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लक्ष्मी को रसगुल्ला खिलाकर महाप्रभु ने किया श्रीमंदिर में प्रवेश
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भाई-बहन के संग रत्न सिंघासन पर हुए विराजित
पुरी. पुरी महाधाम में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा की सभी नीतियां कल संपन्न हो गयीं. नीलाद्री बीजे के तहत मां लक्ष्मी को रसगुल्ला खिलाकर महाप्रभु श्री जगन्नाथ, देव बलभद्र और देवी सुभद्रा के साथ अपने निवास श्री मंदिर लौट आये और रत्न सिंघासन पर विराजित हुए. सेवायत तीनों रथों से देवताओं को मंदिर के अंदर रत्न सिंघासन तक एक औपचारिक जुलूस में ले गये, जिसे ‘गोटी पहंडी’ कहते हैं.
सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, भगवान सुदर्शन, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के मंदिर में प्रवेश करने के बाद देवी महालक्ष्मी ने जयविजय द्वार को बंद कर दिया और महाप्रभु श्री जगन्नाथ को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया, क्योंकि वे अपने भाई-बहन के साथ अकेले ही मंदिर के बाहर नौ दिनों के प्रवास पर गुंडिचा मंदिर गये थे. वहां से लौटने के बाद नाराज महालक्ष्मी को बनाने के लिए भगवान जगन्नाथ रसगुल्ला भेंट करके विनती करते हैं, तब जाकर देवी महालक्ष्मी ने भगवान जगन्नाथ को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति देती हैं. इस लीला को देखने के लिए वहां लाखों श्रद्धालु उमड़े रहते हैं. इसके बाद भक्त भगवान जगन्नाथ को प्रसाद के रूप में रसगुल्ला भेंट करते हैं.
ओडिशा में नीलाद्री बीजे के दिन रसगुल्ले की होती है मांग
महाप्रभु श्री जगन्नाथ की धरती ओडिशा में नीलाद्री बीजे के दिन रसगुल्ले की मांग अधिक होती है. लोग भगवान को चढ़ाने के साथ-साथ घरों में सपरिवार मिलकर इसका सेवन करते हैं. नीलाद्री बीजे के दिन रसगुल्ले की मांग को देखते हुए सभी मिठाई के दुकानों में तैयारियां पहले से ही कर ली जाती हैं.