Home / National / शत्रुता से कभी शांति हासिल नहीं होगी – मोदी

शत्रुता से कभी शांति हासिल नहीं होगी – मोदी

नई दिल्ली। भारत-जापान संवाद सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि यह नए दशक का पहला संवाद है। यह मानव इतिहास के एक महत्वपूर्ण दौर में आयोजित किया जा रहा है। आज किये जाने वाले हमारे कार्य हमारे आने वाले समय का आकार और रास्‍ता तय करेंगे। यह दशक और उससे आगे का समय उन समाजों का होगा, जो सीखने और साथ-साथ नव परिवर्तन करने पर उचित ध्‍यान देंगे। यह उज्‍ज्‍वल युवा मस्तिष्‍कों को पोषित करने के बारे में भी है, जिससे आने वाले समय में मानवता के मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षण ऐसा होनी चाहिए जिससे नवाचार को आगे बढ़ाया जा सके। कुल मिलाकर नवाचार मानव सशक्तिकरण का मुख्‍य आधार है।
समाज जो खुले दिमाग वाला लोकतांत्रिक और पारदर्शी है वही नवाचार के लिए अधिक उपयुक्‍त है। इसलिए प्रगतिरूपी प्रतिमान को बदलने का अब पहले की अपेक्षा बेहतर समय है। वैश्विक विकास की चर्चा कुछ लोगों के बीच ही नहीं की जा सकती है। इसके लिए दायरे का बड़ा होना जरूरी है। इसके लिए कार्य सूची भी व्‍यापक होनी चाहिए। प्रगति के स्‍वरूप को मानव केन्द्रित दृष्टिकोण का अनुसरण करना चाहिए और वह हमारे परिवेश के अनुरूप होना चाहिए।
यमक वग्गो धम्मपद: में उचित रूप से वर्णन किया गया है-
न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचं।
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो॥
शत्रुता से कभी शांति हासिल नहीं होगी। विगत में, मानवता ने सहयोग के बजाय टकराव का रास्ता अपनाया। साम्राज्यवाद से लेकर विश्व युद्ध तक, हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक, हमने संवाद किए लेकिन उनका उद्देश्‍य दूसरों को नीचे खींचना था। आइये, अब हम मिलकर ऊपर उठें। गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से हमें शत्रुता को सशक्तता में बदलने की शक्ति मिलती है। उनकी शिक्षाएँ हमें बड़ा दिलवाला बनाती हैं। वे हमें विगत से सीखने और बेहतर भविष्य बनाने की दिशा में काम करने की शिक्षा देती हैं। यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे अच्छी सेवा है।
उन्होंने कहा कि ‘संवाद’ का सार घनिष्‍ठता बनाए रखना है। ‘संवाद’ हमारे अंदर बेहतर समावेश करे, यह हमारे प्राचीन मूल्‍यों को आकर्षित करने और आने वाले समय के लिए अपने आपको तैयार करने का समय है। हमें मानवतावाद को अपनी नीतियों के केन्‍द्र में रखना चाहिए। हमें अपने अस्तित्व के केंद्रीय स्तंभ के रूप में प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व स्‍थापित करना चाहिए। स्‍वयं अपने साथ, अपने अन्‍य साथियों और प्रकृति के साथ ‘संवाद’ इस पथ पर हमारा मार्ग प्रकाशित कर सकता है।

Share this news

About desk

Check Also

Despite monsoon deficit, Kharif acreage up 32% in June, driven by pulses & oilseeds

India sees higher acreage of summer-sown Kharif crops in June despite a larger monsoon rainfall …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *