Home / National / पराक्रम दिवस पर विशेष – आज भी यहां खेलता है नेता जी का बचपन…!!!

पराक्रम दिवस पर विशेष – आज भी यहां खेलता है नेता जी का बचपन…!!!

हेमन्त कुमार तिवारी, कटक

विदेशी धरती से देश की आजादी के लिए महासंग्राम छेडऩे वाले सुभाष चंद्र बोस आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आज भी उनका बचपन ओडिशा की धरती पर खेलता है. घर से लेकर बगीचे और जंग-ए-आजादी तक का सफर सब साफ दिखता है. हंसी से लेकर रणभूमि तक की दहाड़ भी यहां आज किसी न किसी रूप में अहसास किया जा सकता है.

जी हां! सुनने के लिए भले ही कुछ अजीब लग रहा हो, लेकिन है यह सौ फीसदी सच. थोड़ा देश प्रेम का जज्बा दिल में जगाइये, तो यह सब कुछ आप अहसास कर सकते हैं यहां. यह स्थल और कहीं नहीं है, बल्कि अपने ही सूबे में है. हां, हम बात कर रहे हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पैतृक आवास की, जो यहां कटक के ओडिय़ा बाजार में स्थित है. उनका पैतृक आवास आज भी नेताजी के जीवन की यादों को समेटे हुए है. इस भवन में जन्म लेने वाले नेताजी की पूरी जिंदगी की एक-एक यादें उनकी तस्वीरों में छिपी हैं, जिसे आज धरोहर के रूप में संजो कर रखा गया है.

कभी दोस्तों के साथ खेलते हुए, तो कहीं अपने परिवार के साथ बैठे हुए ‘तूम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा बुलंद करने वाले संग्रामी नायक को तस्वीरों में देखा जा सकता है.

यहां सुभाष चंद्र बोस के उस घर को, जहां उन्होंने जन्म लिया था, अच्छे तरीके से सजाकर रखा गया है. उसमें एक बेड, कुर्सियां और सुभाष चंद्र बोस की तस्वीरें हैं. बेड पर आज भी सफेद रंग का कारपेट और दो मसनद रखे हुए हैं, मानो  वहां आज भी सुभाष चंद्र बोस रोज सोते हैं.

ठीक इस घर के बगल वाले कमरे में उनकी वर्दी, तलवार और ढाल आदि संजो कर रखे हुए हैं. अगल-बगल में कुछ तस्वीरें भी हैं, जिनमें नेताजी इस वर्दी को पहने हुए हैं.

यहां नेताजी का आजाद हिंद रेडियो प्रसारण कक्ष भी है. इसे देखने से ऐसा लगता है कि जैसे सुभाष चंद्र बोस आज भी यहां से रेडियो पर संबोधित कर रहे हों. सामने टेबुल पर माइक, ट्रांसमिशन मशीन और पास में, कुर्सी पर उनकी प्रतिमा रखी हुई है.

इस कक्ष में बगल में नेशलन बैंक आफ आजाद हिंद लिमिटेड का कक्ष भी है, जिसमें आज भी उस लाकर को सुरक्षित रखा गया है, जिसे उस समय में प्रयोग किया जाता था.

इतना ही नहीं, नेताजी के जन्म स्थल के संग्रहालय परिसर में रखी बग्घी और घोड़ों को देखने से लगता है कि मानो वह आज भी उस वीर नायक की राह देख रहे हैं.

लेकिन, विदेशी धरती से भारत की आजादी के लिए महासंग्राम छेडऩे वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में 66 साल बाद भी रहस्य बरकरार है. उनके बारे में अनेक किस्से-कहानियां हैं, लेकिन सच कभी सामने नहीं आया. अट्ठारह अगस्त 1945 को ताइवान में जिस विमान हादसे में नेताजी की मौत हो जाने की बात कही जाती है, ताइवान सरकार के अनुसार, उस दिन कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था.

नेताजी के जीवन रहस्यों पर पुस्तक लिख चुके लेखक का मानना है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान के ऊपर विमान हादसे और नेताजी की मौत की कहानी यकीन से परे है. उनका कहना है कि नेताजी की मौत का सच जानबूझकर छिपाया जा रहा है.

