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साल 2018 में आए चक्रवात तितली से गजपति में 1200 से अधिक पेड़ों को पहुंचा था नुकसान
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वन विभाग ने महेंद्रगिरि की पहाड़ियों से लाल चंदन को एकत्र किया
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क्या होगा चंदन की लकड़ियों का, उठे सवाल
ब्रह्मपुर। ओडिशा वन विकास निगम (ओएफडीसी) ने पिछले चार साल से गंजाम जिले के ब्रह्मपुर स्थित अपने गोदाम में 400 करोड़ रुपये से अधिक की लाल चंदन की लकड़ी का भंडारण किया है। बताया जाता है कि साल 2018 में ओडिशा में आए चक्रवात तितली से गजपति जिले में 1200 से अधिक पेड़ों को नुकसान पहुंचा था। वन विभाग ने इन लकड़ियों को महेंद्रगिरि की पहाड़ियों से एकत्र किया था। लकड़ी को इकट्ठा करने के बाद वन विभाग ने इसे ब्रह्मपुर स्थित अपने गोदाम में रख लिया।
कहा जा रहा है कि बिना फायर सेफ्टी सिस्टम और सीसीटीवी की निगरानी वाले एस्बेस्टस गोदाम में निजी सुरक्षा व्यवस्था की देखरेख में लाल चंदन पिछले चार साल से पड़ा हुआ है।
एक किलो लाल चंदन की कीमत 80 हजार रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक बताई जाती है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में यह लाखों में बिकती है।
इसकी उच्च कीमत और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग के कारण इसकी गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए इसे नमी नियंत्रित गोदामों में उच्च सुरक्षा क्षेत्र में संग्रहित किया जाना चाहिए।
930 टन वजन की लाल चंदन की लकड़ियों को रखने के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गयी है। हालांकि केंद्र ने साल 2021 में एक साल के भीतर ग्लोबल टेंडर के जरिए 810 मीट्रिक टन लकड़ी बेचने की मंजूरी दी थी, लेकिन आरोप उठ रहा है कि ओएफडीसी अक्टूबर 2022 तक एक वर्ष की अवधि के भीतर निविदा जारी करने में विफल रहा।
लकड़ी की बिक्री में देरी से सरकार को भारी राजस्व का नुकसान हो सकता है, क्योंकि उचित भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण लाल चंदन की गुणवत्ता खराब हो सकती है।
ओएफडीसी ने प्रत्येक आठ घंटे की शिफ्ट में दो बंदूकधारियों और चार सुरक्षा गार्डों के साथ गोदाम की निगरानी के लिए 18 निजी सुरक्षा कर्मियों को लगाया है।
एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी ने कहा कि कीट और दीमक के हमले से बचने के लिए लाल चंदन को नमी नियंत्रित जगह पर रखा जाना चाहिए।
लाल चंदन लाल रंग का होता है और इसके कई अच्छे फायदे हैं। इसका प्रयोग दवाओं को बनाने के साथ-साथ ब्यूटी प्रोजेक्ट बनाने में किया जाता है।
लाल चंदन मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश की शेषचलम पहाड़ियों में पाया जाता है। ओडिशा में, यह मुख्य रूप से गजपति जिले में पाया जाता है। इसकी लकड़ी के अत्यधिक दोहन के कारण इसे एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
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