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‘स्टैचू ऑफ पीस’, विश्व में शांति, अहिंसा और सेवा का एक प्रेरणा स्रोत बनेगी – मोदी

  •  जैनआचार्य श्री विजय वल्लभ सुरिश्वर जी महाराज की 151वीं जयंती समारोह आयोजित

नई दिल्ली. जैनआचार्य श्री विजय वल्लभ सुरिश्वर जी महाराज की 151वीं जयंती समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये नव वर्ष आध्यात्मिक आभा का वर्ष है, प्रेरणा देने वाला वर्ष है। ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस आयोजन में शामिल होने, आप सभी से आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिला है। जन्म वर्ष महोत्सव के माध्यम से जहां एक तरफ भगवान श्री महावीर स्वामी के अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह जैसे सिद्धान्तों को प्रसारित किया जा रहा है तो साथ ही गुरु वल्लभ के संदेशों को भी जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है। इन भव्य आयोजनों के लिए मैं गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरीश्वर जी महाराज का भी विशेष रूप से अभिनंदन करता हूँ। आपके दर्शन, आशीर्वाद और सानिध्य का सौभाग्य मुझे वडोदरा और छोटा उदयपुर के कंवाट गांव में भी प्राप्त हुआ था। आज पुनः आपके सम्मुख उपस्थित होने का अवसर मिला है जिसे मैं अपना एक पुण्य मानता हूं। संतजन आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरीश्वर जी महाराज कहा करते हैं कि गुजरात की धरती ने हमें दो वल्लभ दिए और अभी-अभी इस बात का जिक्र हुआ। राजनीतिक क्षेत्र में सरदार वल्लभ भाई पटेल और आध्यात्मिक क्षेत्र में जैनाचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज। वैसे मैं दोनों ही महापुरुषों में एक समानता और देखता हूँ। दोनों ने ही भारत की एकता और भाईचारे के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। मेरा सौभाग्य है कि मुझे देश ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ के लोकार्पण का अवसर दिया था, और आज जैनाचार्य विजय वल्लभ जी की ‘स्टेचू ऑफ पीस’ के अनावरण का सौभाग्य मुझे मिल रहा है। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा पूरे विश्व को, मानवता को, शांति, अहिंसा और बंधुत्व का मार्ग दिखाया है। ये वो संदेश हैं जिनकी प्रेरणा विश्व को भारत से मिलती है। इसी मार्गदर्शन के लिए दुनिया आज एक बार फिर भारत की ओर देख रही है। मुझे विश्वास है कि ये ‘स्टैचू ऑफ पीस’, विश्व में शांति, अहिंसा और सेवा का एक प्रेरणा स्रोत बनेगी। कार्यक्रम में गच्छाधिपति जैनाचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर, आचार्य श्री विजय चिदानंद सूरि, आचार्य श्री जयानंद सूरि, महोत्सव के मार्गदर्शक मुनि श्री मोक्षानंद विजय, श्री अशोक जैन, सुधीर मेहता, श्री राजकुमार, श्री घीसूलाल और आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि उपस्थित थे.
मोदी ने कहा कि आचार्य विजयवल्लभ जी कहते थे- “धर्म कोई तटबंधों में बंधा सरोवर नहीं है, बल्कि एक बहती धारा है जो सबको समान रूप से उपलब्ध होनी चाहिए”। उनका ये संदेश पूरे विश्व के लिए अत्यन्त प्रासंगिक है। उनके जीवन का जो विस्तार रहा है, उसमें आवश्यक है कि उनके बारे में बार-बार बात की जाए, उनके जीवन दर्शन को दोहराया जाए। वो एक दार्शनिक भी थे, समाज सुधारक भी थे। वो दूरदृष्टा भी थे, और जनसेवक भी थे। वो तुलसीदास, आनंदघन और मीरा की तरह परमात्म के भक्त कवि भी थे और आधुनिक भारत के स्वप्नदृष्टा भी थे। ऐसे में ये बहुत आवश्यक है कि उनका संदेश, उनकी शिक्षाएं और उनका जीवन हमारी नई पीढ़ी तक भी पहुंचे।

