इण्डो एशियन टाइम्स, ब्यूरो, नई दिल्ली
भारत वित्त वर्ष 2020-21 में भी पसंदीदा निवेश गंतव्य बना रहा, जो वैश्विक निवेश को शेयरों में लगाने और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से बेहतरी आने की संभावनाओं के मद्देनजर संभव हो पाया है। देश में शुद्ध एफपीआई प्रवाह नवम्बर 2020 में 9.8 अरब डॉलर के सर्वकालिक मासिक उच्चतम स्तर पर पहुंच गया जो निवेशकों में फिर से जोखिम उठाने की प्रवृत्ति बढ़ने, वैश्विक स्तर पर मौद्रिक नीति को उदार बनाने और घोषित किए गए राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेजों के मद्देनजर अनुकूल यील्ड हासिल करने पर विशेष जोर देने और अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने से संभव हुआ। भारत वर्ष 2020 में विभिन्न उभरते बाजारों में एकमात्र ऐसा देश रहा जहां इक्विटी में एफआईआई का प्रवाह हुआ।
तेजी से ऊंची छलांग लगाते सेंसेक्स और निफ्टी की बदौलत भारत ने बाजार पूंजीकरण और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात अक्टूबर 2010 के बाद पहली बार 100 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया। हालांकि, इससे वित्तीय बाजारों और वास्तविक क्षेत्र में कोई सामंजस्य न होने पर चिंता जताई जाने लगी है।
वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में निर्यात में 5.8 प्रतिशत और आयात में 11.3 प्रतिशत की गिरावट होने की संभावना है। भारत में चालू खाते में अधिशेष वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी का 2 प्रतिशत रहने की संभावना है जो 17 वर्षों के बाद ऐतिहासिक उच्चतम स्तर है।
जहां तक आपूर्ति से जुड़ी स्थिति का सवाल है, सकल मूल्य वर्द्धित (जीवीए) की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2020-21 में (-) 7.2 प्रतिशत रहने की संभावना है, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में यह 3.9 प्रतिशत आंकी गई थी। कोविद-19 महामारी के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था को लगे तेज झटकों का असर कृषि क्षेत्र की बदौलत कम हो जाने की संभावना है क्योंकि इसकी वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत रहने की आशा है, जबकि वित्त वर्ष के दौरान उद्योग एवं सेवा वृद्धि दर क्रमश: (-) 9.6 तथा (-) 8.8 प्रतिशत रहने की संभावना है।