ताइवान में कथित विमान हादसे के समय नेताजी के साथ रहे कर्नल हबीबुर रहमान ने इस बारे में- आजाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर, रूसी तथा अमेरिकी जासूसों और शाहनवाज समिति के समक्ष जो विरोधाभासी बयान दिए, उनसे यह रहस्य और भी गहरा गया. रहमान ने कभी कहा कि उन्होंने ही नेताजी के जलते हुए कपड़े उतारे थे, तो कभी कहा कि वे विमान हादसे में खुद बेहोश हो गए थे और जब आंख खुली, तो वे ताइपेई के एक अस्पताल में थे. कभी उन्होंने कहा कि नेताजी का अंतिम संस्कर 20 अगस्त 1945 को हुआ तो कभी अंतिम संस्कार की तारीख 22 अगस्त बताई.

मिशन नेताजी से जुड़े अनुज धर ने कहा कि जब उन्होंने इस बारे में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सरकार से सच जानना चाहा तो सरकार ने सूचना उपलब्ध कराने से ही मना कर दिया. उन्होंने कहा कि इससे यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि सरकार जानबूझकर नेताजी के बारे में सच छिपा रही है. आजाद हिन्द फौज में शामिल रहे बहुत से सैनिक और अधिकारी दावा कर चुके हैं कि विमान हादसे में नेताजी की मौत नहीं हुई थी.

वे आजादी के बाद भी जीवित रहे, लेकिन घटिया राजनीति के चलते सामने नहीं आ पाए और गुमनामी का जीवन जीना बेहतर समझा. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मौत की जांच के लिए बनाई गई शाहनवाज समिति ने जहां विमान हादसे की बात को सच बताया था, वहीं इस समिति में शामिल नेताजी सुभाष चंद्र के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और कहा था कि विमान हादसे की घटना को जानबूझकर सच बताने की कोशिश की जा रही है. आजाद हिन्द फौज के कई सेनानियों का दावा है कि फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे और उन्होंने इस रूप में नेताजी से गुप्त मुलाकातों का दावा भी किया है. इस बारे में सच से परदा हटाने के लिए 1999 में गठित मुखर्जी आयोग ने 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में नेताजी की मौत को खारिज कर दिया तथा कहा कि इस मामले में आगे और जांच की जरूरत है. आयोग ने आठ नवम्बर 2005 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी थी. 17 मई 2006 को इसे संसद में पेश किया गया, जिसे सरकार ने मानने से इनकार कर दिया.

इको फ्रेंडली और भक्ति का पर्याय भी है- नेताजी जन्म स्थल संग्रहालय

जी हां! चौंकिए नहीं. अब तक तो हम लोग यही जानते थे कि संग्रहालय में किसी विशेष पुरानी यादों को विभिन्न रूपों में सहेज कर रखा जाता है. लेकिन यहां इको फ्रेंडली की बात हो रही है, और बात हो रही है भक्ति भाव की. जी, बिल्कुल सच है. यही विशेषताएं तो कटक के ओडिय़ा बाजार स्थित नेताजी जन्म स्थल संग्रहालय की खासियत में चार चांद लगा रही हैं.

संग्रहालय के परिसर को ऐसा सजाया गया है कि यहां जाने के बाद हटने का मन ही नहीं करता. घास-फूसों को काट-छांट कर उसे रूप प्रदान किया गया है. इस पार्क में, हाथी से लेकर मंदिर तक को, घास से बनाया गया है.

संग्रहालय परिसर में घास-फूस से ही एक हाथी और भगवान शिव के नंदी बैल को बनाया गया है. पार्क में कुछ वन्य प्राणी भी हैं. घास का मंदिर, उसमें अघ्र्य और शिव लिंग भी घास से ही बनाया गया है. इतना ही नहीं, उस मंदिर में एक घंटा भी लगाया गया है. बाहर घास से ही बने नंदी महाराज पहरा दे रहे हैं. मंदिर के बगल में छोटे से पौधे में बेसमय लटका आम कौतुहल को और बढ़ा देता है. रंग-बिरंगे फूलों से सजा पार्क और बीच में स्थापित नेताजी की प्रतिमा बरबस वहां लोगों को बांधे रखती है.

Share this news

About desk

Check Also

Operation Sindoor: India responded to Pahalgam attack with bullets, 30 terrorists killed ऑपरेशन सिंदूर : पहलगाम हमले का भारत ने गोलों से दिया जवाब, 30 आतंकी ढेर

ऑपरेशन सिंदूर : पहलगाम हमले का भारत ने गोलों से दिया जवाब, 30 आतंकी ढेर

पाकिस्तान में 30 आतंकी ढेर, 50 से अधिक घायल पाक अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान के …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *