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पंचदिवसीय संस्कार निर्माण शिविर का आायोजन
कटक. महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में पंचदिवसीय संस्कार निर्माण शिविर का आयोजन सेठिया सदन में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा किया गया. शिविर के प्रथम दिन संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा कि जीवन में ज्योति का मूल्य है. ज्योति बिना जीवन अधूरा है. अधूरा जीवन अभिशाप होता है. जीवन में ज्योति पाने का सफल उपाय सुसंस्कार है. इससे आत्मा परिमार्जित व संस्कारित हो उसका नाम सुसंस्कार है. संस्कार हमारे जीवन का धन है. सुरक्षा कवच है, गुलशन है हृदय की धड़कन है. आत्मा की खुराक है. सुसंस्कारों के मक्खन से आत्मा को पौष्टिक भोजन मिलता है. संस्कार से व्याक्ति जागृत होता है. जो संस्कार बचपन में आते हैं वे पचपन में नहीं आते हैं. मुनि ने आगे कहा कि संस्कारों के बीजा रोपण का समय बचपन है. बचपन में जो संस्कार आते हैं, वे स्थायित्व प्रदान करने वाले होते हैं. संस्कारों के जागरण से ही व्यक्ति भाग्योदय सर्वोदय आत्मोदय को प्राप्त होता है.
मुनि ने आगे कहा कि संस्कार निर्माण शिविर का उद्देश्य है. व्यक्ति के भीतर नई चेतना का संचार करना. ऊर्जा को प्राप्त करना है. संस्कार निर्माण का पहला सूत्र सहिष्णुता! सहिष्णुता का अर्थ कायरता, या कमजोरी नहीं है. सहिष्णुता का अर्थ है कष्टों को सहन करना. सुख-दुःख में समभाव रखना है. सहिष्णुता से व्यक्ति सकारात्मक सोच का विकास करता है. मुनि परमानंद जी ने कहा कि संस्कार जीवन को संवारने का कार्य करता है. संस्कारों के पतन से जीवन का पतन हो जाता. मुनि कुणाल कुमार जी ने लोगस्स का पाठ कराया. मुनि जिनेश कुमार जी, मुनि परमानंद जी, किरण बैंगानी, मोनिका सेठिया, श्वेता चोपड़ा, विनीता दुगड़, शशि विनायकिया ने कक्षाएं लीं एवं प्रशिक्षण दिया. तेरापंथ सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाएं का योगदान रहा. सौरभ सेठिया, ऋषभ दुगड़ की मेहनत भी सराहनीय रही. शिविर के प्रथम दिन 72 शिविरार्थियों ने हिस्सा लिया. शिविर में स्मृति दर्शन प्रतियोगिता, प्रश्नोत्तर आदि ज्ञानवर्धक उपक्रम भी आयोजित हुए.