गुवाहाटी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को अपने प्रमुख कार्यक्रम मन की बात कार्यक्रम में असम के पद्मश्री पुरस्कार विजेता जादव पायेंग, काजीरंगा, हयग्रीव माधव मंदिर समेत अन्य कई उपलब्धियों की चर्चा की। उन्होंने असम वासियों के वन संरक्षण, जल संरक्षण और प्रकृति के संरक्षण के लिए किये गये कार्यों की सराहना की।
अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में, प्रधानमंत्री मोदी ने असम के जादव पायेंग का उदाहरण साझा किया, जिन्हें उनके काम के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। जादव पायेंग वे व्यक्ति हैं जिन्होंने असम के माजुली द्वीप में लगभग 300 हेक्टेयर में मानव निर्मित जंगल लगाया है। पेड़ों को बढ़ाने में वे सक्रिय रूप से योगदान दे रहे है। वे लगातार वन संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं और लोगों को पौधरोपण और जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रेरित करने में भी शामिल हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में जलचर पक्षियों की कुल 112 प्रजातियां देखी गईं हैं। उन्होंने प्रकृति की रक्षा में असम के मंदिरों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व प्राधिकरण पिछले कुछ समय से अपने जलग्रहण क्षेत्रों में विचरण करने वाले जलचर पक्षियों की जनगणना कर रहा है। यह जनगणना जल पक्षियों की आबादी और उनके पसंदीदा निवास स्थान के बारे में भी बताती है। उन्होंने कहा, अभी दो-तीन हफ्ते पहले फिर से सर्वे किया गया। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार जलचर पक्षियों की संख्या में लगभग एक सौ पचहत्तर (175 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है। इस जनगणना के दौरान काजीरंगा नेशनल पार्क में पक्षियों की कुल 112 जलचर पक्षियों की प्रजातियों को देखा गया है।
उन्होंने कहा, इनमें से 58 प्रजातियां यूरोप, मध्य एशिया और पूर्वी एशिया सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों से शीतकालीन प्रवास के दौरान यहां पहुंचती हैं। प्रधान मंत्री ने कहा कि इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि “बहुत कम मानवीय हस्तक्षेप के साथ बेहतर जल संरक्षण भी है। हालांकि कुछ मामलों में सकारात्मक मानवीय हस्तक्षेप भी बहुत महत्वपूर्ण है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि असम के मंदिर भी प्रकृति के संरक्षण में एक अनूठी भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा, “यदि असम के मंदिरों पर नज़र डालें, तो आप पाएंगे कि हर मंदिर के आसपास एक तालाब है। हाजो के हयाग्रीव माधब मंदिर, शोणितपुर में नागशंकर मंदिर और गुवाहाटी में उग्रतारा मंदिर के पास ऐसे कई तालाब हैं। उनका उपयोग कछुओं की लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए किया जा रहा है। असम में कछुओं की प्रजातियों की सबसे अधिक संख्या पायी जाती हैं। इन मंदिरों के तालाब उनके संरक्षण और प्रजनन और उनके बारे में प्रशिक्षण के लिए उत्कृष्ट स्थल बन सकते हैं।
साभार-हिस
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