इण्डो एशियन टाइम्स ब्यूरो, नई दिल्ली
सीएसआईआर-सीएमईआरआई-सेंटर फॉर एक्सीलेंस फॉर फार्म मशीनरी ने लुधियाना (पंजाब) के गिल रोड स्थित सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन फार्म मशीनरी (सीओईएफएम)आवासीय कॉलोनी को 24X7 घंटे बिजली देने के लिए अधिकतम 50 किलो वॉल की क्षमता वाले ऑफ-ग्रिड सोलर-बायोडीजल हाइब्रिड मिनीग्रिड सिस्टम विकसित किया है। सीएसआईआर-सीएमईआरआई के निदेशक प्रो. (डॉ.) हरीश हिरानी ने इस सिस्टम का एक फरवरी को उद्घाटन किया।
इस अवसर पर प्रो. हिरानी ने कहा कि अभी हमारे देश में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का बड़ा हिस्सा जीवाश्म ईंधन स्रोतों जैसे कोयला, डीजल इत्यादि पर निर्भर है, जिसका देश की ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रदूषण पर गंभीर निहितार्थ हैं।ये उच्च शक्ति वाली केंद्रीकृत उत्पादन प्रणालियां खर्चीले ट्रांसमिशन और विद्युत वितरण ढांचे पर निवेश की जरूरत पैदा करते हैं, जो बिजली के ट्रांसमिशन में होने वालेनुकसान को बढ़ाता है।इस परिदृश्य में, छोटे पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ स्थानीयकृत क्षेत्र विशेष के लिए वितरण वाली मिनीग्रिड जैसी उत्पादन प्रणालियांबिजली की खपत वाले केंद्रों के पास संभावित बिजली उत्पादक बन सकते हैं और स्थानीय समुदाय की ऊर्जा जरूरतेंपूरी करने में मददगार हो सकते हैं।इस तरह की प्रणालियां सुदूर क्षेत्रों, गांवों और पहाड़ी क्षेत्र इत्यादि के लिए निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए अनूठे समाधान हो सकते हैं।
इसके अलावा, सीएसआईआर-सीएमईआरआई में विकसित की गई सोलर बायोडीजल हाईब्रिड मिनीग्रिड प्रणाली का स्मार्ट सिटी परियोजना में भी इस्तेमाल है, क्योंकि इसमें विभिन्न स्रोतों को जोड़ने की अनूठी विशेषता मौजूद है।ग्रामीण इलाकों के विपरीत, शहरों में घरेलू खपत के लिए बिजली की ज्यादा जरूरत होती है, जिसके साथ विभिन्न तरह के उपयोग की वजह से भारी उतार-चढ़ाव बिजली संतुलन एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा बना देता है।
विभिन्न स्थितियों में लोडिंग, सोलर विकरण के तहत विकसित प्रणाली का प्रदर्शन समझने के लिए सीओईएफएम आवासीय कालोनी में दिन के अलग-अलग समय, महीनों और विभिन्न मौसमों में प्रयोग संचालिय किए गए थे। सोलर फोटोवोल्टिक और बायोडीजल दोनों ही अपनी प्रकृति में नवीकरणीय हैं और प्रदूषण घटाने में मदद कर सकते हैं। सोलर पीवी सिस्टम को बहुत कम जगह लेने वाले विभिन्न क्षमता के सोलर ट्री (3.05 किलोवॉट के दो, 8.125 किलोवॉट के एक और 11.375 किलोवॉट के तीन) पर लगाया गया है, जो शहरी क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी हैं।
प्रो. हिरानी ने यह भी बताया कि हाल ही में प्रति एक टन (आठ घंटे) क्षमता वाले पूरी तरह से ऑटोमेटिक बायोडीजल प्लांट विकसित किया गया है, जो किसी भी तरह कीजैविक कच्चे माल (अपशिष्ट खाद्य तेल, प्रयुक्त खाद्य तेल, पशु वसा इत्यादि) से बायोडीजल बना सकता है, जिसे जेनरेटर चलाने के लिए जरूरी ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि यह सिस्टम रोजगार पैदा करने में भी मददगार है। यह विकसित प्रणाली न केवल आवासीय कॉलोनी में प्रकाश की व्यवस्था करनेमेंउपयोगी है, बल्कि इससे 10 हॉर्स पॉवर और 5 हॉर्स पॉवर के कृषि पंप भी चलाए जा रहे हैं। इसकी क्षमता को बढ़ाने के लिए भविष्य में अतिरिक्त संख्या मेंसोलर ट्री और बैटरी बैंक जोड़ने कीयोजना है। इस सिस्टम में ऊर्जा के अन्य स्रोतों जैसे पवन ऊर्जा और बायोगैस को भी जोड़ा जा सकता है। इस तरह के विकास ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों में बहुत से लोगों को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए सशक्त बनाते हैं और भारत ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ता है।