जरा सोंचिये की उन बच्चों के भविष्य का क्या होगा, जिन बच्चों के पिता ही चले गए। अब उन बच्चों के सपनों को कौन साकार करेगा ? उनकी पढ़ाई-लिखाई से लेकर उनके हर प्रकार की जरूरतों को कौन पूरा करेगा ? यहां तक कि घर के अन्य सदस्यों की जिम्मदरियाँ भी उस एकलौते कमाने वाले के ऊपर ही थी, जिसको इस महामारी ने निगल लिया और पूरे परिवार को रोने के लिए उन्हें जिंदगी भर के लिए छोड़ दिया। जीवन भर का यह दर्द वह परिवार, वे बच्चे, कैसे सहेंगे ? जिस घर में कोई कमाने वाला ही नहीं बचा उस परिवार के खर्चे को कौन संभालेगा।
विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)
कोरोना महामारी का यह दौर बेहद कठिनभरा है। इस महामारी के कारण अब तक लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। शायद ही कोई ऐसा परिवार बचा हो जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस महामारी से प्रभावित नहीं हुआ हो। कोरोना के इस दूसरे दौर में सबसे अधिक 50 वर्ष से कम आयु के लोगों पर बज्र प्रहार हुआ है। प्राण गंवाने वाले ये वो लोग थे, जिनके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मदरियां थीं। बच्चों की परवरिश से लेकर घर का पूरा दारोमदार उन्हीं के कंधों पर तो था। यदि बच्चों के लिहाज से बात की जाय तो किसी की मां चल बसी तो किसी के पिता चल बसे। कहीं-कहीं तो बच्चों के माता-पिता दोनों ही इस महामारी के शिकार हो गए।
जरा सोंचिये की उन बच्चों के भविष्य का क्या होगा, जिन बच्चों के पिता ही चले गए। अब उन बच्चों के सपनों को कौन साकार करेगा ? उनकी पढ़ाई-लिखाई से लेकर उनके हर प्रकार की जरूरतों को कौन पूरा करेगा ? यहां तक कि घर के अन्य सदस्यों की जिम्मदरियाँ भी उस एकलौते कमाने वाले के ऊपर ही थी, जिसको इस महामारी ने निगल लिया और पूरे परिवार को रोने के लिए उन्हें जिंदगी भर के लिए छोड़ दिया। जीवन भर का यह दर्द वह परिवार, वे बच्चे, कैसे सहेंगे ? जिस घर में कोई कमाने वाला ही नहीं बचा उस परिवार के खर्चे को कौन संभालेगा। आस पड़ोस या रिश्तेदार परिवार को ढांढस तो दे सकते हैं, लेकिन जीवन भर उनकी जरूरतों को कोई पूरा नहीं कर सकता है। परिवार के लिए महंगाई के इस दौर में शिक्षा से लेकर रोटी, कपड़ा और मकान सब चीजों की पूर्ति कर पाना अत्यंत मुश्किल प्रतीत है।
इसलिए ऐसे पीड़ित परिवारों की सहायता के लिए सभी राज्य सरकारों को ठोस नियम बनाने की आवश्यकता है। सरकार के साथ-साथ इस जिम्मेदारियों के निर्वहन में एक मां को भी अपनी ममता के साथ आगे आने की जरूरत है, एक पिता को भी अपने सहारे की नई सोच को लेकर आगे आने की जरूरत है. सामाजिक संस्थाओं को भी ऐसे बच्चों को गोद लेने के लिए आगे आने की जरूरत है, ताकि कहीं यह बचपन कहीं गम में गुम न हो जाये.
दिल्ली सहित कुछ अन्य राज्य सरकारों ने ऐसे पीड़ित परिवारों के लिए चिंता जताई है और सहयोग करने का आश्वासन दिया है। यह काबिल-ए-तारीफ है। इस प्रकार की सहायता सभी राज्यों को भी शीघ्र ही करनी चाहिए। साथ ही यह भी देखने की जरूरत है कि सरकारों की यह चिंता और घोषणा सिर्फ कागजों तक ही सीमित नहीं रह जाय। इसको शीघ्र से शीघ्र धरातल पर उतारने की आवश्यकता है, क्योंकि पीड़ित परिवारों के लिए एक एक दिन भारी पड़ रहा है। राज्य सरकारों के साथ साथ उन स्कूलों को भी आगे आना चाहिए, जिस स्कूल में पीड़ित परिवार के बच्चे पढ़ रहे हैं। जितना संभव हो सके बच्चों की फीस में सहयोग करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भी बच्चों को लेकर चिंता जताई है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने सभी राज्यों के जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि वे कोरोना के कारण माता पिता या दोनों में से किसी एक को खोने की वाले बच्चों की जिम्मेदारी ले। उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करे। यह भी सुनिश्चित करे कि कोई भी बच्चा भूखा ना रहे। कोर्ट ने यह भी कहा कि इसके लिए किसी सरकारी आदेश की जरूरत नहीं है और शनिवार तक हर हाल में वेब पोर्टल पर इस तरह के बच्चों की जानकारी अपलोड की जाय। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी इस मुद्दे पर ‘बाल स्वराज’ के नाम से वेब पोर्टल शुरू किया है। आशा है सुप्रीम कोर्ट के पहल पर सभी राज्य सराकरें पीड़ित परिवारों और बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आगे आएंगे।