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संस्कृत को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव नहीं: गृह मंत्रालय

नई दिल्ली, केंद्र सरकार ने कहा है कि हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत को संपर्क भाषा और राजभाषा बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में कहा कि सरकार का विचार संस्कृत को संपरिक भाषा के साथ राजभाषा बनाने का कोई विचार नही है। राय ने कहा कि अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है।एक अन्य सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में देश की कुल 22 भाषाओं का जिक्र है। 14 भाषाओं अर्थात असमिया, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगू और उर्दू को संविधान में शुरुआत में यानि 26 जनवरी 1950 को शामिल किया गया था। जबकि सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में 10 अप्रैल 1967 को शामिल किया गया।
रेड्डी ने आगे बताया कि कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषाओं को 31 अगस्त 1992 को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह दी गई। वहीं, बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषाओं को 07 जनवरी 2004 को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। इनमें से अनेक भाषाएं कई राज्यों में बोली जाती हैं और उनका प्रयोग राज्यों की सीमाओं तक ही सीमित नही है।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने आगे बताया कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भोजपुरी बोलने वालों की संख्या 5,05,79,447 है। भोजपुरी और राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के बारे में पूछने पर रेड्डी ने बताया कि इनको आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग समय-समय पर उठती रही है। चूंकि, बोलियों और भाषाओं का विकास एक ऐसी परिवर्तनशील प्रक्रिया है जो सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास से प्रभावित होती है, इसलिए भाषाओं के लिए ऐसा कोई मानदंड निर्धारित करना मुश्किल है जो उन्हें बोलियों से अलग करता हो अथवा जिससे उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जा सके।
साभार-हिस

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