कटक। युगप्रधान, महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य मे प्रियंका मनीष दुग्गड़ के मासखमण तप की सम्पन्नता के अवसर पर श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा मासखमण तप अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा- जैन धर्म एक व्यापक दृष्टिकोण वाला धर्म है। इसका सार तत्व है-आत्मा की पवित्रता और उसका आधार है-तप। तप पूर्वार्जित कर्म पर्वतों को तोड़ डालने के लिए वज्र है। आंतरिक काम दावानल की ज्वालाओं को शांत करने के लिए यह शीतल जल है। भोग लुब्ध इन्द्रिय रूपी सूर्य को बांधने का यह अमोघ मंत्र है। जो आठ प्रकार के कर्मों को तपाता है, उसका नाम ‘तप’ है। पांच इन्द्रिय और मन को वश में करना तप है। वेद का सार है सत्यवचन, सत्य का सार है इन्द्रियों का संयम, संयम का सार है दान और दान का सार है तपस्या। तपस्या जीवन की सबसे बड़ी कला है।
धर्म का प्रथम व आखिरी कदम है- तपस्या, तप परम कल्याणकारी, मंगलकारी और हितकारी होता है जैनागम तप को मंगल मानता है। तप अतीत का क्षयोपराम वर्तमान वैराग्य व भविष्य का दर्पण है। तपस्या में स्वाध्याय ब्रह्मचर्य की साधना व क्रोध विजय का प्रयास करना चाहिए। मुनि जिनेश कुमार ने आगे कहा कि कटक में सावन मास में श्रीमती प्रियंका मनीष दुग्गड़ ने मासखमण तप कर अतुल मनोबल व अद्भुत साहस का परिचय दिया है। हम उनके तप की अनुमोदना करते उनके साहस की सराहना करते हैं। इस अवसर पर बाल मुनि कुणाल कुमार जी ने सुमधुर तप गीत का संगान किया। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ कन्या मण्डल के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत एवं तप अनुमोदना वक्तव्य श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के उपाध्यक्ष हनुमानमल जी सिंघी ने दिया। साध्वी प्रमुख विश्रुत विभा जी के संदेश का वाचन तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष हीरा बैद ने व मासखमण तप अभिनंदन पत्र को वाचन महासभा कार्यकारिणी सदस्य मुकेश सेठिया ने किया।