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पर्युषण पर्व का चौथा दिन वाणी संयम दिवस के रूप में मनाया
कटक। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेशकुमार जी ठाणा-3 के सानिध्य में स्थानीय तेरापंथ भवन में पर्युषण पर्व का चौथा दिन वाणी संयम दिवस के रूप में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा उत्साह पूर्वक मनाया गया । इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेशकुमार जी ने कहा – जीवन के क्रियातंत्र को संचालित करने वाला एक तत्व है -वाणी । वाणी व्यक्तित्व का आईना होता है। वाणी के द्वारा व्यक्ति की पहचान सरलता से हो जाती है। वाणी का मीठापन रिश्तों में रस घोल देता है। वाणी का असंयमित प्रयोग घर-परिवार के वातावरण को दूषित बना देता है। इसलिए वाणी का संयम एवं मौन का अभ्यास करना चाहिए। वाणी मधुर निरवद्य, परिमित, कार्य साधिका व कल्याणी होनी चाहिए। मनुष्य की जीभ में अमृत और विष दोनों भरा हुआ है महत्त्व जीभ के इस्तेमाल करने के तरीके का है। जिह्वा संभली हो जीवन संभला ।
मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने आगे कहा – भाषा की कटुता व्यवहार की मधुरता का लोप कर देती है | भाषा भावों की अभिव्यक्ति का एक सबल माध्यम है। जैसे नदी को पार करने के लिए नौका का आलंबन लिया जाता है वैसे ही अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाने के लिए भाषा का आलंबन लिया जाता है। मौन की पहली उपलब्धि है – शक्ति का बचाव, निर्विचारता, विवादमुक्त, अहंमुक्ति और सत्य का साक्षात्कार । जीवन में उन तोतों से प्रेरणा लीजिए जो मिर्च खाकर भी मीठे बोलते है और लोग शक्कर-मिश्री खाकर भी कड़वा बोलते हैं। मीठा बोलने से शुगर बढ़ती नहीं है और कड़वा बोलने से शुगर घटती नहीं है अत: मीठा बोले, संयमित और संतुलित बोलने का प्रयास करें।
मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने भव परंपरा से गुजरते महावीर के पूर्वभवों में त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव की चर्चा करते हुए कहा जो जैसा कर्म करता है, उसको वैसा फल अवश्य मिलता है। भले ही तीर्थकर बनने वाले जीव भी क्यों न हो, कर्म अगर असत् किये है तो अधम गति में जाना ही होगा। त्रिपृष्ठ वासुदेव के जीवन का प्रसंग प्रेरक उदाहरण है। इस अवसर पर मुनि श्री परमानंद जी ने कहा – इंसान को बोलना माँ सिखाती है, चुप रहना पत्नी सिखाती है और संयम रखना संत सिखाते है॔। पर्युषण वाणी संयम का पर्व है। इस अवसर पर बाल मुनि कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ कन्या मंडल के मंगलाचरण से हुआ।