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प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन
ध्यान किसी जाति, वर्ण या सम्प्रदाय से बंधा हुआ नहीं होता उसका संबंध आत्म शुद्धि से है। मुनि जिनेश कुमार ने आगे कहा- जैनधर्म में प्राचीनकाल से ध्यान की विधियों प्रचलित रही है। ध्यान साधक एवं अनुसंधाता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने विच्छिन्न हुई ध्यान परंपरा को प्रेक्षाध्यान के रूप में आविष्कृत कर मानव जाति पर महान उपकार किया है। प्रेक्षाध्यान पद्धति अध्यात्म व विज्ञान के समन्वय का सुन्दर उदाहरण है। प्रेक्षाध्यान तनाव मुक्ति की उत्तम प्रक्रिया है। तनावग्रस्त युवापीढ़ी के लिए प्रेक्षाध्यान वरदान है प्रेक्षाध्यान में कायोत्सर्ग, श्वासप्रेक्षा, अंतर्यात्रा, ज्योति केन्द्र प्रेक्षा आदि प्रयोग करवाए जाते हैं। प्रेसाध्यान में उपसंपदा का भी बहुत बड़ा महत्त्व है उपसंपदा का अर्थ है- एक प्रकार की शपथ, दीक्षा । भावक्रिया, प्रतिक्रिया विरति मैत्री, मिताहार, मितभाषण उपसंपदा के सूत्र है। ध्यान के द्वारा जीवन व्यवहार में परिवर्तन होता है। इस अवसर पर मुनिश्री परमानंद जी ने कहा – प्रेक्षाध्यान कर्मनिर्जरा व तनाव मुक्ति का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए । कार्यक्रम का शुभारंभ बाल मुनि कुणाल कुमार जी द्वारा प्रेक्षागीत के संगान से हुआ। आभार ज्ञापन श्रीमती समता सेठिया ने लिया ।