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शुरू की स्टील सेक्टर के लिए मैग्नेशिया कार्बन लाइन
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इस्पात राज्य मंत्री ने डालमिया-ओसीएल की रिफ्रैक्टरी लाइन को देश के लिए समर्पित किया
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डालमिया-ओसीएल ने मैग्नेशिया कार्बन ब्रिक के लिए 1,08,000 टन की नई क्षमता का किया निर्माण
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36,000 टन का पहला चरण शुरू, अगले दो वर्षों में 36,000 टन प्रत्येक की क्षमता वाले 2 फेज और जोड़े जाएंगे

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से आत्मनिर्भर भारत के आह्वान पर भारत की सबसे तेजी से बढ़ने वाली रिफ्रैक्टरी कंपनी डालमिया-ओसीएल लिमिटेड ने आज मैग्नेशिया कार्बन (एमजी-ओसी ब्रिक्स) के उत्पादन के लिए एक नई रिफ्रेक्ट्री लाइन का शुभारंभ ओडिशा के राजगंगपुर संयंत्र में किया. इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने प्रोडक्शन लाइन का उद्घाटन किया, जिसमें 108,000 टन की क्षमता होगी और घरेलू इस्पात निर्माताओं की मांग को पूरा किया जाएगा. एक बार पूरी तरह से कार्यरत हो जाने के बाद, यह मैग्नेशिया कार्बन ब्रिक्स के उत्पादन के लिए भारत की सबसे बड़ी रिफ्रेक्ट्री लाइन होगी और देश की आयात निर्भरता में 50 फीसदी तक की कटौती लाने का भरोसा दिलवाएगी. रिफ्रेक्ट्री लाइन, जिसे डालमिया-ओसीएल की पहल ‘भारत की फैक्टरी में भारत की रिफ्रेक्ट्री’ के तहत स्थापित किया गया है, 36,000 टन प्रत्येक के तीन चरणों में तैयार होगी. यह उत्पाद व्यापक रूप से इस्पात उद्योग द्वारा खपत किया जाता है और वर्तमान मांग (लगभग 300,000 टन सालाना) का अधिकांश आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है. इस पहल के तहत, डालमिया भारत समूह की कंपनी डालमिया-ओसीएल अपने प्रमुख ग्राहकों जैसे सेल, टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू ग्रुप, जेएसपीएल ग्रुप, एएमएनएसईटीसी को समर्थन प्रदान करने के लिए स्थानीय तौर पर सबसे अधिक सबसे अधिक रिफ्रेक्ट्री उत्पादन कर रही है. नई विनिर्माण लाइन के शुभारंभ के साथ, कंपनी का लक्ष्य स्थानीय रूप से निर्मित एमजीओ-सी ईंटों के साथ आयात को प्रतिस्थापित करना है और 25 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी पर कब्जा करने की उम्मीद है. इसके बाद, कंपनी इन ईंटों को यूरोप और दुनिया भर के अन्य प्रमुख इस्पात बाजारों में निर्यात करने की योजना बना रही है. कंपनी ने पिछले 2 वर्षों में 50 करोड़ रुपये का संचयी निवेश किया है और अगले 5 वर्षों में कुल रिफ्रेक्ट्री बिजनेस को 50 फीसदी तक बढ़ाने की उम्मीद है.
इसके अलावा, डालमिया-ओसीएल ने अपनी घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ावा देने और इस दशक के अंत तक 300 मिलियन टन स्टील विनिर्माण वाला राष्ट्र बनने के लिए भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप अगले पांच वर्षों में 100 करोड़ रुपये का और संचयी निवेश करने की योजना बनाई है.
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