इण्डो एशियन टाइम्स, ब्यूरो, नई दिल्ली
वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 11 प्रतिशत और सांकेतिक जीडीपी वृद्धि दर 15.4 प्रतिशत रहेगी, जो देश की आजादी के बाद सर्वाधिक है। व्यापक टीकाकरण अभियान, सेवा क्षेत्र में तेजी से हो रही बेहतरी और उपभोग एवं निवेश में त्वरित वृद्धि की संभावनाओं की बदौलत देश में ‘V’ आकार में आर्थिक विकास संभव होगा। केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश की जिसमें कहा गया है कि पिछले वर्ष के अपेक्षा से कम रहने वाले संबंधित आंकड़ों के साथ-साथ कोविड-19 के उपचार में कारगर टीकों का उपयोग शुरू कर देने से देश में आर्थिक गतिविधियों के निरंतर सामान्य होने की बदौलत ही आर्थिक विकास फिर से तेज रफ्तार पकड़ पाएगा। देश के बुनियादी आर्थिक तत्व अब भी मजबूत हैं क्योंकि लॉकडाउन को क्रमिक रूप से हटाने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत मिशन के जरिए दी जा रही आवश्यक सहायता के बल पर अर्थव्यवस्था बड़ी मजबूती के साथ बेहतरी के मार्ग पर अग्रसर हो गई है। इस मार्ग पर अग्रसर होने की बदौलत वर्ष 2019-20 की विकास दर की तुलना में वास्तविक जीडीपी में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी जिसका मतलब यही है कि अर्थव्यवस्था दो वर्षों में ही महामारी पूर्व स्तर पर पहुंचने के साथ-साथ इससे भी आगे निकल जाएगी। ये अनुमान दरअसल आईएमएफ के पूर्वानुमान के अनुरूप ही हैं जिनमें कहा गया है कि भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-22 में 11.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022-23 में 6.8 प्रतिशत रहेगी। आईएमएफ के अनुसार भारत अगले दो वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि ‘सौ साल में एक बार’ भारी कहर ढाने वाले इस तरह के गंभीर संकट से निपटने के लिए भारत ने अत्यंत परिपक्वता दिखाते हुए जो विभिन्न नीतिगत कदम उठाए हैं उससे विभिन्न देशों को अनेक महत्वपूर्ण सबक मिले हैं जिससे वे अदूरदर्शी नीतियां बनाने से बच सकते हैं। इसके साथ ही भारत के ये नीतिगत कदम दीर्घकालिक लाभों पर फोकस करने के महत्वपूर्ण फायदों को भी दर्शाते हैं। भारत ने नियंत्रण, राजकोषीय, वित्तीय और दीर्घकालिक ढांचागत सुधारों के चार स्तम्भों वाली अनूठी रणनीति अपनाई। देश में उभरते आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए सुव्यवस्थित ढंग से राजकोषीय और मौद्रिक सहायता दी गई। इसके साथ ही इस दौरान क्रमिक रूप से अनलॉक करते समय संबंधित सरकारी उपायों के राजकोषीय प्रभावों और कर्जों की निरंतरता को भी ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन के दौरान सर्वाधिक असुरक्षित पाए गए लोगों को आवश्यक सहायता दी गई और इसके साथ ही विभिन्न वस्तुओं के उपभोग एवं निवेश को काफी बढ़ावा मिला। अनुकूल मौद्रिक नीति से पर्याप्त तरलता सुनिश्चित हुई। इसी तरह मौद्रिक नीति के कदमों का लाभ प्रदान करते समय कर्जदारों को अस्थायी मोहलत के जरिए तत्काल राहत प्रदान की गई।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर (-) 7.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। प्रथम छमाही में जीडीपी में 15.7 प्रतिशत की तेज गिरावट और दूसरी छमाही में 0.1 प्रतिशत की अत्यंत कम गिरावट को देखते हुए ही यह अनुमान लगाया गया है। विभिन्न क्षेत्रों पर नजर डालने पर यही पता चलता है कि कृषि क्षेत्र अब भी आशा की किरण है, जबकि लोगों के आपसी संपर्क वाली सेवाओं, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए थे जिनमें धीरे-धीरे सुधार देखे जा रहे हैं। सरकारी उपभोग और शुद्ध निर्यात के बल पर ही आर्थिक विकास में और ज्यादा गिरावट देखने को नहीं मिल रही है।
जैसा कि अनुमान लगाया गया था, लॉकडाउन के कारण प्रथम तिमाही में जीडीपी में (-) 23.9 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई। वहीं, बाद में ‘V’ आकार में वृद्धि यानी निरंतर अच्छी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है जो दूसरी तिमाही में जीडीपी में 7.5 प्रतिशत की अपेक्षाकृत कम गिरावट और सभी महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों में हो रही बेहतरी में प्रतिबिंबित होती है। गत जुलाई माह से ही ‘V’ आकार में आर्थिक बेहतरी निरंतर जारी है जो प्रथम तिमाही में भारी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में जीडीपी में दर्ज की गई अपेक्षाकृत कम गिरावट में परिलक्षित होती है। भारत में महामारी के प्रकोप के बाद बढ़ती गतिशीलता पर ध्यान देने पर यह पता चलता है कि विभिन्न संकेतक जैसे कि ई-वे बिल, रेल माल भाड़ा, जीएसटी संग्रह और बिजली की मांग बढ़कर न केवल महामारी पूर्व स्तरों पर पहुंच गई है, बल्कि पिछले वर्ष के स्तरों को भी पार कर गई है। राज्य के भीतर और एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही को फिर से चालू कर देने और रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए मासिक जीएसटी संग्रह से यह पता चलता है कि देश में औद्योगिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों को किस हद तक उन्मुक्त कर दिया गया है। वाणिज्यिक प्रपत्रों की संख्या में तेज वृद्धि, यील्ड में कमी आने और एमएसएमई को मिले कर्जों में उल्लेखनीय वृद्धि से यह पता चलता है कि विभिन्न उद्यमों को अपना अस्तित्व बनाए रखने और विकसित होने के लिए व्यापक मात्रा में कर्ज मिल रहे हैं।