विनय श्रीवास्तव, जयपुर, (स्वतंत्र पत्रकार)
कोरोना महामारी पल पल जीवन के सत्य को चरितार्थ कर रहा है। लगभग डेढ़ वर्षों से यह दुनिया को सीखाने की कोशिश कर रहा है कि जो आज है, वही हमारा है। कल क्या हो जाएगा किसी को नहीं पता। इंसान दुनिया भर का धन दौलत इकट्ठा करते ही रह जायेगा, लेकिन क्षण भर में ही यह हमसे दूर हो जाएगा। हम इंसान हर चीज़ की प्लानिंग परमानेंट रखने की हिसाब से करते है। इस सत्य को जानते हुए भी की यहाँ परमानेंट कुछ भी नहीं है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने जीवन के उसी सत्य को तो समझाया है। वे कहते हैं “परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो। न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, अकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो ? तुम अपने आपको भगवान के चरणों अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है। भगवान श्री कृष्ण के उपदेश का आशय यही है कि चार दिन की इस जिंदगी को प्रेम से गुजारना चाहिए। रुपया पैसा, धन दौलत के लालच में हमें जीवन के असली मूल्य को नहीं भूलना चाहिए। अक्सर हमलोग अपने जीवन का बहुमूल्य समय शिकवे शिकायत में व्यतीत कर देते हैं। आज के जमाने में जीवन यापन के लिए रुपये पैसे आवश्यक है, लेकिन उस कीमत पर नहीं कि इसके लिए हम अपनों के बीच क्रोध और नफरत पैदा हो जाए। इस कीमत पर नहीं कि पैसे के लिए हम किसी का आदर और सम्मान करना छोड़ दें। इस कीमत पर नहीं कि हम किसी को भूखा प्यासा देखते रहें और उसकी मदद भी ना कर सकें। कोरोना महामारी और प्रभु का यही संदेश है “चार दिन की ज़िंदगी है, प्रेम से गुजार लो। जीवन का का कोइ भरोसा नहीं है। अपने जीवनकाल में हम जो नेक कार्य करते हैं, सबसे उत्तम व्यवहार रखते हैं, बिना लालच किसी की सेवा करते हैं वही अपना असली धन होता है। करोड़ों का धन दौलत यहीं रह जायेगा। अगर कुछ अपने पास रहेगा तो बस जीवन में किया हुआ पुण्य कार्य और व्यवहार ही रहेगा। यही तो जीवन की असली कामाई है।