भारत का इतिहास आप देखें तो आप महसूस करेंगे, जब भी भारत को आंतरिक प्रकाश की जरूरत हुई है, संत परंपरा से कोई न कोई सूर्य उदय हुआ है। कोई न कोई बड़ा संत हर कालखंड में हमारे देश में रहा है, जिसने उस कालखंड को देखते हुए समाज को दिशा दी है। आचार्य विजय वल्लभ जी ऐसे ही संत थे। गुलामी के उस दौर में उन्होंने देश के गांव-गांव, नगर-नगर पैदल यात्राएं कीं, देश की अस्मिता को जगाने का भगीरथ प्रयत्न किया। आज जब हम आजादी के 75 साल की तरफ बढ रहे हैं। आजादी के आंदोलन के एक पहलू को तो दुनिया के सामने किसी न किसी रूप में हमने हमारे आंख-कान की ओर से गुजरा है लेकिन इस बात को हमेशा याद रखना होगा कि भारत की आजादी के आंदोलन की पीठिका भक्ति आंदोलन से हुई थी। जन-जन को भक्ति आंदोलन के माध्यम से हिंदुस्तान के कोने-कोने से संतो ने, महंतो ने, ऋषिमुनियों, ने आचार्यों ने, भगवन्तों ने उस चेतना को जाग्रत किया था। एक पीठिका तैयार की थी और उस पीठिका ने बाद में आजादी के आंदोलन को बहुत बड़ी ताकत दी थी और उस पूरी पीठिका को तैयार करने वाले में जो देश में अनेक संत थे उसमें एक वल्लभ गुरू थे। गुरू वल्लभ का बहुत बड़ा योगदान था जिसने आजादी के आंदोलन की पीठिका तय की थी लेकिन आज 21वीं सदी में मैं आचार्यों से, संतों से, भगवंतों से, कथाकारों से एक आग्रह करना चाहता हूं जिस प्रकार से आजादी के आंदोलन की पीठिका भक्ति आंदोलन से शुरू हुई, भक्ति आंदोलन ने ताकत दी वैसे ही आत्मनिर्भर भारत की पीठिका तैयार करने का काम भी हमारे संतों, महंतों, आचार्यों का है। आप जहां भी जाएं, जहां भी बोलें, अपने शिष्य हों या संतजन हों, आपके मुख से लगातार ये संदेश देश के हर व्यक्ति तक पहुंचते रहना चाहिए और वो संदेश है ‘वोकल फार लोकल’। जितना ज्यादा हमारे कथाकार, हमारे आचार्य, हमारे भगवंत, हमारे संतजन उनकी तरफ से बात जितनी ज्यादा आएगी जैसे उस समय आजादी की पीठिका आप सभी आचार्यों, संतों, महंतों ने की थी वैसी ही आजादी की पीठिका आत्मनिर्भर भारत की पीठिका आप तैयार कर सकते हैं और इसलिए मैं आज देश के सभी संतों, महापुरुषों के चरणों में आग्रह पूर्वक निवेदन कर सकता हूं। प्रधानसेवक के रूप में निवेदन कर सकता हूं कि आइए, हम इसके लिए आगे बढ़े। कितने ही स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी इन महापुरूषों से प्रेरणा लेते थे। पण्डित मदन मोहन मालवीय, मोरार जी भाई देसाई जैसे कितने ही जननेता उनका मार्गदर्शन लेने उनके पास जाते थे। उन्होंने देश की आज़ादी के लिए भी स्वप्न देखा और आज़ाद भारत कैसा हो, इसकी भी रूपरेखा खींची। स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के लिए उनका विशेष आग्रह था। उन्होंने आजीवन खादी पहनी, स्वदेशी को अपनाया और स्वदेशी का संकल्प भी दिलाया। संतों का विचार कैसे अमर और चिरंजीवी होतेs है, आचार्य विजय वल्लभ जी के प्रयास इसका साक्षात उदाहरण हैं। देश के लिए जो स्वप्न उन्होंने आज़ादी के पहले देखा था, वो विचार आज ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के जरिए सिद्धि की तरफ बढ़ रहा है।

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