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हलधर नाग की माली हालत पर छिड़ी बहस

  • फेसबुक एक व्यक्ति ने उनकी आर्थिक स्थिति को लेकर किया पोस्ट

  • दूसरे फालोअर्स ने कहा-पद्मश्री ने इस खबर का किया है खंडन

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर

ओडिशा के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा पद्मश्री हलधर नाग की माली हालत को लेकर फेसबुक पर बहस छिड़ गयी है. देवेंद्र सुरजन नाम नामक एक व्यक्ति ने फेसबुक पर उनकी आर्थिक स्थिति को लेकर एक पोस्ट किया है. उन्होंने इसका शीर्षक साहिब-दिल्ली आने तक के पैसे नही हैं, कृपया पुरस्कार डाक से भिजवा दो! इसके बाद उन्होंने लिखा है कि हलधर नाग – जिसके नाम के आगे कभी श्री नहीं लगाया गया. 3 जोड़ी कपड़े, एक टूटी रबड़ की चप्पल, एक बिन कमानी का चश्मा और जमा पूंजी 732 रुपये का मालिक आज पद्मश्री से उद्घोषित होता है. ये हैं ओडिशा के हलधर नाग, जो कोशली भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं. ख़ास बात यह है कि उन्होंने जो भी कविताएं और 20 महाकाव्य अभी तक लिखे हैं, वे उन्हें ज़ुबानी याद हैं. अब संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जायेगा.

सादा लिबास, सफेद धोती, गमछा और बनियान पहने, नाग नंगे पैर ही रहते हैं. ऐसे हीरे को चैनल वालों ने नहीं, ओड़‍िया लोक-कवि हलधर नाग के बारे में जब आप जानेंगे तो प्रेरणा से ओतप्रोत हो जायेंगे. हलधर एक गरीब दलित परिवार से आते हैं. 10 साल की आयु में मां बाप के देहांत के बाद उन्‍होंने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी. अनाथ की जिंदगी जीते हुए ढाबा में जूठे बर्तन साफ कर कई साल गुजारे. बाद में एक स्कूल में रसोई की देखरेख का काम मिला. कुछ वर्षों बाद बैंक से 1000 रुपये कर्ज लेकर पेन-पैंसिल आदि की छोटी सी दुकान उसी स्कूल के सामने खोल ली, जिसमें वे छुट्टी के समय पार्ट टाईम बैठ जाते थे. यह तो थी उनकी अर्थ व्यवस्था. अब आते हैं उनकी साहित्यिक विशेषता पर. हलधर ने 1995 के आसपास स्थानीय ओड़िया भाषा में ”राम-शबरी ” जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिख लिख कर लोगों को सुनाना शुरू किया. भावनाओं से पूर्ण कवितायें लिख जबरन लोगों के बीच प्रस्तुत करते करते वो इतने लोकप्रिय हो गये कि इस साल राष्ट्रपति ने उन्हें साहित्य के लिये पद्मश्री प्रदान किया. इतना ही नहीं 5 शोधार्थी अब उनके साहित्य पर पीएचडी कर रहे हैं, जबकि स्वयं हलधर तीसरी कक्षा तक पढ़े हैं.

आप किताबो में प्रकृति को चुनते है

पद्मश्री ने, प्रकृति से किताबे चुनी है।

इस पोस्ट के बाद लोगों ने अपनी प्रतिक्रियां देनी शुरू कर दी. इस दौरान महेंद्र यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा कि हलधर नाग इस खबर को शरारतपूर्ण और झूठी बता चुके हैं. सच तो यह है कि उन्हें इस वर्ष नहीं बल्कि 2016 में पद्मश्री का पुरस्कार मिला था. साल 2016 में भी जब पद्मश्री पुरस्कार लेने के लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया था, तब भी उन्होंने सरकार को अपनी गरीबी का हवाला देते हुए कोई पत्र नहीं लिखा था और ना ही पदमश्री पुरस्कार को डाक से भेज देने की बात कही थी. लोककवि डा. हलधर नाग को पद्मश्री पुरस्कार से पहले से ही ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की ओर से कलाकार भत्ता दिया जा रहा है. ओडिशा सरकार ने उन्हें रहने के लिए जमीन भी दी है, जिसपर बरगड़ के एक डाक्टर ने अपने खर्च से मकान भी बनवा दिया है. वर्तमान में उन्हें सरकार की ओर से साढ़े 18 हजार रुपये का मासिक भत्ता भी मिलता है.

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