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संबलपुर में हाईकोर्ट की स्थायी पीठ की मांग को हड़ताल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आया फैसला

  •  आंदोलन कर रहे वकील काम पर लौटें नहीं रद्द होगा लाइसेंस

  •  काम पर नहीं लौटने पर आंदोलनकर्ताओं के लाइसेंस बार काउंसिल ऑफ इंडिया से होंगे निलंबित

भुवनेश्वर। संबलपुर में उच्च न्यायालय की स्थायी पीठ की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले वकीलों की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। विरोध के संबंध में ओडिशा उच्च न्यायालय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को आंदोलनकारी वकीलों को काम पर वापस जाने के लिए कहा है और साथ ही यह भी कहा है कि काम पर नहीं लौटने पर उनका लाइसेंस बार काउंसिल ऑफ इंडिया से निलंबित कर दिया जाएगा।
पश्चिमी ओडिशा में संबलपुर में उच्च न्यायालय की स्थायी पीठ की मांग को लेकर वकील हड़ताल कर रहे हैं। वकीलों की जारी हड़ताल पर कड़ी आपत्ति जताते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और अभय एस ओका की पीठ ने आंदोलन कर रहे वकीलों को बुधवार से काम पर लौटने का निर्देश दिया अन्यथा उनका लाइसेंस या तो निलंबित कर दिया जाएगा या रद्द कर दिया जाएगा।
पीठ ने यह भी कहा कि आदेश का पालन करने में उनकी विफलता के परिणामस्वरूप उन्हें अपने रोजगार का स्रोत खोना पड़ सकता है। पीठ ने महसूस किया कि वकीलों की चल रही हड़ताल से अदालती कामकाज प्रभावित हो रहा है।
ओडिशा उच्च न्यायालय ने कई जिलों में वकीलों के अपने काम से अनुपस्थित रहने के संबंध में एक याचिका दायर की थी। इस घटनाक्रम पर 11 नवंबर को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने ओडिशा बार एसोसिएशन के सचिव और राज्य भर के जिला बार एसोसिएशनों के सचिवों को 14 नवंबर को याचिका पर अगली सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट के वकील उमाकांत मिश्र ने बताया कि न्याय तक पहुंच लोगों का अधिकार है। और वकील उस पहुंच को प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बेंच ने महसूस किया कि विभिन्न जिलों में वकीलों की हड़ताल के कारण अदालती कामकाज प्रभावित हो रहा है।
मिश्र ने कहा कि उनके पास एक रिपोर्ट है जिसमें कहा गया है कि 1 जनवरी, 2022 और 30 सितंबर, 2022 के बीच हड़ताल के कारण कुल 2,14,176 न्यायिक कार्य घंटे नष्ट हो गए।
संबलपुर में पश्चिमी ओडिशा में उड़ीसा उच्च न्यायालय की स्थायी पीठ की लंबे समय से मांग की जा रही है। आंदोलनकारी वकीलों ने आरोप लगाया कि केंद्र ने स्थायी पीठ की स्थापना के लिए पूर्ण प्रस्ताव मांगा था, जबकि ओडिशा सरकार ने अभी तक इस संबंध में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया है।

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