रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा का विधान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देने वाले देवता माना जाता हैं. पौराणिक वेदों में सूर्य का उल्लेख विश्व की आत्मा और ईश्वर के नेत्र के तौर पर किया गया है. सूर्य की पूजा से जीवनशक्ति, मानसिक शांति, ऊर्जा और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है. सूर्यदेव को उगते और डूबते दोनों तरह से अर्घ्य दिया जाता है. शास्त्रों में सबसे ऊपर सूर्य देव का स्थातन माना गया है. अगर सूर्य देव की पूजा की जाए, तो कहा जाता है कि व्यक्ति के हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं. सूर्य देव के कई नाम हैं. इन्हें आदित्यक, भास्कार जैसे कई नामों से जाना जाता है. इन सभी नामों का महत्व अलग है. सभी के पीछे एक पौराणिक कथा छिपी है. आइए आपको बताते हैं इसके बारे में.
आदित्यक और मार्तण्ड
देवमाता अदिति ने असुरों के अत्याचारों से परेशान होकर सूर्यदेव की तपस्या की थी. साथ ही उनसे उनके गर्भ से जन्म लेने की विनती की थी. उनकी तपस्या के प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया और इसी के चलते वो आदित्य कहलाए. कुछ कथाओं के अनुसार, अदिति ने सूर्यदेव के वरदान से हिरण्यमय अंड को जन्म दिया था. तेज के कारण यह मार्तण्डत कहलाए.
दिनकर
सूर्यदेव दिन पर राज करते हैं. इसी के चलते इन्हें दिनकर भी कहा जाता है. दिन की शुरुआत और अंत सूर्य से ही होता है. इसलिए इन्हें सूर्य देव भी कहा जाता है.
भुवनेश्वर
इसका अर्थ पृथ्वी पर राज करने वाला होता है. सूर्य से ही पृथ्वी का अस्तित्व है. अगर सूर्यदेव न हो तो धरती का कोई अस्तित्व नहीं होगा. इस कारण इन्हें भुवनेश्वर कहा जाता है.
सूर्य
शास्त्रों में सूर्य का अर्थ चलाचल बताया गया है. इसका मतलब होता है जो हर वक्त चलता हो. भगवान सूर्य संसार में भ्रमण कर सभी पर अपनी कृपा बरसाते हैं इस लिए इन्हें सूर्य कहा जाता है.
आदिदेव
ब्रह्मांड की शुरुआत सूर्य से और अंत भी सूर्य में ही समाहित है. इसलिए इन्हें आदिदेव भी कहा जाता है.
रवि
मान्यता है कि जिस दिन ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी उस दिन रविवार था. ऐसे में इस दिन के नाम पर सूर्यदेव का नाम रवि पड़ गया.
साभार पी श्रीवास्तव
 Indo Asian Times । Hindi News Portal । इण्डो एशियन टाइम्स,। हिन्दी न्यूज । न रूकेगा, ना झुकेगा।।
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