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जयंती पर याद किये गये स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण नायक

भुवनेश्वर. आज जयंती के अवसर पर स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण नायक को याद किया. वह दक्षिण ओडिशा में जनजातियों के अधिकारों के लिए कार्यरत थे. उनका जन्म 22 नवंबर 1899 को कोरापुट में मालकानगिरि के तेंटुलिगुमा में हुआ था. उनके पिता पदलम नायक थे, जो भूयान जनजाति से संबंध रखते थे. अंग्रेजी सरकार की बढ़ती दमनकारी नीतियां जब भारत के जंगलों तक भी पहुंच गयी और जंगल के दावेदारों से ही उनकी संपत्ति पर लगान वसूला जाने लगा, तो नायक ने अपने लोगों को एकजुट करने का अभियान शुरू कर दिया. नायक ने अंग्रेज़ों के खिलाफ अपना एक क्रांतिकारी गुट तैयार किया. आम आदिवासियों के लिए वे एक नेता बनकर उभरे. उनके कार्यों की वजह से पूरे देश में उन्हें जाना जाने लगा. इसी के चलते कांग्रेस ने उन्हें अपने साथ शामिल करने के लिए पत्र लिखा.
महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने 21 अगस्त 1942 को जुलूस का नेतृत्व किया और मालकानगिरि के मथिली पुलिस स्टेशन के सामने शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया, लेकिन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें पांच क्रांतिकारियों की मौत हो गई और 17 से ज्यादा लोग घायल हो गए.
ब्रिटिश सरकार ने उनके बढ़ते प्रभाव को देखकर उन्हें एक झूठी हत्या के आरोप में फंसा दिया. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा सुनाई गयी. 29 मार्च 1943 को ब्रह्मपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गयी. अपने अंतिम समय में उन्होंने बस इतना ही कहा था कि यदि सूर्य सत्य है, और चंद्रमा भी है, तो यह भी उतना ही सच है कि भारत भी स्वतंत्र होगा. आज उनकी जयंती पर सबरी संस्कृत संसार और सूचना तथा जनसंपर्क विभाग की ओर से आदिवासी पड़िया व कलिंग अस्पताल चौक पर श्रद्धा-सुमन अर्पित किया गया.

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