एक आदेश से लाखों शिक्षक, मजदूर, व्यापारी बेरोजगारी के चौखट पर पहुंच गये हैं. परीक्षाओं को टालने का फैसला कसौती पर कितना खरा है. आनलाइन परीक्षाएं यदि आयोजित होती तो समय पर अगला सत्र भी शुरू हो सकता था. अगली कक्षाएं भी चल सकती थीं. इसका असर न तो ट्यूटरोयिल इंस्टीट्यूटों पर और ना ही बच्चों को तनाव में रहना पड़ा. जो फैसल कल लिये जा सकते हैं, वे आज क्यों नहीं?
विनय श्रीवास्तव, जयपुर (स्वतंत्र स्तंभकार)
सरकार के एक आदेश के साथ ही लाखों लोग बेरोजगारी की चौखट पर पहुंच गए हैं। कोरोना महामारी को देखते हुए सीबीएसई बोर्ड का दसवीं और बारहवीं कक्षा की परीक्षाओं को स्थगित कर दिया गया है। सीबीएसई बोर्ड के बाद आईसीएसई बोर्ड ने भी दसवीं और बारहवीं की परीक्षा टाल दी है। यहां तक कि राज्य सरकारें भी अपने बोर्ड की परीक्षाओं को टाल रही हैं। नई तारीखों का फैसला कोरोना की स्थिति को देखते हुए एक जून को लिया जाएगा। परीक्षा स्थगित करने का आदेश आते ही एक ही झटके में शिक्षा से जुड़े लाखों लोग बेरोजगारी के चौखट पर पहुंच गए हैं। खासकर वे लोग जो कोचिंग संस्थानों और टीयूशन के माध्यम से अपने घरों की आजीविका चला रहे थे। सरकार द्वारा बोर्ड परीक्षाओं का स्थगन आदेश आने के बाद जो छात्र कोचिंग और टीयूशन के माध्यम से पढ़ाई कर रहे थे, उन्होंने अपनी पढ़ाई बंद कर दी है। छात्रों और उनके माता पिता का मानना है कि जब परीक्षा ही स्थगित हो गई है तो ट्यूशन और कोचिंग में पैसा क्यों खर्च करें। परीक्षा स्थगन का आदेश देकर सरकार ने लाखों लोगों को एक ही झटके में बेरोजगार कर दिया है। क्या सरकार के पास परीक्षा को टालने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं था ? जब बच्चों की क्लास ऑनलाइन हो सकती है तो क्या इनकी परीक्षाएं ऑनलाइन नहीं हो सकती थीं ? या फिर कोरोना नियमों की सख्ती से पालन करते हुए छात्रों की परीक्षाएं नहीं हो सकती थीं ? इससे भी बड़ा और महत्वपूर्ण प्रश्न है कि कोरोना संक्रमण का खतरा क्या सिर्फ शिक्षा से जुड़े संस्थाओं और छात्रों से ही है ? क्या कोरोना का संक्रमण वहां नहीं फैल रहा है जहां चुनावी रैलियों में बिना मास्क और बिना सामाजिक दूरी के हजारों लाखों लोग इकट्ठा हो रहे हैं ? क्या कोरोना का संक्रमण वहां नहीं फैल रहा है, जहाँ आस्था के नाम पर लाखों लोग एकत्रित हो रहे हैं ? इस प्रकार का आदेश देने से पहले सरकारों को इस क्षेत्र से जुड़े लाखों लोगों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था। जो लोग टीयूशन और कोचिंग पर निर्भर थे, वे लोग अपने परिवार का पालन पोषण अब कैसे करेंगे ? घर का किराया और किस्त से लेकर बिजली, पानी, दवाइयां व अन्य घरेलू खर्च सबकुछ इसी कामाई पर तो निर्भर था। अब ये लोग किसके भरोसे अपना आजीविका चलाएंगे ? ऐसा तो है नहीं कि मकान मालिक घर का किराया नहीं लेगा, स्कूल बच्चों का फीस माफ कर देगा, बैंक किसी भी प्रकार के चल रहे लोन को माफ कर देगी या फिर सराकर बिजली बिल नहीं लेगी। ऐसा तो कुछ भी नहीं होने वाला है।
इसी प्रकार पूर्ण कर्फ्यू और लॉक डाउन के कारण प्रतिदिन कामाई करने वाले छोटे छोटे व्यापारियों, मजदूरों और सेल्समैनों पर पड़ रहा है। उनके लिए भी आजीविका चलाना मुश्किल पड़ रहा है। अभी पिछले लॉक डाउन की मार से पूरी तरह उबर भी नहीं पाए थे कि दूसरे लॉक डाउन की आहट ने इन्हें पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया है। एक बार फिर से मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है। वही दर्द और वही मुश्किलें फिर से आहट दे रही हैं जो पिछले साल हुई थी।
पूरा देश कोरोना की दूसरी लहर से कराह रहा है। प्रतिदिन दो लाख से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे है। कोरोना से लोगों का जीवन बचाना जरूरी है लेकिन राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को कोई भी आदेश देने से पहले उनकी आजीविका का प्रबंध करना भी बेहद जरूरी है।
अभी भी समय है। परीक्षाओं को टालने से बेहतर होगा कि कुछ विलंब से ही परीक्षाओं को कड़े कोरोना नियम के अंतर्गत पूरी कराई जाए। इससे लाखों छात्रों की भविष्य के लिए भी सही रहेगा और इससे जुड़े लोगों की बेरोजगारी भी दूर होगी।