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असम में मोदी ने गिनायी सरकार की उपलब्धियां, एक लाख से ज्यादा मूलनिवासी परिवारों को भूमि के स्वामित्व का अधिकार दिया

गुवाहाटी. असम के शिवसागर में भूमि आवंटन प्रमाणपत्र वितरण समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि असम के लोगों का ये आशीर्वाद है, आपकी ये आत्मीयता मेरे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है। आपका ये प्रेम, ये स्नेह मुझे बार-बार असम ले आता है। बीते वर्षों में अनेकों बार मुझे असम के अलग-अलग हिस्सों में आने का, असम के भाई-बहनों से बातचीत करने और विकास के कामों से जुड़ने का अवसर मिला है। पिछले वर्ष मैं कोकराझार में ऐतिहासिक बोडो समझौते के बाद हुए उत्सव में शामिल हुआ था। अब इस बार असम के मूलनिवासियों के स्वाभिमान और सुरक्षा से जुड़े इतने बड़े आयोजन में, मैं आपकी खुशियों में शामिल होने आया हूं। आज असम की हमारी सरकार ने आप के जीवन की बहुत बड़ी चिंता दूर करने का काम किया है। 1 लाख से ज्यादा मूलनिवासी परिवारों को भूमि के स्वामित्व का अधिकार मिलने से आप के जीवन की एक बहुत बड़ी चिंता अब दूर हो गई है।

मोदी ने कहा कि आज के दिन स्वाभिमान, स्वाधीनता और सुरक्षा के तीनों प्रतीकों का भी एक प्रकार से समागम हो रहा है। पहला, आज असम की मिट्टी से प्यार करने वाले, मूलनिवासियों के अपनी जमीन से जुड़ाव को कानूनी संरक्षण दिया गया। दूसरा, ये काम ऐतिहासिक शिवसागर में, जेरेंगा पठार की धरती पर हो रहा है। ये भूमि असम के भविष्य के लिए सर्वोच्च त्याग करने वाली महासती जॉयमति की बलिदान भूमि है। मैं उनके अदम्य साहस को और इस भूमि को आदरपूवर्क नमन करता हूं। शिवसागर के इसी महत्व को देखते हुए इसे देश की 5 सबसे आइकोनिक आर्कोलाजिकल साइट्स में शामिल करने के लिए सरकार ज़रूरी कदम उठा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आज ही देश हम सब के प्रिय, हम सबके श्रद्धेय, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जन्मजयंति मना रहा है। देश ने अब तय किया है कि इस दिन की पहचान अब पराक्रमदिवस के रूप में होगी। मां भारती के स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए नेताजी का स्मरण आज भी हमें प्रेरणा देता है। आज पराक्रम दिवस पर पूरे देश में अनेक कार्यक्रम भी शुरू हो रहे हैं। इसलिए एक तरह से आज का दिन उम्मीदों के पूरा होने के साथ ही हमारे राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि के लिए प्रेरणा लेने का भी अवसर है।

हम सभी एक ऐसी संस्कृति के ध्वजवाहक हैं, जहां हमारी धरती, हमारी जमीन सिर्फ घास, मिट्टी, पत्थर के रूप में नहीं देखी जाती। धरती हमारे लिए माता का रूप है। असम की महान संतान, भारतरत्न भूपेन हज़ारिका ने कहा था- ओमुर धरित्रीआई, चोरोनोटे डिबाथाई, खेतियोकोर निस्तारनाई, माटीबिने ओहोहाई। यानि हे धरती माता, मुझे अपने चरणों में जगह दीजिए। आपके बिना खेती करने वाला क्या करेगा? मिट्टी के बिना वो असहाय होगा।

