इतिहास के पन्नों में छुपी कड़ी (एक विश्लेषण – कड़ी-एक)
लेखक – इंजीनियर श्याम सुंदर पोद्दार (स्तंभकार व आलोचक)
कांग्रेस की सरकारों ने जो इतिहास लिखवाया, वह इस तरह लिखवाया कि लोगों में संदेश जाये की नरम दल वालों ने देश की आजादी की लड़ायी लड़ी. गरम दल वाले तो मारो-काटो वाले थे. कांग्रेस की स्थापना एएच ह्यूम ने सन 1883 में की थी. 1857 के बाद देश में बासुदेव बलवंत फड़के के क्रांतिकारी आंदोलन के बाद अंग्रेजों को महसूस होने लगा कि भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रबल भावना है, जो 1857 के दमन के बाद भी दबी नहीं है. एक ऐसा संगठन बनाए जो हो तो ब्रिटिश निष्ठ मंच पर भारतीय अपनी शिकायत कह पाए. एक रिटायर्ड अंग्रेज़ सिविल सर्वेंट एएच ह्यूम को ज़िम्मेदारी दी गयी और 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म हुआ.
कालान्तर में कांग्रेस पार्टी में विभाजन हो गया. एक गरम दल और दूसरा नरमदल. नरम दल (अंग्रेज़निष्ठ ग्रुप) कहता था कि अंग्रेजों को भारत में रखकर भारत की उन्नति करेंगे. इस दल के नेता थे गोपाल कृष्ण गोखले व दूसरा दल (गरम दल) कहता था कि अंग्रेजों को भारत से निकाल फेंकेंगे. तभी भारत की उन्नति होगी. इस दल के नेता थे बाल गंगाधर तिलक, लाला लाज़पत राय, बिपिन चंद्र पाल. इनका नारा था स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है. इस जोड़ी को लाल-बाल-पाल की जोड़ी कहते हैं. अंग्रेजों ने जब बंगाल का विभाजन किया तब लाल-बाल-पाल ने बंग भंग बिरोधी इतना तीव्र आंदोलन किया कि अंग्रेजों को बंगाल का विभाजन रद्द करना पड़ा. अंग्रेज इस आंदोलन से इतने भयभीत हो गए कि अपने को बंगाल में असुरक्षित महसूस करने लगे तथा अपनी राजधानी कलकत्ता से उठाकर दिल्ली ले गए. लाला लाजपतराय को वर्मा की मंडाला जेल में दो वर्ष के लिए भेज दिया गया. खुदीराम बोस को फांसी पर, जब तिलक ने सम्पादकीय लिखा तो उनको छह वर्ष के लिए मंडाला जेल भेज दिया.
कांग्रेस की सरकारों ने जो इतिहास लिखवाया, वह इस तरह लिखवाया कि लोगों में संदेश जाये की नरम दल वालों ने देश की आजादी की लड़ायी लड़ी. गरम दल वाले तो….
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सुभाष बाबू के अनुसार, तिलक की इतनी जल्दी मृत्यु नहीं होती, यदि उन्हें मंडाला जेल में नहीं भेजा जाता. उम्र बढ़ने के साथ-साथ गोखले का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा. गांधी जब भी दक्षिण अफ़्रीका से भारत आते, उस समय कांग्रेस का अधिवेशन होता तो वे उसमें पहुंच जाते व वहां सफ़ाई का काम देखने लगते. इस प्रकार उनका सम्पर्क गोखले के साथ हो गया. गोखले ने गांधी से 1910 के कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा. गांधी ने इस शर्त के साथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनना स्वीकार किया कि कांग्रेस अधिवेशन के बाद वे दक्षिण अफ़्रीका चले जाएंगे. इस कारण बात नहीं बनी (संदर्भ पुस्तक – मोहनदास-लेखक राज मोहन गांधी -पेज-168). गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका में आंदोलन किया पर कुछ भी सफलता प्राप्त नहीं की.
गांधी ने गोखले से कहा आप एक बार दक्षिण अफ़्रीका आ जाए. 1911 अंत में गोखले ने गांधी को सूचना दी कि वे आगामी वर्ष दक्षिण अफ़्रीका आ रहे हैं. 1912 की जुलाई में गोखले ने गांधी को लंदन से सूचित किया कि वे दक्षिण अफ़्रीका आ रहे हैं व भारत राज्य के सचिव का भी उनकी दक्षिण अफ़्रीका की यात्रा के लिए पूरा समर्थन है. इस सूचना पर गांधी बहुत प्रफुल्लित हुए. गोखले दक्षिण अफ़्रीका के मंत्रियों से भारत सरकार की तरफ़ से बात करेंगे यानी साम्राज्य की तरफ़ से. दक्षिण अफ़्रीका के मंत्री गोखले की बात को अस्वीकार नहीं कर सकते. (पुस्तक मोहनदास -लेखक -राजमोहन गांधी -पेज-168) इसके पश्चात गोखले प्रिटोरिया पहुंचे व वहां के प्रधान बोथा व अन्य अधिकारियों से बात करके गांधी से कहा कि अब तुम भारत आ जाओ. सब बात सुलझ गयी है. काला क़ानून वापस ले लिया जाएगा. इमिग्रेशन कानून से जातिगत रोक हटा ली जाएगी व तीन पाउंड का कर ख़त्म कर दिया जाएगा. (संदर्भ पुस्तक – मोहनदास – लेखक -राज मोहन गांधी. पेज-169). इस तरह नरम दल वालों को ब्रिटिश सरकार हीरो बना कर लाती है जैसे गांधी को बनाया. वहीं गरम दल वाले लोकमान्य तिलक को वर्मा के मंडाला जेल में रखती है. ताकि वे शरीर से पूर्णतः रोगी बन जाए व जल्दी मृत्यु को वरण करें. इससे यह साफ हो जाता है कि नरम दल वालों ने अपने हिसाब से इतिहास लिखवाया और गरम दल वालों को दानव दिखाया.
(अगली कड़ी अगले मंगलवार को)