कोलकाता, बंगाल विधानसभा चुनाव की हाई प्रोफाइल सीटों में हावड़ा जिले की बाली सीट का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है। लंबे समय तक वाम मोर्चा का मजबूत गढ रही बाली सीट पर 2011 से तृणमूल ने कब्जा जमा रखा है। इस बार लोगों की दिलचस्पी की वजह यह है कि पिछली बार तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाली वैशाली डालमिया इस बार भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं।्जाने-माने क्रिकेट प्रशासक दिवंगत जगमोहन डालमिया की बेटी वैशाली के लिए इस बार का चुनाव कुछ अलग तरह का है। चुनाव से ठीक पहले वैशाली ने तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व के तौर-तरीकों पर सवाल खड़े किए थे और अंततः पार्टी उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था। इससे पहले कि हम बाली में वैशाली की जीत की संभावनाओं के बारे में बात करें, एक नजर वैशाली की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर डालते हैं। वैशाली के पिता प्रभावशाली व्यवसायी जगमोहन डालमिया के नाम से भला कौन परिचित नहीं है। लंबे समय तक भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का सफल संचालन करने वाले जगमोहन डालमिया के पिता पथुरियाघाटा राज परिवार से जुड़े थे। इतने संभ्रांत और संपन्न परिवार में पैदा हुई वैशाली को बचपन से ही कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं हुई।तृणमूल सुप्रीमों ममता बनर्जी के साथ जगमोहन डालमिता की नज़दीकियां पहले से ही जगजाहिर थी। 2006 में बुद्धदेव भट्टाचार्य के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके प्रतिनिधि के रूप में बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन (सीएबी) अध्यक्ष पद के लिये चुनाव लडने वाले कोलकाता के पूर्व पुलिस कमिश्नर प्रसून मुखर्जी को पराजित कर जगमोहन डालमिया ने खेल जगत के साथ साथ बंगाल की राजनीति में भी हलचल पैदा कर दी थी। इस घटना के बाद ममता बनर्जी के साथ उनका लगाव और मजबूत हो गया। जगमोहन डालमिया के निधन के बाद भी ममता बनर्जी ने उनके परिवार के साथ घनिष्ठता बनाए रखी और 2016 के विधानसभा चुनाव में उनकी सुपुत्री वैशाली डालमिया को बाली सीट से टिकट देकर पुराने संबंधों का मान रखने की कोशिश की। चुनाव में वैशाली की आसान जीत हुई।इस बीच पार्टी में प्रभावशाली हो रहे एक गुट के साथ उनका मतभेद बढ़ता रहा और 2021 चुनाव से पहले वैशाली ने उक्त गुट के खिलाफ खुलकर नाराजगी जाहिर करनी शुरू कर दी। अंततः गत 22 जनवरी को तृणमूल नेतृत्व ने वैशाली डालमिया को पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाते हुए निष्कासित कर दिया। तृणमूल से निकाले जाने के तुरंत बाद वैशाली दिल्ली जाकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। भाजपा ने वैशाली के इसरार पर उन्हें बाली से ही टिकट दिया। लंबे समय से बाली वामपंथियों का गढ़ माना जाता रहा है 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने इस गढ़ में सेंध लगाते हुए जीत दर्ज की थी। पूर्व आईपीएस रछपाल सिंह ने यहां से तृणमूल के टिकट पर जीत हासिल कर इतिहास रच दिया था। 2016 में तृणमूल ने वैशाली को उम्मीदवार बनाया और वैशाली ने डबल मार्जिंन से जीत हासिल की।
वैशाली पर आरोप लगते रहे हैं कि वह काम करने के बजाए गुटबाजी में अधिक समय बिताती हैं। इस बारे में पूछने पर वैशाली ने “हिन्दुस्थान समाचार” को बताया कि उन पर लगाये गये आरोप पूरी तरह निराधार है। वे कहती हैं कि तृणमूल में उन्हें खुद ही गुटबाजी का शिकार होना पड़ा है। उन्होंने बताया कि अम्फन चक्रवात के बाद राहत दिये जाने के लिये उन्होंने अपने क्षेत्र के 600 लोगों के नाम भेजे थे लेकिन एक को भी राहत के नाम पर कुछ नहीं मिला।इस बार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने इस सीट से बहुचर्चित छात्र नेता दीप्सिता धर को मैदान में उतारा है हाथ से निकल चुके इस किले को फिर से हासिल करने के लिए माकपा पूरा जोर लगा रही है। दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस ने स्थानीय चिकित्सक राणा चटर्जी को टिकट दिया है। वैशाली कहती हैं कि जीत उन्हीं की होगी क्योंकि लोग परिवर्तन चाहते हैं। 2011 के चुनाव में बाली में भाजपा को कुल मतों का 2.56 प्रतिशत मत मिले थे जो 2016 के चुनाव में बढ़कर 15.53 प्रतिशत हो गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसमें और वृद्धि दर्ज की गई। भाजपा के वोट शेयर में लगातार हो रही वृद्धि वैशाली के आत्मविश्वास की सबसे बड़ी वजह है।
वैशाली को इस बात का अहसास है कि अगर वह जीतती हैं तो राजनीति में उनकी अहमियत बढ़ेगी। चुनाव हारने पर राजनीति को अलविदा कहने का विकल्प भी खुला रखना चाहेंगीं। बाली में मतदान हो चुका है लेकिन वैशाली अभी भी पार्टी के लिए प्रचार में व्यस्त हैं।
साभार – हिस
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