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देश के समग्र विकास में प्रकृति, समाज व मानव के कार्यकलापों में संतुलन आवश्यक

  • प्रकृति के शोषण से मानव के सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई – प्रो. अनिरुद्ध

  • आभासी पटल पर भारत का विकास विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित

भुवनेश्वर. अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ और श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्म शताब्दी समारोह समिति द्वारा आभासी पटल पर एक विशेष व्याख्यान ‘भारत का विकास’ विषय पर आयोजित किया गया. मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे ने कहा कि देश के समग्र विकास हेतु प्रकृति, समाज और मानव के कार्यकलापों में संतुलन आवश्यक है. उन्होंने बताया कि प्रकृति का दोहन करना चाहिए, शोषण नहीं. प्रकृति के शोषण से मानव के सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं जिससे विकास का संतुलन भी बिगड़ गया. पं.दीनदयाल उपाध्याय के अंतोदय योजना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति को योजनाओं का लाभ मिले तभी वास्तव में विकास होगा. श्री ठेंगड़ी जी के कथन को दोहराते हुए हर हाथ को काम मिले, हर खेत को पानी मिले और हर पेट को भोजन मिले. ये तीनों ही देश के समग्र विकास के सूचक हैं. अर्थव्यवस्था उपभोग के आधार पर नहीं चलती. मांग की आवश्यकता के अनुसार उत्पादन होना चाहिए, लेकिन आज उत्पादन के बाद मांग उत्पन्न करने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है इससे उपभोक्तावाद की संस्कृति का जन्म हुआ है. प्रो. देशपांडे ने कहा कि देश की जीडीपी बढ़ रही है, लेकिन बेरोजगारी बढ़ रही है, इसलिए यह विकास नहीं है. हमारे देश में अर्थव्यवस्था तीन पहलुओं पर टिकी है, जिनमें बड़े उद्योग, मध्यम उद्योग एवं छोटे उद्योग शामिल हैं. छोटे और लघु उद्योग देश की विकास की रीढ़ हैं. उन्होंने उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी की चर्चा की. हमें यदि स्वावलंबी और आत्मनिर्भर भारत बनाना है तो ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करना होगा. प्रो. देशपांडे ने दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा दिए हुए विकास के पांच सूत्र, जिनमें इकोनामी, इक्वलिटी, या इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन, एजुकेशन, एथिक्स और एनवायरमेंट है. सामाजिक व्यवस्था के समग्र विकास हेतु इन पांच कारकों का होना आवश्यक है. इसके अलावा उन्होंने मिलेनियम डेवलपमेंट गोल के भी तीन बिंदुओं जिनमें देश में गरीबी उन्मूलन, महिलाओं का स्वास्थ्य और रोजगार उत्पन्न करने वाले लोगों की आवश्यकता बताई. विकास हेतु पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. माशेलकर के पंचशील का वर्णन करते हुए बताया कि देश की शिक्षा विद्यार्थी केंद्रित, महिला केंद्रित परिवार, ज्ञान आधारित समाज, मानव आधारित विकास और नवीनता केंद्रित भारत होगा तभी देश का बहु आयामी, सम्यक व समग्र विकास संभव हो सकेगा. हमें दिशानुकूल और युगानुकूल नवीन होने की आवश्यकता है. इस अवसर पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के माननीय अध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद सिंघल, महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा, संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर, उच्च शिक्षा प्रभारी महेन्द्र कुमार सहित महासंघ के पदाधिकारियों एवं देश के कोने कोने से शिक्षाविदों, समाज विज्ञानियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. कार्यक्रम का लाइव प्रसारण फेसबुक पर भी किया गया.

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