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आत्म शोधन की प्रक्रिया है तप – मुनि जिनेश कुमार

  • तप अभिनंदन कार्यक्रम संपन्न

  • नौ दिनों की‌ तपस्या करके धनराज पुंगलिया ने मानो शासनमाता साध्वी प्रमुख कनक प्रभा को सच्ची श्रद्धांजलि दी

भुवनेश्वर. दुनिया में अनेक प्रकार की वस्तुएं मिल सकती हैं. धन, वैभव, सत्ता भी मिल सकती है. ज्ञातिजन बंधु, पुत्र आदि की भी प्राप्त हो सकती है, लेकिन धर्म का मिलना कठिन है. धर्म ही ऐसा दीपक है, जो अज्ञान रूप अंधकार का नाश करता है. धर्म एक अमोघ संजीवनी है, जिसे धारण करने वाला व्यक्ति अलौकिक ऊर्जा शक्ति, प्रकाश को प्राप्त होता है. धर्म दिशा दर्शक, पथ प्रदर्शक व आत्म प्रकाशक है. धर्म के चार प्रकार हैं. ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप तपं आत्म शोधन की प्रक्रिया है. तप से काया कुंदन होती है. उपरोक्त विचार आचार्य महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि जिनेश कुमार ने जयदुर्गानगर स्थित बेबीलॉन गार्डन में तेरापंथ सभा के तत्वावधान में आयोजित तप अभिनंदन कार्यक्रम में कहीं. उन्होंने कहा कि तप करना कठिन होता है. एक उपवास में भी तारे दिखने लग जाते हैं. इस गर्मी के मौसम में नौ दिनों की‌ तपस्या करके धनराज पुंगलिया ने मानो शासनमाता साध्वी प्रमुख कनक प्रभा को सच्ची श्रद्धांजलि दी है. उन्होंने आगे कहा कि जीवन विकास में सम्यग दर्शन की महत्त्वपूर्ण भूमि का रहती है. ज्ञान के साथ श्रद्धा हो, श्रद्धा  के साथ चारित्र हो, चारित्र के साथ तप हो, तो सोने में सुहागा जैसी कहावात चरितार्थ होती है. इससे पूर्व रोशन पुंगलिया व अल्पना दूग्गड़ ने भी आठ दिन की तपस्या की है और वनिता दुधोड़िया ने एकासन का मासखमण किया है. इस अवसर पर महासभा के अध्यक्ष मनसुख सेठिया, तेरापंथ सभा अध्यक्ष बच्छराज बेताला, रोशन पुंगलिया, हीना भव्या, रक्षा पुंगलिया ने अपने भावों की प्रस्तुति दी. मुनि कुणाल कुमार ने गीत प्रस्तुत किया. मुनि परमानंद ने संचालन किया. तेरापंथ सभा ने तपस्वी का अभिनंदन किया.

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