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हिन्दी पखवाड़ा पर विशेष – साहित्यजगत को अनुपम भेंट है उत्कल अनुज हिन्दी वाचनालय

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर।
कबीर दास ने लिखा है कि “निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’’ इसका अर्थ है कि जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ करता है। कबीर दास यह पंक्ति आज के समय में अपने आप में काफी मायने रखती है।
समाज में यदि आलोचकों की संख्या नगण्य हो जाये, तो सुनिश्चित करना मुश्किल हो जायेगा कि समाज किस दिशा की ओर अग्रसर है। समाज आलोचना की जिम्मेदारियां साहित्यकारों, लेखकों, कवियों और पत्रकारों के कंधे पर है। राजनीति में विपक्षी दलों के कंधों पर यह जिम्मेदारियों रहती हैं। ऐसे में साहित्यकारों का मंच काफी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करता है।
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के सत्यनगर स्थित “उत्कल अनुज हिन्दी वाचनालय’’ भी एक ऐसा मंच है, जहां हिन्दी के साहित्यकार एकजुट होते हैं। गैरहिन्दीभाषी प्रदेश में हिन्दी साहित्यकारों के लिए यह अनुपम भेंट है।
राजधानी भुवनेश्वर के 29, सत्यनगर स्थित “उत्कल अनुज हिन्दी वाचनालय’’ की स्थापना 21 मार्च 2015 को की गयी थी। भुवनेश्वर के विख्यात उद्योगपति और समाजसेवी सुभाष चंद्र भुरा ने अपने बेटे के नाम अनुज के नाम पर प्रस्तावित “उत्कल अनुज हिन्दी वाचनालय’’ को मूर्त रूप प्रदान किया। बताया जाता है कि यहां पर हिन्दी की लगभग 7500 किताबें उपलब्ध हैं। इसमें संदर्भ ग्रंथों की संख्या अधिक है। रामचरित मानस लेकर श्रीमद्भागवत तक उपलब्ध हैं। यहां पर जैनग्रंथ भी अधिक संख्या उपलब्ध हैं।
केंद्रीय हिन्दी निदेशालय नई दिल्ली भी “उत्कल अनुज हिन्दी वाचनालय’’ को मुफ्त में हिन्दी किताबें उपलब्ध कराते रहता है। इसके संचालन पर होने वाले सभी खर्च समाजसेवी सुभाष चंद्र भुरा वहन करते हैं। उनका कहना है कि हमें यह सौभाग्य मिला कि हम आज हिन्दी साहित्य की सेवा कर पा रहे हैं। ओडिशा के जाने में हिन्दी साहित्यकार और अनुवादक डा शंकर लाल पुरोहित इसके प्रमुख सलाहकार। इसके सचिव किशन खंडेलवाल तथा संगठन सचिव अशोक पाण्डेय के कुशल नेतृत्व में यह पुस्तकालय निरंतर आगे बढ़ रहा है।
इस पुस्कालय में आये दिन कवियों, पत्रकारों और साहित्यकारों के साथ-साथ हिन्दी साहित्य के प्रेमियों का जमावड़ा होते रहता है और अभिव्यक्तियों की धारा निरंतर प्रभावित होती रहती है। “उत्कल अनुज हिन्दी वाचनालय’’ में देश के कई दिग्गज कवियों का आगमन हुआ है। यह वाचनालय अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर हो रहा है।

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