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राज्य के विभिन्न हिस्सों में रोग की पहचान और उपचार के लिए उठाये जा रहे हैं कदम
भुवनेश्वर। ओडिशा में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राज्य सरकार ने प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में सिकल सेल की पहचान और उपचार करने को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। यह जानकारी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा आज जारी कार्यालयीय आदेश से मिली है।
इसमें विभाग की सचिव शालिनी पंडित ने कहा कि इस बीमारी को लेकर अभियान के कार्यान्वयन और निगरानी तथा लाभार्थियों के बीच समन्वय के लिए राज्य से ब्लॉक स्तर तक संस्थागत व्यवस्था की जाएगी।
निपटने को बनेंगी समन्वय और निगरानी समितियां
सचिव शालिनी पंडित ने कहा कि राज्य सरकार ने सिकल सेल रोगों (एससीडी) से निपटने के लिए राज्य, जिला और ब्लॉक स्तरों पर समन्वय और निगरानी समितियों के गठन का आदेश दिया है। जिलास्तरीय समिति का गठन संबंधित जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में होगा। संसद सदस्य जिलास्तरीय समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे।
जिला कल्याण अधिकारी, मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला सामाजिक सुरक्षा अधिकारी, दो शैक्षणिक संस्थानों के प्रतिनिधि और संबंधित जिले में जनजातीय स्वास्थ्य के लिए कार्यरत तीन प्रमुख नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधि सदस्य होंगे। जिले के सीडीएमओ व जन स्वास्थ्य अधिकारी समिति के सदस्य सचिव व संयोजक के रूप में कार्य करेंगे।
ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी की अध्यक्षता में ब्लॉकस्तरीय समिति काम करेगी, जिसके को-चेयरमैन कल्याण विकास अधिकारी होंगे।
खंड शिक्षा अधिकारी, खंड सामाजिक सुरक्षा अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) और तीन नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों को सदस्य के रूप में लिया गया। सीडीपीओ सदस्य संयोजक के रूप में काम करेंगे।
राज्यस्तरीय उप-समिति का गठन
सचिव शालिनी पंडित ने कहा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में राज्यस्तरीय उप-समिति का गठन किया गया है, जिसमें निदेशक एनएचएम को-चेयरपर्सन हैं। इसके साथ ही विद्यालय एवं जनशिक्षा, अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग विकास, सामाजिक सुरक्षा एवं नि:शक्तजन अधिकारिता एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के निदेशकों को सदस्य बनाया गया। इसमें अकादमिक संस्थानों के अन्य सदस्यों में परियोजना समन्वयक ओडिशा सिकल सेल प्रोजेक्ट, विमसार बुर्ला और हेमटोलॉजी विभाग के प्रमुख, एससीबी मेडिकल कॉलेज, कटक शामिल हैं।
इसी तरह, तीन नागरिक सामाजिक संगठन अर्थात तस्वेल, ओडिशा, हीमोफीलिया सोसाइटी, कटक; और हीमोफिलिया सोसायटी, भुवनेश्वर को सदस्य के रूप में लिया गया।
इसके अलावा निदेशक सीएमसी, वेल्लोर और निदेशक आरएमआरसी, भुवनेश्वर को भी तकनीकी भागीदारों के रूप में शामिल किया गया था। सिकल सेल मिशन ओडिशा के लिए निदेशक रक्त सुरक्षा सह नोडल अधिकारी राज्य स्तरीय उप-समिति के सदस्य संयोजक के रूप में काम करेंगे। समिति राज्य में एससीडी कार्यक्रमों की नीति निर्माण, तकनीकी सहायता और समग्र निगरानी के लिए काम करेगी।
निदेशक रक्त सुरक्षा नोडल अधिकारी
पंडित ने कहा कि रक्त सुरक्षा के निदेशख राष्ट्रीय सिकल सेल मिशन के लिए नोडल अधिकारी के रूप में काम करेंगे। वह राज्यस्तरीय उप-समिति की बैठक बुलाएंगे, सार्वभौमिक स्क्रीनिंग के लिए योजना तैयार करेंगे, इस राज्य में उत्कृष्टता के केंद्रों की पहचान और समर्थन करेंगे, बजट तैयार करेंगे और उपलब्ध स्रोतों से अनुदान का लाभ उठाएंगे। इसके साथ ही हितधारकों का समन्वय करेंगे, राज्य-विशिष्ट एसओपी विकसित करेंगे और उसे अभ्यास में लायेंगे।
सिकलिन बीमारी से क्या होता है?
सिकल सेल एनीमिया खून से जुड़ी बीमारी है। इसमें शरीर में पाई जाने वाली लाल रक्त कणिकाएं गोलाकार होती हैं, लेकिन बाद में वह हंसिए की तरह बन जाती है। वह धमनियों में अवरोध उत्पन्न करती हैं। इससे शरीर में हिमोग्लोबिन व खून की कमी होने लगती है।
सिकल सेल खराब क्यों होते हैं?
सिकल कोशिकाएं जो अंगों में रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं, प्रभावित अंगों को रक्त और ऑक्सीजन से वंचित कर देती हैं। सिकल सेल एनीमिया में रक्त में ऑक्सीजन की कमी भी होती है। ऑक्सीजन युक्त रक्त की कमी गुर्दे, यकृत और प्लीहा सहित नसों और अंगों को नुकसान पहुंचा सकती है और घातक हो सकती है।
सिकल सेल कितने प्रकार के होते है?
सिकल सेल प्रमुख रूप से दो प्रकार से होता है। एक सिकलसेल वाहक (सिकल ट्रेट) और दूसरा सिकल धारक (सिकल सेल एनीमिया) है।
सिकल सेल के लक्षण
इस बीमारी के कारण लोगों को यह अनुभव हो सकते हैं- जोड़ों में और छाती में अचानक दर्द हो सकते हैं। अच्छा महसूस न करना, चक्कर आना, थकान, या शरीर में कम ऑक्सीजन,
पेशाब में खून या सांद्र या तनु पेशाब बनाने की असमर्थता होना भी इसके लक्षण हैं।
लाल रक्त कोशिकाओं का असामान्य रूप से टूटना, त्वचा का पीलापन, पीली त्वचा और आंखें, सांस फूलना, या हाथों या पैरों की अंगुलियों में जलन भी इसके लक्षण हो सकते हैं।
विवाह से भी जुड़ा है संबंध
मान्यता है कि एक गोत्र में शादी होने के कारण इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। इसलिए कई जातिवर्ग में आम तौर एक गोत्र में शादी करने से लोग बचते हैं, लेकिन कुछ जातियों में एक गोत्र में शादी करने का रिवाज है। इसी कारण यह बीमारी फैलती है।