभवी डॉ एके पंडा, एमबीबीएस, एमडी, डीएम नेफ्रोलोजिस्ट, सीनियर कन्सलटेन्ट नेफ्रोलोजी शामिल हैं। सन्वित मरीज उन्मुख दृष्टिकोण पर बात करते हुए प्रोफेसर एसके पलित, डायरेक्टर एमेरिटस नेफ्रोलोजी, केयर हॉस्पिटल्स ने कहा कि गुर्दा रोगों के मुख्य कारण हैं- डायबिटीज़ यानि मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कार्डियोवैस्कुलर रोग, मोटापा, किडनी की असामान्य सरंचना एवं वृद्धावस्था आदि।
क्रोनिक किडनी रोगों के उपचार के लिए इन कारकों पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। बहु-आयामी दृष्टिकोण के द्वारा डॉक्टर मरीज़ों के साथ तालमेल बनाते हुए योजना बना सकते हैं और आधुनिक पेशेवरों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं, जहां हर सेवा प्रदाता से मिले इनपुट पर विचार किया जाता है और मरीज़ों की अनुकूलित देखभाल के लिए उनके फायदे और जोखिम को ध्यान में रखते हुए योजना बनाई जाती है। क्लिनिक के बारे में बात करते हुए डॉ एके पंडा, सीनियर कन्सलटेन्ट, नेफ्रोलोजी ने कहा कि हमारे क्लिनिक की आईडीसी टीम में फिज़िशियन, अडवान्स्ड प्रेक्टिस प्रदाता, नर्सें, डायटीशियन, पैरामेडिक्स एवं सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं, जो एक साथ मिलकर गुर्दा रोगों के मरीज़ों को प्रभावी देखभाल प्रदान करते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि आईडीसी के द्वारा मरीज़ों को किडनी फेलियर से पहले जागरुक बनाया जा सकता है, संभावी पहलुओं के लिए तैयार किया जा सकता है। इन दोनों कारकों से स्वास्थ्य के परिणामों में सुधार आता है। बहु-आयामी देखभाल के द्वारा अंतिम अवस्था के गुर्दा रोगों की ओर बढ़ने की गति तथा मृत्यु की संभावना को कम किया जा सकता है। भारत में सीकेडी 10 फीसदी व्यस्क आबादी को प्रभावित करते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक हर साल देश में अंतिम अवस्था के गुर्दा रोगों के 2.2 लाख नए मरीज़ शामिल हो जाते हैं। केयर हॉस्पिटल्स में गुर्दा रोगों के मरीज़ों के लिए बहु-आयामी देखभाल उपलब्ध कराई जाती है इनमें शामिल हैं- आहार पर काउन्सलिंग, दवाएं, समीक्षा, डायलिसिस एक्सेस प्लेसमेन्ट, ट्रांसप्लान्ट के लिए तालमेल, आधुनिक योजना एवं उपचार के विकल्पों के बारे में जानकारी।