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नम्रता-राजलक्ष्मी की दोस्ती बेमिसाल, सहेली ने किया सहेली का अंतिम संस्कार

  • अंतिम संस्कार की लंबी प्रक्रिया के कारण राजलक्ष्मी को मुखाग्नि देने नहीं आया कोई भी रिश्तेदार

  • नर्मता चड्ढा निबाही बेटे-बेटी और रिश्तेदार की भूमिका, राजलक्ष्मी को दी मुखाग्नि

  • कहा- सभी अविवाहित महिलाएं भी सम्मान के साथ चाहती हैं जीना और मरना

  • सहेली की याद में स्कालरशिप शुरू करने की घोषणा

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर

राजधानी में दोस्ती की एक मिसाल ने लोगों के दिलों को झंकझोर कर दिया है. 11 दिवसीय अंतिम संस्कार की लंबी प्रक्रिया के कारण जब कोई रिश्तेदार मुखाग्नि देने नहीं आया, वैसी स्थिति में एक सहेली ने अपनी सखी को मुखाग्नि दी. यह दोनों सहेलियां हैं सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता नम्रता चड्ढ़ा और राजलक्ष्मी दास.

राजलक्ष्मी दास का निधन कल 63 साल की आयु में हो गया. राजलक्ष्मी के परिवार में कुल तीन बहनें और एक भाई थे. भाई इंजीनियर थे, लेकिन नौकरी के पहले दिन एक्सीडेंट में मौत हो. तब से राजलक्ष्मी की मां पागल सी हो गई.

पिता सरकारी नौकरी में थे. गांव में बहुत जमीन जायदाद रही. रिटायरमेंट के बाद वे भी बीमार हो गए. हड्डी टूटने की वजह से खाट पकड़ ली. बड़ी दोनों बहनें शादी करके अपने परिवार में खुश हैं. बाप की संपति भी मिली, लेकिन इसके भाग्य में अति पगली मां और बिस्तर पर पड़े बापू मिले.

सारी जिंदगी अविवाहित रहकर उनकी सेवा की. बहनों के बच्चों को पढ़ाया. समाज सेवा करती रहीं. गरीबों की सहायता करती रहीं. कोरोना हो गया तो कोई खाना भी नहीं भेजा. फिर उनको कैंसर ने जकड़ लिया. भुवनेश्वर शहर में पिता का घर है. कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद आखिर राजलक्ष्मी भगवान श्री जगन्नाथ को प्यारी हो गई. परिवार में सभी भांजे-भंजिया हैं. व्यवस्थित जीवन-यापन कर रहे हैं, लेकिन मासी को मुखाग्नि देने कोई नहीं आया. मां-बाप तो बहुत पहले मर गए थे.

 

सहेली राजलक्ष्मी की भी अंतिम इच्छा थी कि घर का कोई नहीं आया, तो उसकी सबसे प्यारी सहेली नम्रता उसका अंतिम संस्कार पुरी के स्वर्गद्वार में करे. आखिकार हुआ भी ऐसा ही. उनका कोई भी रिश्तेदार सामने नहीं आया. ऐसी स्थिति में सहली नम्रता चड्ढ़ा ने अपनी सहेली की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए अपने हाथों से मुखाग्नि दी. पूरे हिन्दू रीति-रिवाज से राजलक्ष्मी को नम्रता ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी. दोस्ती के किस्से तो बहुत सुनने के मिले, लेकिन नम्रता और राजलक्ष्मी की दोस्ती ने लोगों के आंखों को नम कर दिया है. सहेली के लिए एक सहेली की हर परम्परा को निभाने की घटना राजधानी में चर्चे में हैं. लोग इनकी दोस्ती को सलाम कर रहे हैं.

नम्रता चड्ढ़ा ने अपनी सहेली के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि राजलक्ष्मी के अंतिम संस्कार के खर्चे उनकी संस्था माध्यम के कोष से किया जायेगा. साथ नम्रता ने कहा कि वह अपनी सहेली के नाम पर एक स्कालरशिप योजना भी चलायेंगी. इसका लाभ कमजोर वर्ग के लोगों को मिलेगा. चड्ढा ने कहा कि सभी अविवाहित महिलाएं सम्मान के साथ जीना और मरना चाहती हैं. मेरी प्रिय सहेली का अंतिम संस्कार मैंने किया.

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