विनय श्रीवास्तव, स्वतंत्र पत्रकार
आंदोलन और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश एक बार फिर शर्मिंदा है। इस बार तो इस अभिव्यक्ति की आज़ादी ने देश की इज्जत को इस प्रकार तार तार किया है कि देश की 135 करोड़ लोगों का सिर शर्म से झुक गया है। यहां तक कि देश से बाहर दूसरे देशों में रहने वाले भारतवंशी भी शर्मिंदा हैं। गणतंत्र के गद्दारों ने इस बार ऐसी चोट दी है कि जिस दिन को पूरा देश हर साल बड़े शान से इस राष्ट्रीय पर्व को मनाता है वही दिन हमेशा के लिए इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गया। आंदोलन के नाम पर गणतंत्र दिवस पर हुई दहशगर्दी पूर्ण रूप से सुनियोजित थी। अब तक मिले कई वीडियो और साक्षात से यह साबित हो चुका है। पंजाब का क्रिमिनल लक्खा सिंह जिसके ऊपर कई आपराधिक मामले चल रहे हैं उसका 17 जनवरी का वीडियो वायरल हुआ है। इसमे वह गणतंत्र दिवस के दिन किसानों को लाल किले पर पहुंचने और अराजकता फैलाने की बात कर रहा है। वहीं दूसरी ओर आंदोलन में शामिल होने के लिए गांवों के किसानों को धमकाने और जुर्माने लगाने की बात भी सामने आ रही है। भटिंडा के गांवों के उन किसानों पर 1500 रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है जो किसान आंदोलन के हिस्सा नहीं हो रहे हैं।
गणतंत्र और तिरंगे की गद्दारी से पूरा देश आक्रोश में है। गाजीपुर बॉर्डर से लेकर टिकरी बॉर्डर तक के आस पास के ग्रामीण आंदोलन स्थल पर पहुंच कर आंदोलनकारियों को हटाने की मांग कर रहे हैं। क्योंकि आंदोलन के नाम पर किसानों ने दिल्ली में उत्पात मचाया। दिल्ली के आईटीओ से लेकर लालकिले तक गुंडागर्दी मचाई गई। पुलिस वालों पर तलवार से हमला करने की कोशिश की गई। कई जगहों पर पत्थरबाजी की गई। कई ट्रैक्टरों में पत्थर भर कर लाया गया। इससे साफ जाहिर होता है कि गणतंत्र दिवस के दिन अशांति फैलाने की साजिश प्रायोजित थी। और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि किसान नेताओं को इसकी जानकारी नहीं होगी। दिल्ली पुलिस और किसान नेताओं के बीच हुई रूट की शर्तों को तोड़ा गया। जिस रूट से ट्रैक्टर रैली निकालनी थी उस रूट का बहिष्कार कर दिया गया। कुल मिलाकर देश के राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस को पूरे विश्व में शर्मसार कर दिया गया। यहां तक कि उपद्रवियों ने लाल किले पर तिरंगे का भी अपमान किया। दिल्ली पुलिस और भारत की इंटेलिजेंस एजेंसियों ने पहले ही चेताया था कि आंदोलन के नाम पर दहशतगर्दी हो सकती है। और वही हुआ जिसका अंदेशा जताया जा रहा था। यकीनन यह ना तो किसान आंदोलन कहा जा सकता है और ना ही उपद्रवियों को किसान का दर्जा ही दिया जा सकता है। भारत का किसान कभी भी देश विरोधी नहीं हो सकता है। खून पसीना बहाने वाले किसान देश पर मर मिटने वाले होते हैं ना कि देश की गरिमा गिराने वाले। वो भी गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर तो बिल्कुल भी नहीं।
26 जनवरी की घटना के बाद जो वास्तविक किसान हैं वो सदमें में हैं और उन्होंने अपने आप को इस आंदोलन से अलग कर लिया है। यहां तक कि दो किसान संगठनों ने भी कृषि मंत्री से मिलकर अपने आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा लिखित में दिया है और अफसोस जाहिर किया है। भारतीय किसान यूनियन (भानु) के अध्यक्ष ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने कहा कि मैं तिरंगे की अपमान व पुलिस पर हुए हमले की घटना से इतना दुखी हूँ कि यह आंदोलन तत्काल प्रभाव से छोड़ रहा हूँ। दूसरी तरफ मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीएम सिंह ने यूपी गेट पर प्रेस कांफ्रेंस कर इस बात की जानकारी दी। साथ ही उन्होंने कहा कि गुनाहगारों को सख्त सजा मिले।
किसान आंदोलन के शुरुआत से मैंने कहा था कि यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है। यह बात भी पूर्ण रूप से साबित हो चुका है। 26 जनवरी की घटना के बाद आंदोलन कमजोर पड़ चुका था। जब किसान रूपी किसानी नेता राकेश टिकैत को लगा कि अब तो आंदोलन समाप्त होने की कगार पर है तो आंसुओं का सहारा लिया जिससे यह आंदोलन पुनर्जीवित होता दिखाई दे रहा है। राकेश टिकैत के समर्थन में अब तक परदे के पीछे से मोर्चा संभालने वाली राजनीतिक पार्टियां अब खुल कर सामने आ गई हैं। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, जयंत सिंह, मनीष सिसोदिया, मायावती व ममता बनर्जी खुल कर राकेश टिकैत का समर्थन कर रहे हैं। इन राजनीतिक पार्टियों की खिसकी हुई जमीन इस आंदोलन के बहाने सींचने का प्रयास कर रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
गणतंत्र दिवस पर शर्मसार करने वाली घटना के बाद सरकार भी अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती है। इस घटना में शामिल उन सभी लोगों पर सख्त कार्रवाई शीघ्र होनी चाहिए। लालकिले और तिरंगा की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी थी। तिरंगे की सुरक्षा के लिए चाहे जो भी कदम उठाना पड़े सरकार को उठाना ही चाहिए।
साथ ही बार बार अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देशद्रोह करने वालों पर शिकंजा हमेशा के लिए कसना चाहिए ताकि इस प्रकार की दुस्साहस कोई ना करे।
यदि संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है तो यही संविधान हमसे देश की सुरक्षा की गारंटी भी मांगता है। हर हाल में हमें अपने देश और तिरंगे की शान के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।