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अणुव्रत जीवन शैली व्यैक्तिक व वैश्विक समस्याओं का समाधान
गुवाहाटी, अणुव्रत की स्थापना के 73वें वर्ष इस बात को लेकर चर्चा फिर से एक बार जोर पकड़ने लगी है कि यह क व्रत आधारित जीवनशैली है। छोटे-छोटे व्रतों के माध्यम से व्यक्ति आत्म संयम और आत्म अनुशासन का अभ्यास करता है। इसके जरिए अपने दैनिक दिनचर्या को सकारात्मक दिशा की ओर आगे ले जा सकता है।
देश की आजादी के 18 माह बाद ही 01 मार्च, 1949 को आचार्य तुलसी ने असली आजादी अपनाओं के उद्घोष के साथ अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया था। आचार्य का मानना था कि जब तक भारतीय नागरिक अनैतिकता, हिंसा साम्प्रदायिक विद्वेष और रुढ़िवादी सोच से आजाद नहीं होगा, देश की आजादी अधूरी रहेगी। अणुव्रत के 73वें स्थापना दिवस के मौके पर सोमवार को गुवाहाटी समेत देश भर में मीडिया के साथ अणुव्रत संवाद नामक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
स्थापना दिवस के मौके पर अणुव्रत ध्वजारोहण व वंदन गीत गाये गये। फैंसी बाजार के तेरापंथ भवन में इस मौके पर एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें अणुव्रत की केंद्रीय समिति के कार्यकारी सदस्य व गुवाहाटी समिति के उपाध्यक्ष बजरंग बैद, गुवाहाटी समिति के अध्यक्ष छतर सिंह चौरड़िया, मनोनित अध्यक्ष बजरंग दोशी, सचिव नोरोत्तन गधैया ने संयुक्त रूप से कहा कि अणुव्रत को किसी धर्म, सम्प्रदाय, जाति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। यह समूची मानवता के लिए है।
एक सवाल के जवाब में कहा कि बजरंग बैद ने कहा कि गुवाहाटी में अणुव्रत समिति का गठन 10 वर्ष पहले हुआ था। उन्होंने माना कि, इसको गति देने, समूचे समाज को अणुव्रत के महत्व को अवगत कराने के लिए जन जागरूकता और इसके प्रचार-प्रसार पर की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने मीडिया के साथ मिलकर काम करने की बात पर जोर दिया। कार्यक्रम के दौरान अणुव्रत समिति की ओर से मीडिया कर्मियों को मोमेंटो प्रदान कर सम्मानित भी किया गया।
उपरोक्त पदाधिकारियों ने कहा कि देश ने प्रगति और विकास के अनेक कीर्तिमान गढ़े हैं लेकिन, असली आजादी अब भी हमसे दूर है। अणुव्रत आंदोलन सात दशक से मूल्य आधारित, संयम प्रधान जीवनशैली के महत्व को रेखांकित करते हुए जनजीवन को प्रेरित करते आ रहा है। इसको देश के बाहर भी स्वीकार्यकर्ता मिली है।
उन्होंने कहा कि अणुव्रत अनुशास्ता के रूप में आचार्य महाश्रमण इस सम्पूर्ण आंदोलन को अपना आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं। अपनी अहिंसा यात्रा के माध्यम से वे जन-जन में नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का संदेश दे रहे हैं।
वहीं अणुव्रत आंदोलन की प्रतिनिधि संस्था अणुव्रत विश्व भारती संयुक्त राष्ट्र संघ के सिविल सोसायटी विभाग से मान्यता प्राप्त एक गैर सरकारी संगठन है। अणुविभा ने इसके मद्देनजर रचनात्मक कार्यक्रमों की एक व्यापक रूपरेखा बनायी है। लोकल से ग्लोबल तक इस मुहिम में देश-विदेश से 20 हजार अणुव्रत कार्यकर्ता जुड़े हुए हैं। इन कार्यकर्ताओं को विभिन्न स्तर पर प्रशिक्षित करने की शुरुआत की जा चुकी है। भारत के 150 से अधिक स्थानों पर अणुव्रत समितियां सक्रिय हैं। विदेशों में 50 अणुव्रत ग्लोबल चैप्टर्स स्थापित करने की योजना है।
अणुविभा ने अपने कार्यक्रमों को त्री आयामी बनाया है। जिसमें अणुव्रत ग्लोबल मिशन, अणुव्रत शिक्षा संस्कार मिशन और अणुव्रत समाज मिशन शामिल है। इसके जरिए जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। जिसमें अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन, जीवन विज्ञान पाठ्यक्रम, अणुव्रत बालोदय प्रकल्प, अणुव्रत संसदीय मंच, चुनाव शुद्धि अभियान, अणुव्रत लेखक मंच, अहिंसा प्रशिक्षण केंद्र, पर्यावरण शुद्धि अभियान, नशामुक्ति अभियान, अणुव्रत शिक्षक संसद, अणुव्रत क्रिएटिविटी कांटेस्ट आदि प्रमुख है।
उन्होंने बताया कि पहले चरण में देश-विदेश में 500 अणुव्रत अंबेसडर्स तैयार करने का लक्ष्य है। ये कार्यकर्ता अणुव्रत जीवनशैली के स्वयं प्रयोक्ता होंगे और जन-जन में इस जीवनशैली के प्रसार हेतु कार्य करेंगे। अलग-अलग जाति, धर्म, सम्प्रदाय को मानने वाले ये अणुव्रत अंबेसडर्स एक आदर्श समाज की रचना का रचनात्मक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे।
साथ ही बताया कि एक अणुव्रती व्यक्ति हिंसा नहीं करता, न हिंसा का समर्थन करता है। सभी धर्म और सम्प्रदायों का सम्मान करता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी या अन्य किसी भी धर्म का अनुयायी अणुव्रती बन सकता है। अणुव्रती पर्यावरण के प्रति सजग होता है और व्यवहार में प्रामाणिक होता है तथा वह नशामुक्त होता है।
साभार-हिस