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जैन साधना पद्धति की आधार शिला है सामायिक – मुनि जिनेश कुमार

  •  पर्युषण पर्व का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में मनाया

कटक। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में स्थानीय तेरापंथ भवन में पर्युषण पर्व का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में तेरापंथ सभा द्वारा उत्साह पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा अभिनव सामायिक उपक्रम भी आयोजित किया गया।
इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश जी ने कहा- जैनधर्म का अति महत्वपूर्ण शब्द है-सामायिक। इसका अर्थ है- समत्व योग का अभ्यास अथवा आत्म रमण की विशिष्ट साधना। सामायिक साधना अहम् से अर्हम् बनने की प्रक्रिया है। एक निश्चित समयावधि तक निषेधात्मक भावों और प्रवृत्तियों से विरत होकर समभाव की साधना करना सामायिक है। जैन साधना पद्धत्ति की आधार शिला सामायिक है। सामायिक प्रभु महावीर की कम्पनी का श्रेष्ठ प्रोडक्शन है, सामायिक सिद्धि का सेम्पल, सर्वविरति का प्रशिक्षण, सर्व समस्या का सोल्यूशन है। सामायिक अध्यात्म का पासपोर्ट व मुक्ति का वीजा है। सामायिक वीतराग की छोटी-सी झलक है। सामायिक शांति का राजपथ व तनाव मुक्ति का अमोध उपाय है। सामायिक में जीव सावध । एवं पापकारी प्रवृत्ति से विरत हो जाता है।

साधु की सामायिक तीन करण – तीन योग से व श्रावक की सामायिक दो करण तीन योग से की जाती है। सामायिक जीव संवर नवमां व्रत है। सामायिक से जीव उच्चता को प्राप्त होता है। सामायिक स्वभाव परिवर्तन की प्रक्रिया है। अभिनव सामायिक का प्रयोग बहुत ही प्रायोगिक है इसका प्रयोग सभी को करना चाहिए। मुनि जिनेश कुमार ने भव परंपरा से गुजरते महावीर के पूर्वभवों में विश्वभूति के भव की चर्चा करते हुए कहा – क्रोध व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है। मणभर की साधना क्षणभर क्रोध से नष्ट हो जाती है। क्रोध के क्षणिक आवेश में किया जाने वाला निदान तप साधना को मिट्टी के मूल्य बेचने के समान है। अत: विश्वभूति की तरह क्रोध एवं निदान नहीं करना चाहिए।
इस अवसर पर मुनि परमानंद ने कहा कि समता सिद्धि का विशिष्ट पर्व है-पर्युषण। पर्युषण में सामायिक साधना द्वारा समता का विकास करना चाहिए। बाल मुनि कुणाल कुमार ने सुमधुर सामायिक गीत का संगान किया। इस अवसर पर तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा आयोजित अभिनव सामायिक प्रयोग आयोजित हुआ। अभिनव सामायिक अनुष्ठान में लगभग 250 से अधिक संभागी बने। अनेक भाई-बहिनों ने तेला तप का प्रत्याख्यान किया।

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