ये गणतंत्र से गद्दारी है। गणतंत्र की गरिमा को शर्मसार किया गया। आंदोलन के नाम पर किसानों ने दिल्ली में उत्पात मचाया। दिल्ली के आईटीओ से लेकर लालकिले तक गुंडागर्दी मचाई गई। पुलिस वालों पर तलवार से हमला करने की कोशिश की गई। कई जगहों पर पत्थरबाजी की गई। कई ट्रैक्टरों में पत्थर भर कर लाया गया। इससे साफ जाहिर होता है कि गणतंत्र दिवस के दिन अशांति फैलाने की साजिश प्रायोजित थी। और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि किसान नेताओं को इसकी जानकारी नहीं होगी।
दिल्ली पुलिस और किसान नेताओं के बीच हुई रूट की शर्तों को तोड़ा गया। जिस रूट से ट्रैक्टर रैली निकालनी थी उस रूट का बहिष्कार कर दिया गया। कुल मिलाकर देश के राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस को पूरे विश्व में शर्मसार कर दिया गया। यहां तक कि उपद्रवियों ने लाल किले पर तिरंगे का भी अपमान किया। दिल्ली पुलिस और भारत की इंटेलिजेंस एजेंसियों ने पहले ही चेताया था कि आंदोलन के नाम पर दहशतगर्दी हो सकती है। और वही हुआ जिसका अंदेशा जताया जा रहा था। यकीनन यह ना तो किसान आंदोलन कहा जा सकता है और ना ही उपद्रवियों को किसान का दर्जा ही दिया जा सकता है।
भारत का किसान कभी भी देश विरोधी नहीं हो सकता है। खून पसीना बहाने वाले किसान देश पर मर मिटने वाले होते हैं ना कि देश की गरिमा गिराने वाले। वो भी गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर तो बिल्कुल भी नहीं। इस उपद्रव को लेकर यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र और गणतंत्र की आजादी के नाम पर देश को शर्मसार और अशांति फैलाने की जानबूझकर कोशिश की गई है। सुबह के समय में गणतंत्र दिवस के परेड में देश की आन बान और शान को देख पूरा विश्व हैरान था वहीं कुछ घंटों बाद आंदोलनकारियों ने देश को शर्मिंदा कर दिया। किसान नेताओं ने जो शांति से ट्रैक्टर मार्च निकलने की अपनी हठ पर अड़े रहे अब वो इस उत्पाती आंदोलन के बाद अपना रुख बदल दिया है। किसान नेताओं का कहना है कि उपद्रव करने वाले किसान नहीं है। उनके अनुसार यह कोई गहरी साजिश है। अब हम भारत के लोग यह जानना चाहते हैं कि यदि देश को शर्मसार करने वाले उपद्रवी यदि किसान नहीं हैं तो क्यों ना इन उपद्रवियों को चिन्हित कर उन्हें तुरंत सलाखों के पीछे डाल दिया जाए और शांति भंग करने की धारा लगाकर इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाय ? उन सभी किसान नेताओं को भी तलब किया जाए जिनकी जिम्मेदारी शांति से आंदोलन करने की थी।
एक बात तो तय है कि किसान आंदोलन इस हिसंक प्रदर्शन के बाद कमजोर होगा। किसान नेताओं और संगठनों में भी आपसी सहमति नहीं है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि किसान आंदोलन के नाम पर देश में अशांति फैलाने की यह साजिश है। देश के अधिकतर किसान तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में हैं और वे सब खुश हैं।
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