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कभी करते थे अच्छे-अच्छों के दांत खट्टे, अब गुमनामी में गुजर रही है जिंदगी

  •   स्वाधीनता सेनानी जमींदार चंद्र बेहरा के परिवार ने आजादी के संग्राम में कर दिया अपना सर्वस्व न्यौछावर

  • इतिहासक के पृष्ठों में नहीं मिला स्थान

  • अर्सों बाद वीर सुरेन्द्र साय स्मारक एवं शोध केन्द्र ने किया सम्मान

राजेश बिभार, संबलपुर

देश की आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर करनेवाले कुछ भारत मां के लाल ऐसे भी हैं, जिन्हें इतिहास के पन्नों पर उचित स्थान नहीं मिला. आजादी के 72 साल बाद उनका परिवार कहां और किस हालत में जिंदगी बसर कर रहा है, इसका आंकड़ा न तो सरकार के पास है और न ही इतिहास की जद्दोजहद में जुटे इतिहासकारों के पास. ऐसी एक गाथा महान स्वाधीनता सेनानी वीर सुरेन्द्र साय के साथ कंधा से कंधा मिलाकर एवं तलवार से तलवार टकराकर अंग्रेजों के दांत खट्टे करनेवाले गुमनाम स्वधीनता सेनानी जमींदार चंद्र बेहरा के परिवार का है.

संबलपुर जिले के बड़कुंडेसरा जमींदार चंद्र बेहरा ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभायी. वीर सुरेन्द्र साय के खास सहयोगी के तौरपर उसने अंग्रेजों से संग्राम किया और अपना सर्वस्व बलिदान दिया. इसके बाद उनके तीन पुत्र श्रीकृष्ण, कृपासिंधू एवं धरणीधर ने भी संग्राम की आग में कुद लगाया और अपनी जान की बाजी लगा दी. बिडंबना का विषय यह है कि ऐसे वीर शहीदों का परिवार आज गुमनामी में जीवन जीने को मजबूर है. कुछ दिन पहले अंचल के जानेमाने गवेषक डा. विभूदत्त प्रमोद कुमार मिश्र ने इस परिवार को खोज निकाला और उनकी व्यथा को सार्वजनिक किया. ऐसे में गणतंत्र दिवस के खास मौके पर यदि इस परिवार को अनदेखा कर दिया, तो निश्चित तौरपर यह बेईमानी होगी.

वीर सुरेन्द्र साय स्मारकी एवं गवेषणा केन्द्र के प्रतिनिधि मंडल ने बड़कुंडेसरा गांव का दौरा किया और स्वाधीनता सेनानी कृष्ण बेहरा (चंद्र बेहरा के पुत्र) के वंशज सुरेश कुमार बेहेरा (76 वर्ष) से मुलाकात की और उनका सम्मान किया. इस प्रतिनिधिमंडल में केन्द्र के संयोजक प्रफुल्ल कुमार दास, संयुक्त संयोजक रांगेयनाथ षाड़ंगी, अरविंद नायक, गोविंद अग्रवाल, डा. विभुदत्त प्रमोद कुमार मिश्र एवं कुलुंडी सरपंच सुब्रत कुमार प्रमुख शामिल थे. इस खास अवसर पर सुरेश ने अपने पूर्वजो के अस्त्र एवं शस्त्रों का दर्शन उन्हें कराया और बताया कि बडऱमा  स्थित वन दुर्गा मंदिर के आसपास ऐसे अनेकों अस्त्र-शस्त्र दबाए गए जो आजादी की लड़ाई में व्यवहार किए गए थे. सुरेश ने इस दौरान बताया कि पुरातन बामंडा राज्य के प्रतिष्ठाता सोनाकंध जमींदार परिवार के वे वंशज हैं. किसी जमाने में तिलेईबणी से लेकर गौड़पाली तक उनकी जमींदारी चलती थी. फिलहाल उनके पास 4.61 एकड़ जमीन है, जिसपर खेती कर वे अपने परिवार को गुजारा चला रहे हैं. इस दौरान केन्द्र के सदस्यों ने सुरेश को आश्वस्त किया कि बहुत जल्द वे प्रदेश सरकार से बातचीत कर बड़कुंडेसरा गांव में शहीदों का स्मारक बनाने का प्रयास आरंभ करेंगे. केन्द्र के संयोजक प्रफुल्ल दास ने बताया कि चंद्र बेहरा एवं उनके तीन पुत्रों के वीर गाथा को सार्वजनिक करने हेतु हरसंभव प्रयास आरंभ किया जाएगा.

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