संपादकीय
-
किशनलाल भरतिया और गणेश प्रसाद कंदोई ने मंच पर शशि शर्मा को संबोधित करने से रोका
हेमंत कुमार तिवारी, कटक
कटक मारवाड़ी समाज के नए अध्यक्ष के शपथ ग्रहण समारोह में संस्थापक अध्यक्ष गणेश प्रसाद कंदोई और वरिष्ठ समाजसेवी तथा उद्योगपति किशनलाल भरतिया ने लोकतांत्रिक अधिकारों का माखौल उड़ाते हुए चुनाव समिति के पदाधिकारी शशिकांत शर्मा को मंच पर संबोधित करने से रोका। इस दौरान चुनाव समिति के पदाधिकारी शर्मा चुनावी प्रक्रिया के दौरान झेले गए अपने अनुभवों को साझा कर रहे थे। अभी उनका संबोधन पूरा भी नहीं हुआ कि किशनलाल भरतिया खड़े हो गए और उनको बोलने से रोका। साथ ही वहां बगल में बैठे समाज के संस्थापक अध्यक्ष व उद्योगपति गणेश प्रसाद कंदोई ने भी उनको बोलने से रोकने का प्रयास किया। शशि शर्मा कह रहे थे कि जिस तरह से एक वर्ग ने समिति के ऊपर दोषारोपण और खरीद-फरोख्त के आरोप लगाए, वह स्वीकार योग्य नहीं है। चुनाव के दौरान चुनाव समिति पर कई आरोप लगाए थे। इसे लेकर शशि शर्मा अपनी बातों को रख रहे थे, लेकिन जैसे ही इन लोगों ने रोकने का प्रयास किया, शशि शर्मा ने भी इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि मंच से आप आग्रह कर सकते हैं, आदेश नहीं दे सकते। मैं किसी के आदेश का पालन नहीं कर सकता।
किसी भी व्यक्ति को इस बात का ध्यान देना चाहिए कि मंच के दौरान संबोधन को रोकने का मतलब एक बड़ा विरोध दर्ज कराना है, जो उचित नहीं है।
मैं यहां दो तीन बातों का उल्लेख करना चाहता हूं कि जिस तरह से कटक मारवाड़ी समाज के चुनाव के दौरान छींटाकशी का दौर शुरू हुआ, उसका दूरगामी परिणाम होना तय था।
हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप उतना ही बोलें, जितना कि आपके अंदर सुनने की क्षमता हो। आप उतना ही गहरा गड्ढा खोदें, जिसमें से आपकी निकलने की क्षमता हो। आप वैसा ही व्यवहार करें, जितना कि व्यवहार आप सहन सकें। किसी पर उतना ही हमला करें, जितना हमला सहने की क्षमता हो।
अगर आपने बबूल का पौधा रोपा है साहब तो कांटे ही मिलेंगे स्वादिष्ट आम के फल नहीं।
विज्ञान भी कहता है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होनी तय है। इसे कोई टाल नहीं सकता है। चुनावी प्रक्रिया के दौरान जिस तरह से गुटबाजी कर चुनाव समिति पर हमले किए गए, उसकी प्रतिक्रिया भी सुनिश्चित थी और वही प्रतिक्रिया शर्मा के मुख से निकल रही थी। विज्ञान ने कहा है कि टेलीपैथी सक्रिय है और इसके तहत लोगों की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती है। इन हालातों में लोगों को ध्यान देना चाहिए कि वह वैसा ही आचरण करें, उतना ही आचरण करें, जितना आप सहन कर सकें। समाज में जितना स्थान बड़ाई करने वालों को प्राप्त है, उससे कहीं बड़ा स्थान आलोचकों को प्राप्त है। पूर्व साहित्यकारों ने भी लिखा है कि
“निंदक नियरे राखिए आंगन कुटिर छवाय…!”
इन परिस्थितियों को देखते हुए किसी भी व्यक्ति को यह आजादी नहीं है कि वह दूसरे को बोलने से रोके।
शुक्र है कि लोगों ने धैर्य रखा नहीं तो…!
शपथ ग्रहण समारोह में शशि शर्मा को जिस तरह से रोका गया, उससे वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी देखने को मिला। कुछ लोग तो मन बना रहे थे कि गणेश प्रसाद कंदोई और किशनलाल भरतिया को भी संबोधन के दौरान रोककर एक अनुभव प्रदान किया जाए कि संबोधन के दौरान रोकने से किसी के दिल में कैसी फीलिंग होती है, लेकिन अंत समय में ऐसे लोगों ने संयम रखा और आपको बोलने का मौका दिया।