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नये रूप देने के लिए केंद्र सरकार दे सकती अपनी मंजूरी – केंद्रीय मंत्री टुडू
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कहा- हवाई अड्डे में बदल जाने के बाद उत्तरी ओडिशा, दक्षिण बंगाल और पूर्वी झारखंड के अनुमानित 82 लाख लोगों की आवश्यकताएं होंगी पूरी.
भुवनेश्वर. ओडिशा के मयूरभंज जिले में अब बंद हो चुकी अमरदा रोड हवाई पट्टी को आधुनिक हवाईअड्डे में बदलने के लिए केंद्र सरकार अपनी मंजूरी दे सकती है. यह जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री बिशेश्वर टुडू ने रविवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि केंद्र इसकी जल्द ही मंजूरी दे देगा. टुडू ने कहा कि यह हवाई पट्टी राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से 225 किमी और कलाईकुंडा वायु सेना स्टेशन से केवल 90 किमी दूर स्थित है. इसका उपयोग वाणिज्यिक और रक्षा उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है.
उन्होंने बताया कि मैंने इस मामले को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उठाया है. टुडू ने बताया कि भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के विशेषज्ञों की एक टीम पहले ही साइट का दौरा कर चुकी है और हमें उम्मीद है कि अधिकारी जल्द ही अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान करेंगे. केंद्रीय जनजातीय मामलों और जल शक्ति राज्य मंत्री ने कहा रासगोविंदपुर ब्लॉक में 1,000 एकड़ जमीन रक्षा मंत्रालय के दायरे में आती है और इसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय को सौंपने की जरूरत है.
उन्होंने बताया कि अरमदा रोड हवाई पट्टी के हवाई अड्डे में बदल जाने के बाद ज्यादातर उत्तरी ओडिशा, दक्षिण बंगाल और पूर्वी झारखंड के अनुमानित 82 लाख लोगों की आवश्यकताएं पूरी होंगी.
टुडू ने कहा कि प्रस्तावित हवाई अड्डा बालेश्वर जिले के चांदीपुर में एकीकृत परीक्षण रेंज और पश्चिम बंगाल में आईआईटी-खड़गपुर जैसे प्रमुख संस्थानों की आवश्यकताओं को भी पूरा करेगा.
उन्होंने कहा कि यदि हवाई पट्टी चालू हो जाती है, तो इसका उपयोग वाणिज्यिक और रक्षा दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है.
इतिहासकार अनिल धीर ने कहा कि रासगोविंदपुर हवाई पट्टी का एक छोटा, लेकिन छिपा हुआ शानदार इतिहास है. इसे कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया है. यह अपने जमाने का एशिया में सबसे लंबा रनवे था. यह 3.5 किलोमीटर से अधिक लंबा था.
धीर ने कहा कि आज यदि आप कुछ गायों के चरने के अलावा ज्यादातर खाली पड़े खामोश रनवे को देखें, तो हवाई अड्डे को किसी भी तरह की गतिविधियों से जोड़ना मुश्किल होगा. लेकिन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस हवाई पट्टी ने भारतीय रक्षा में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उन्होंने कहा कि साल 1943 और 1945 के बीच हुई घटनाओं का कोई विवरण यहां मौजूद नहीं है. यहां तक कि सरकारी और सैन्य रिकॉर्ड में भी नहीं है.
यह स्टेशन युद्ध के दौरान बर्मा की जापान पर विजय के खिलाफ एक अग्रिम हवाई क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आया. उन्होंने बताया कि इस बड़ी हवाई पट्टी ने विमानों के लिए लैंडिंग ग्राउंड और विशेष बमबारी मिशन के लिए एक प्रशिक्षण स्थान के रूप में अपने उद्देश्य की पूर्ति की थी. 1940 के दशक में तीन करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इस पट्टी को युद्ध के बाद से छोड़ दिया गया है.