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ओडिशा में नए ईको-स्पॉट बनेंगे देवमाली, करलापत और नवना

  • रात्रि विश्राम की सुविधा होगी उपलब्ध

  • इको-टूरिज्म की समीक्षा बैठक में प्रस्तावों को मंजूरी दी गई

  • समुदाय आधारित प्रबंधन मॉडल से पर्यटकों की संख्या और राजस्व में बढ़ोतरी

भुवनेश्वर. राज्य के देवमाली, करलापत और नवना में रात्रि विश्राम की सुविधा के साथ नए ईको-स्पॉट विकसित करने के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई. आज यहां आयोजित एक समीक्षा बैठक में इसकी मंजूरी दी गयी तथा इसके लिए आवश्यक राशि भी जारी करने का निर्देश दिया गया है. उल्लेखनीय है कि 2016 में ओडिशा सरकार द्वारा शुरू किए गए समुदाय आधारित प्रबंधन (सीबीएम) मॉडल के माध्यम से इको-टूरिज्म ऑपरेशन काफी सफल साबित हुआ है. ओडिशा में इको-स्पॉट ने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों पर्यटकों को आकर्षित किया है. इससे आंगतुकों की संख्या और राजस्व सृजन में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है. इससे स्थानीय समुदाय के आजीविका स्रोतों में बढ़ोतरी हुई है.

मुख्य सचिव सुरेश चंद्र महापात्र ने गुरुवार को इको-टूरिज्म की समीक्षा के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की. अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन डॉ मोना शर्मा ने चर्चा के लिए इको-स्पॉट के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दों को रेखांकित किया.

इस दौरान महापात्र ने अब तक हुई प्रगति को देखते हुए पर्यटकों और आगंतुकों से संबंधित कार्यों में लगे समुदाय के सदस्यों की नज़दीकी निगरानी और क्षमता निर्माण के माध्यम से सीबीएम मॉडल को बढ़ाने का निर्देश दिया. महापात्र ने कहा कि सीबीएम ने कई लोगों को वैकल्पिक और स्थायी आजीविका प्रदान की है, जो जंगल पर निर्भर थे. उन्होंने आगे कहा इसने लोगों को भी सशक्त बनाया है,और उनमें वन और वन्य जीवन के प्रति अपनेपन की भावना का संचार किया है.

शर्मा ने बताया कि सरकार द्वारा शुरू की गई इको-रिट्रीट गतिविधियों ने इस क्षेत्र में निजी निवेश को आमंत्रित किया है. दरिंगीबाड़ी और कोणार्क के पास आतिथ्य केंद्र और होटल बन गए हैं. कुछ निवेशकों ने देवमाली जैसे अन्य स्थानों में भी निजी उद्यम शुरू करने में रुचि दिखाई है.

मुख्य सचिव ने इडको से लोकप्रिय ईको-पर्यटन केंद्रों के पास गैर-वन भूमि का अधिग्रहण करने और पर्यटन और आतिथ्य इकाइयों की स्थापना के लिए विकसित करने के लिए कहा.

बैठक में देवमाली, करलापत और नवना में रात्रि विश्राम की सुविधा के साथ नए ईको-स्पॉट विकसित करने के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई.

मुख्य सचिव ने विभाग को स्पॉट के विकास के लिए तत्काल राशि जारी करने के निर्देश दिया. महापात्र ने पर्याप्त स्वच्छता उपायों के साथ इको-स्पॉट स्पॉट के प्राचीनता को बनाए रखने का भी निर्देश दिया. मुख्य सचिव द्वारा सभी स्थानों पर कोविद के उचित व्यवहार के पालन पर जोर दिया गया. बैठक में इस क्षेत्र में व्यावसायिकता बढ़ाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन के प्रस्ताव पर भी चर्चा की गई.

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीवन) शशि पॉल ने बताया कि ओडिशा के 18 राजस्व जिलों में फैले विभिन्न क्षेत्रों में 47 पर्यावरण पर्यटन स्थलों का विकास और संचालन किया गया है. इस गतिविधि ने मयूरभंज, सुंदरगढ़, संबलपुर, मालकानगिरि, कंधमाल, बरगड़, नयागढ़ और कोरापुट आदि जिलों में कई आदिवासी परिवारों की आय में वृद्धि की है. गतिविधियों से 600 से अधिक लोगों को अच्छी आय हुई. पॉल ने यह भी कहा कि इस वर्ष नृसिंहनाथ, कोरापुट देवदार के जंगल, पटोरा बांध और तेन्सा में नए स्थानों का विकास और संचालन किया गया. सीबीएम मॉडल के तहत इको-स्पॉट से उत्पन्न राजस्व का लगभग 90% संबंधित समुदायों के सदस्यों के साथ-साथ स्पॉट के प्रबंधन के साथ साझा किया गया था.

समीक्षा में पाया गया कि ईको-पर्यटन स्थलों के लिए आगंतुकों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. यह वर्ष 2016-17 में 11,500 था, जो बढ़कर वर्ष 2018-19 में 29,024 हो गया और वर्ष 2020-21 में लगभग 57,000 हो गया. इसमें भारत के विभिन्न राज्यों और विदेशों के पर्यटक शामिल थे. ईको-टूरिज्म वेबसाइट पर दुनिया के 30 देशों के करीब 22.82 लाख हिट्स मिले हैं. फ्रांस, जर्मनी, ईरान, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, बेल्जियम और दक्षिण अफ्रीका सहित 18 देशों के पर्यटकों ने रात्रि विश्राम के साथ इको-स्पॉट का दौरा किया.

इसी तरह इको-टूरिज्म से उत्पन्न राजस्व भी बढ़ा है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में 1.57 करोड़ रुपये राजस्व था, जो 2017-18 में 3.40 करोड़ रुपये और 2018-19 में 5.61 करोड़ रुपये हो गया. वर्ष 2020-21 में बढ़कर 8.32 करोड़ हुआ है.

 

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