नई दिल्ली. विश्व हिंदू परिषद जम्मू-कश्मीर ने उच्च न्यायालय द्वारा जम्मू क्षेत्र में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के उद्देश्य से कुख्यात रोशनी योजना को अवैध घोषित करने और राज्य संरक्षण में चले इस भूमि अतिक्रमण अभियान के सभी पहलुओं की सीबीआई जांच की घोषणा का स्वागत किया है. यहां एक जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में राजेश गुप्ता, कार्यकारी अध्यक्ष, वीएचपी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद, जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य में, जो कि अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश हैं, मुस्लिम नेतृत्व वाली अब तक की सभी सरकारें कश्मीर केंद्रित रही हैं और इन सभी के द्वारा स्वयं भ्रष्टाचार, हिन्दू उत्पीड़न, आतंकवाद का पोषण और प्रोत्साहन किया गया था. इनके द्वारा भूमाफिया को अतिक्रमणों पर स्वामित्व के साथ पुरस्कृत किया गया था, क्योंकि सत्तारूढ़ लाभार्थी जांच अधिकारियों को नियंत्रित कर रहे थे और यह 5 अगस्त 2019 तक सभी लाभार्थियों के लिए सदा जीत की स्थिति थी. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों के निर्माण के साथ ही भाई भतीजावाद को रोकने के लिए आवश्यक कानूनों की शुरूआत के साथ ही तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए जांच एजेंसियों और सार्वजनिक अभियोजकों के जिम्मेदार व्यवहार से नतीजे सामने आने लगे हैं.
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने कुख्यात रोशनी योजना (लोकप्रिय रूप से रोशनी घोटाला) को अमान्य और अवैध घोषित करते हुए इसकी आगे की जाँच सीबीआई को सौंप दी है. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की आम जनता षड्यंत्रकारियों और लाभार्थियों के लिए कानून सम्मत सजा के साथ-साथ राज्य की सारी अतिक्रमण की गई भूमि की वापसी की उम्मीद कर रही है.
उन्होंने कहा कि 2001 में जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने बहुत प्रचार के साथ राजस्व उत्पन्न करने के लिए एक स्वघोषित, क्रांतिकारी, अब तक की सभी योजनाओं से बड़ी योजना की घोषणा की. अतिक्रमणकारियों के अवैध कब्जे के तहत राज्य की भूमि का स्वामित्व देकर जम्मू-कश्मीर में पनबिजली परियोजनाओं को स्थापित करने के लिए 25,000 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न करने के प्रचारित उद्देश्य के साथ भारत के इतिहास में पहली बार भू-माफिया के लिए यह एक प्रोत्साहन योजना थी. इसके द्वारा परोक्ष रूप में ईमानदार नागरिकों को यह भी समझाया गया कि आप मूर्ख हैं. उन्होंने कहा कि सभी प्रमुख कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों द्वारा 2007 तक अपने समर्थकों और रिश्तेदारों को लाभार्थियों के रूप में शामिल करने के लिए सत्ता में लोगों की इच्छा अनुसार योजना और अधिनियम के नियम नाजायज रूप से कई बार संशोधित किए गए, जो कि वर्ष 2013 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया है.
उन्होंने कहा कि सत्ताधारियों ने जम्मू और कश्मीर में गहरी विपरीत स्थिति में लगभग 33,000 कनाल राज्य भूमि कश्मीर प्रांत के 10 जिलों और में लगभग 6 लाख कनाल सरकारी भूमि जम्मू संभाग के 10 जिलों में अतिक्रमणकारियों के नाम कर दी. कश्मीर प्रांत से लगभग 20 गुना भूमि जम्मू प्रांत के 10 जिलों में अतिक्रमणकारियों (कश्मीर क्षेत्र के विभिन्न जिलों से संबंधित एक बड़ी संख्या के साथ) के पक्ष में नियमित की गई. कश्मीर में 100% लाभार्थी मुस्लिम थे, क्योंकि हिंदू इस क्षेत्र से निष्कासित किए जा चुके हैं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से जम्मू प्रांत में जहां हिंदू आबादी के 75% हैं, उनमें 10% से भी कम लाभार्थी हिन्दू हैं. सीबीआई द्वारा इस घोटाले के सभी पहलुओं की निर्णायक जांच के लिए माननीय उच्च न्यायालय का आदेश, साथ ही जम्मू-कश्मीर की पूर्ववर्ती राज्य की जांच एजेंसियों के तौर-तरीकों पर सख्ती के साथ जांच, यू.टी. सरकार से अपनी जांच प्रक्रियाओं के लिए सीबीआई को सभी सहयोग बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश के साथ आम नागरिकों में कानून के राज की उम्मीद जगी है.
जम्मू-कश्मीर का कश्मीर केंद्रित नेतृत्व जिसमें सभी राजनीतिक दल शामिल हैं, जिन्होंने बाद में अपने स्वयं के घोषित ‘गुपकार घोषणा’ के साथ हाथ मिलाया, न केवल जम्मू-कश्मीर के जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए भूमि जिहाद के लिए, बल्कि राष्ट्र विरोधी अंतर्राष्ट्रीय एजेंडों को शरण देने और पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन देशों की दुर्भावना का पोषण करने के लिए भी एकजुट हैं. इस घोषणा के मुख्य नेता फारूक अब्दुल्ला ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में चीन के हस्तक्षेप की मांग की, जिसके साथ हमारे बहादुर सैनिक लद्दाख में लड़ रहे हैं. गांधी/आजाद की कांग्रेस और मुफ्ती की पीडीपी से संबंधित उनके अन्य सहयोगियों ने शायद उनके इस बयान को मौन स्वीकृति दे दी है. ये नेता न केवल धर्मनिरपेक्षता और देश के दुश्मन हैं, बल्कि बहु प्रचारित कश्मीरियत पर भी धब्बा हैं. एक प्रख्यात स्तंभकार मधु किश्वर ने हाल ही में खुलासा किया है कि अब्दुल्ला की ये पसंद कैसे कश्मीरी लड़कियों को राज्य प्रशासन में गलत उद्देश्यों के लिए नियुक्त कर रही थी. वे सभी, चाहे वह अब्दुल्ला के हों या मुफ्ती के या गांधी के या आजाद के या लोन के या हुर्रियत प्रतिनिधियों के, बेनकाब होने पर एक आपराधिक चुप्पी अपनाये हुए हैं. कानून का पालन करने वाले नागरिक राज्य की भूमि की पुनर्प्राप्ति और पुनर्स्थापन, भूमि जिहाद की समाप्ति, जनसांख्यिकीय परिवर्तन की समाप्ति, आतंकवाद का अंत और अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद सभी नागरिकों के गौरव की बहाली की ओर देख रहे हैं, जिसके लिए माननीय उच्च न्यायालय ने प्रक्रिया शुरू की है.