ये दुखद है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी असम में लाखों ऐसे परिवार रहे जिन्हें किसी न किसी वजह से अपनी जमीन पर कानूनी अधिकार नहीं मिल पाया। इस वजह से विशेष तौर पर आदिवासी क्षेत्रों की एक बहुत बड़ी आबादी भूमिहीन रह गई, उनकी आजीविका पर लगातार संकट बना रहा। असम में जब हमारी सरकार बनी तो उस समय भी यहां करीब-करीब 6 लाख मूलनिवासी परिवार ऐसे थे, जिनके पास ज़मीन के कानूनी कागज़ नहीं थे। पहले की सरकारों में आपकी ये चिंता, उनकी प्राथमिकता में ही नहीं थी। लेकिन सर्वानंद सोनोवालजी के नेतृत्व में यहां की सरकार ने आपकी इस चिंता को दूर करने के लिए गंभीरता के साथ काम किया। आज असम के मूल निवासियों की भाषा और संस्कृति की संरक्षण के साथ-साथ भूमि से जुड़े उनके अधिकारों को सुरक्षित करने पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है। 2019 में जो नई लैंड पॉलिसी बनाई गई है, वो यहां की सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाता है। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि बीते सालों में सवा 2 लाख से ज्यादा मूलनिवासी परिवारों को भूमि के पट्टे सौंपे जा चुके हैं। अब इसमें 1 लाख से ज्यादा परिवार और जुड़ जाएंगे। लक्ष्य ये है कि असम के ऐसे हर परिवार को जम़ीन पर कानूनी हक जल्द से जल्द मिल सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि ज़मीन का पट्टा मिलने से मूलनिवासियों की लंबी मांग तो पूरी हुई ही है, इससे लाखों लोगों का जीवन स्तर बेहतर होने का रास्ता भी बना है। अब इनको केंद्र और राज्य सरकार की दूसरी अनेक योजनाओं का लाभ मिलना भी सुनिश्चित हुआ है, जिन से हमारे ये साथी वंचित थे। अब ये साथी भी असम के उन लाखों किसान परिवारों में शामिल हो जाएंगे जिनको पीएम किसान सम्मान निधि के तहत हज़ारों रुपए की मदद सीधे बैंक खाते में भेजी जा रही है। अब इनको भी किसान क्रेडिट कार्ड, फसल बीमा योजना और किसानों के लिए लागू दूसरी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। इतना ही नहीं, वो अपने व्यापार-कारोबार के लिए इस ज़मीन पर बैंकों से ऋण भी आसानी से ले पाएंगे।

उन्होंने कहा कि असम की लगभग 70 छोटी-बड़ी जनजातियों को सामाजिक संरक्षण देते हुए, उनका तेज़ विकास हमारी सरकार की प्रतिबद्धता रही है। अटल जी की सरकार हो या फिर बीते कुछ सालों से केंद्र और राज्य में एनडीए की सरकार, असम की संस्कृति, स्वाभिमान और सुरक्षा हमारी प्राथमिकता रही है। असमिया भाषा और साहित्य को प्रोत्साहन देने के लिए भी अनेक कदम उठाए गए हैं। इसी तरह हर समुदाय के महान व्यक्तित्वों को सम्मान देने का काम बीते सालों में असम की घरती पर हुआ है। श्रीमंत शंकरदेवजी का दर्शन, उनकी शिक्षा असम के साथ-साथ संपूर्ण देश, पूरी मानवता के लिए बहुत अनमोल संपत्ति है। ऐसी धरोहर को बचाने और उसका प्रचार प्रसार करने के लिए कोशिश हो, ये हर सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए थी। लेकिन बाटाद्रवा सत्र सहित दूसरे सत्रों के साथ क्या बर्ताव किया गया, ये असम के लोगों से छिपा नहीं है। बीते साढ़े 4 सालों में असम सरकार ने आस्था और आध्यात्म के इन स्थानों को भव्य बनाने के लिए, कला से जुड़ी ऐतिहासिक वस्तुओं को संजोने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। इसी तरह असम और भारत के गौरव काज़ीरंगा नेशनल पार्क को भी अतिक्रमण से मुक्त करने और पार्क को और बेहतर बनाने के लिए भी तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं।

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